डॉ. वेदप्रताप वैदिक की अनुपस्थिति को 14 मार्च को एक साल पूरा हो गया। महानगर में तब्दील हो चुका उनका इंदौर शहर अपने जिन शानदार पुरखों और आत्मीयजनों को लगातार याद करता रहता है डॉ. वैदिक भी उनमें शामिल हो गए। डॉ. वैदिक अपनी सारी लड़ाइयां दिल्ली में लड़ते रहते थे पर उनका दिल मालवा में बसा रहता था। वे कहते नहीं थकते थे कि उन्हें इंदौर और मालवा जैसा सुख दिल्ली में नहीं मिलता।
इंदौर को देश के नागरिक और आप्रवासी भारतीय अलग-अलग शक्लों में जानते हैं पर मालवा का यह खूबसूरत शहर अपनी धुरी पर एक-सा ही है। दुनिया के लोगों के लिए इंदौर की नई पहचान भारत के सबसे स्वच्छ शहर के तौर पर कर दी गई है। इंदौर को कुछ ज़्यादा क़रीब से जानने का दावा करने वालों के लिए शहर पोहा, जलेबी, कचोरी और स्वादिष्ट नमकीन-मिष्ठान का ठिकाना है। प्रधानमंत्री भी इंदौर के ख़ान-पान की तारीफ़ करते नहीं थकते। हक़ीक़त का इंदौर ऐसा नहीं है। इंदौर के लोग कुछ अलग कारणों से भी अपने शहर से मोहब्बत करते हैं। इन कारणों में एक उन विभूतियों की शहर की रगों में उपस्थिति थी जिनमें डॉ. वैदिक भी शामिल थे।