जोशीमठ को देवभूमि का द्वार कहा जा सकता है। लेकिन अब यह शहर खुद ही खतरे में है। घरों के नीचे से पानी रिस रहा है, घरों में दरारें पड़ रही हैं और शहर धंसता जा रहा है। सवाल है कि इतने संवेदनशील शहर को बेसहारा क्यों छोड़ा गया? कौन है इसका जिम्मेदार? क्या चौड़ी सड़कें और बड़े बिजली प्रोजेक्ट्स ने मुसीबत बढ़ा दी?

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