क्या तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि अपनी आदत से मजबूर हैं? उन्हें बार-बार कानून तोड़ने की लत है? कम से कम सोशल मीडिया तो यही कह रहा है। ऐसे एक आध नहीं, कई सोशल मीडिया पोस्ट हैं जो कानून तोड़ने की वजह से आर एन रवि को तमिलनाडु से राज्यपाल पद से हटाने की मांग कर रहे हैं। 

यह नया मामला शुरू हुआ बारह अप्रैल को वायरल हुए आर एन रवि के एक विवादास्पद वीडियो से। इसमें आर. एन. रवि को एक कॉलेज के कार्यक्रम में स्टूडेंट्स से ‘जय श्री राम’ का नारा लगवाते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो में साफ नज़र आया कि आर. एन. रवि छात्रों से कह रहे हैं कि ‘जय श्रीराम बोलो!’

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दरअसल आर. एन. रवि ने मदुरै केथियागराजर इंजीनियरिंग कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान छात्रों से यह नारा लगवाया। तभी से विवादों का तूफान उठ खड़ा हुआ है। इस कॉलेज में राज्यपाल एक लिटरेरी प्रोग्राम में छात्रों को अवॉर्ड देने पहुंचे थे। उसी समय उन्होंने छात्रों से यह नारा बोलने को कहा। गौरतलब है कि इस नारे को भाजपा की हिन्दुत्ववादी विचारधारा से जोड़कर देखा जाता है। इस वीडियो के बाहर आते ही शिक्षा से जुड़े संगठन खासे नाराज़ नज़र आए। उन्होंने राज्यपाल के इस व्यवहार को संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ करार दिया।

इन फैक्ट तमिलनाडु के कॉमन स्कूल सिस्टम संगठन SPCSS ने तुरंत राज्यपाल को हटाने की मांग भी कर दी। इसमें राज्य के कई जाने माने शिक्षाविद शामिल हैं। SPCSS ने अपना बयान ज़ारी कर कहा कि राज्यपाल एक धर्म विशेष के प्रचारक के रूप में नहीं, बल्कि राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में आमंत्रित किए गए थे। ऐसे में उनका छात्रों को धार्मिक नारा देने के लिए कहना उनके द्वारा लिए गये संवैधानिक शपथ का उल्लंघन है।संगठन ने अपना बयान ज़ारी कर यह साफ किया कि शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को किसी भगवान का नाम लेने के लिए कहना न केवल नैतिक रूप से अनुचित है। यह संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के भी विरुद्ध है। सरकारी धन से चलने वाले संस्थानों में किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देना अनुचित है।

SPCSS ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा “शिक्षा एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है। जब छात्र किसी सरकारी या सरकार से अनुदान प्राप्त संस्थान में शिक्षा ग्रहण करते हैं, तो वहां किसी भी धर्म विशेष की वंदना या धार्मिक आदेश देना न केवल अनुचित है, बल्कि गैरकानूनी भी है।” यहाँ बता दें, मदुरै के थियागराज इंजीनियरिंग कॉलेज को भी सरकार का अनुदान हासिल है।

उन्होंने यह भी बताया कि छात्र केवल कार्यक्रम की मर्यादा बनाए रखने के लिए चुपचाप राज्यपाल की बात मान गये। इसे उनकी सहमति में शामिल नहीं किया जा सकता है। 

आर. एन. रवि की इस हरकत पर उनकी शैक्षणिक समझ पर सवाल उठ गया है। लोग आरोप लगा रहे हैं कि राज्यपाल रवि के पास न तो शैक्षणिक दृष्टिकोण है, न ही उन्हें तमिलनाडु की सांस्कृतिक विविधता की कोई समझ है। राज्यपाल पर यह भी आरोप लग रहा है कि वे बार-बार अपनी अज्ञानता और धार्मिक झुकाव के कारण समाज में विभाजन फैलाने वाले बयान देते हैं। 

वहीं काँग्रेस के सदस्यों ने भी आर. एन. रवि की इस हरकत की तीखी आलोचना की है। काँग्रेस से जुड़ी हुई एक सोशल मीडिया यूज़र ने तमिलनाडु के राज्यपाल पर सीधा हमला करते हुए उन्हें तमिलनाडु का भगवाकरण करने वाला बताया। इस यूज़र ने लिखा है कि “मोदी के गुर्गे तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि संवैधानिक पद पर आसीन हैं और छात्रों से "जय श्री राम" का नारा लगाने को कह रहे हैं।

भाजपा और आरएसएस के परजीवी तमिलनाडु का भगवाकरण करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे ध्रुवीकरण का माहौल बनाकर चुनावी जीत के लिए अपना 'नफरत का कार्ड' खेल सकें।“

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इसके अलावा भी कई और सोशल मीडिया पोस्ट नज़र आए जिनमें आर. एन. रवि को हटाने की मांग की गई। गौरतलब है आर. एन. रवि पर हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट की नज़र भी तीखी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने आर. एन. रवि की साफ तौर पर आलोचना करते हुए उनसे कहा था कि वे राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोककर नहीं रख सकते। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सीमित अधिकार रखते हैं और उन्हें निर्वाचित सरकार की सलाह पर समयबद्ध निर्णय लेना होता है। राज्यपाल द्वारा ऐसा करना संविधान के अनुसार गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि राज्यपाल का काम राजनीतिक विचारधारा के प्रचार का नहीं, बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारियों के पालन का है।

आर. एन. रवि की हालिया तमाम हरकतों को देखते हुए यही लगता है कि वे संवैधानिक ज़िम्मेदारी कम और अन्य ज़िम्मेदारी अधिक निभा रहे हैं। अब सवाल उठता है क्या इस हरकत के बाद लोगों की मांग के अनुसार उन पर कोई कार्रवाई होगी?