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यूपी: 2022 का चुनाव लड़ेंगे चंद्रशेखर, एंटी-बीजेपी फ़्रंट बनाने में जुटे

उत्तर प्रदेश में हालांकि विधानसभा चुनाव में 2 साल का समय बाक़ी है लेकिन भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद रावण इसकी तैयारियों में जुट गये हैं। चंद्रशेखर ग़ैर-बीजेपी दलों का राजनीतिक फ़्रंट बनाने जा रहे हैं और इस सिलसिले में उनकी उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर से मुलाक़ात हो चुकी है। राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष हैं। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजभर को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 

राजभर से मुलाक़ात के बाद चंद्रशेखर ने कहा, ‘गठबंधन को लेकर मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि राजनीति में कुछ भी संभव है। आने वाले दिनों में हम बीजेपी को रोकने के लिये एक मजबूत गठबंधन के साथ आगे आयेंगे।’ आज़ाद ने कहा कि अगर इस काम में उन्हें किसी की मदद की ज़रूरत पड़ेगी तो वह मदद भी लेंगे।

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अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, आज़ाद ने कहा, ‘जहां तक दलित, मुसलिम और ओबीसी की राजनीति का सवाल है, कांशीराम जी इसी तरह की राजनीति करते थे और हमारी जिम्मेदारी इसे आगे ले जाने की है।’ 

Bhim Army chief chandra shekhar Azad Ravan anti BJP front in UP - Satya Hindi
जनसभा को संबोधित करते चंद्रशेखर आज़ाद रावण।
आज़ाद ने कहा कि वह अपने राजनीतिक संगठन के बारे में 15 मार्च को लखनऊ में घोषणा करेंगे। भीम आर्मी प्रमुख ने कहा कि इस मौके़ पर राजनीति के कई बड़े चेहरे, जिसमें पूर्व सांसद, विधायक भी शामिल होंगे, उपस्थित रहेंगे। आज़ाद ने कहा कि इस बात की भी संभावना है कि आने वाले दिनों में वह किसी बड़े राजनेता के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ सकते हैं। 
आज़ाद नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर ख़ासे मुखर रहे हैं। दिल्ली के चांदनी चौक पर इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शन में वह शामिल हुए थे। इसके अलावा भी कई जगहों पर आज़ाद इस क़ानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं।

ओमप्रकाश राजभर ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया कि आज़ाद विपक्षी दलों वाले गठबंधन में शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि इस गठबंधन को भागीदारी संकल्प मोर्चा का नाम दिया गया है। इस मोर्चे में अभी 8 राजनीतिक दल शामिल हैं। 

क्या होगा असर?

उत्तर प्रदेश में विपक्ष एकदम ख़त्म दिखाई देता है। नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों में बहुजन समाज पार्टी तो सड़क पर उतरी ही नहीं। सपाइयों ने इक्का-दुक्का प्रदर्शन किये। कांग्रेस ने प्रदर्शन तो किये लेकिन उसके पास प्रदेश में मजबूत संगठन नहीं है। इस वजह से योगी आदित्यनाथ सरकार के ख़िलाफ़ कोई बुलंद आवाज़ उठती नहीं सुनाई देती। 

ऐसे में अगर भीम आर्मी प्रमुख राजनीति में आते हैं तो इसका असर हो सकता है। क्योंकि आज़ाद के बाद युवाओं की बड़ी टीम है और बड़ी संख्या में दलित वर्ग उनके साथ जुड़ रहा है। इसके अलावा अल्पसंख्यक वर्ग में असरदार मुसलिम वर्ग के युवा उनके साथ खड़े दिखाई देते हैं। चंद्रशेखर अपने भाषणों में बहुजन समाज की बात करते हैं। ऐसे में उनका सीधा लक्ष्य दलितों के साथ-साथ पिछड़ों को भी जोड़ना है। 

मुसलिम समुदाय ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को वोट देकर बताया है कि वह बीजेपी को हराने वाले किसी भी दल के साथ जा सकता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में फिलहाल उसके पास कोई विकल्प नहीं है औऱ वह बीजेपी को टक्कर दे सकने वाले विकल्प की तलाश में है।

लगभग शून्य विपक्ष वाले उत्तर प्रदेश में अगर आज़ाद, ओमप्रकाश राजभर दलितों, पिछड़ों और मुसलिम समाज के बड़े हिस्से को अपने गठबंधन से जोड़ने में कामयाब रहते हैं तो निश्चित रूप से इससे योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

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बीजेपी भी सतर्क है

दूसरी ओर, बीजेपी पूरी तरह सतर्क है और लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद भी उसके नेता घर नहीं बैठे और विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गये। उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग की आबादी 54 फ़ीसदी के आसपास है। बीजेपी चंद्रशेखर आज़ाद और राजभर की सक्रियता से अनजान नहीं है। इसलिये वह दलित और पिछड़े वर्ग के अपने नेताओं को लगातार आगे बढ़ा रही है। 

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह व अन्य।

उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के लिए स्वतंत्रदेव सिंह का चयन बीजेपी की इसी रणनीति का हिस्सा है। कुर्मी समाज से आने वाले स्वतंत्रदेव सिंह का चयन पिछड़ों को जोड़ने के लिये ही बनाया गया है। पश्चिम में जाटों के नेता के तौर पर संजीव बालियान, पूरब में राजभर बिरादरी के अनिल राजभर, दलितों में खटीक समुदाय के विद्यासागर सोनकर के जरिए बीजेपी अब इन जातियों को साधना चाहती है। इसके अलावा उसने अपना दल के साथ गठबंधन भी किया हुआ है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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