न्यायपालिका आज भी हमारे लोकतंत्र का सबसे असरदार स्तंभ है, जिसे हर तरफ़ से आहत और हताश-लाचार आदमी अपनी उम्मीदों का आख़िरी सहारा समझता है। न्यायपालिका का क्षरण क्यों?
अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी-एसटी) समुदाय के सरकारी नौकरियों में और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठ रही हैं।
उच्चतम न्यायालय की 18 साल पुरानी व्यवस्था के बावजूद आज भी अक्सर कई मामलों में सुनवाई पूरी होने के बाद पक्षकारों को लंबे समय तक फ़ैसले का इंतजार रहता है।
न्यायालयों की भर्ती प्रक्रिया में विसंगतियों को लेकर एक बार फिर चर्चा हो रही है। न्यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है।