1945 में बने संयुक्त राष्ट्र चार्टर में यह घोषणा की गई कि "सभी के लिए, बिना किसी भेदभाव के—चाहे वह नस्ल, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर हो—मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति सार्वभौमिक सम्मान और इसका अनुपालन" सुनिश्चित किया जाएगा। इसी चार्टर के तीसरे अध्याय के अनुच्छेद-8 में अलग से लैंगिक समानता पर बात की गई। इसमें लिखा गया कि “संयुक्त राष्ट्र अपने मुख्य और सहायक अंगों में पुरुषों और महिलाओं को किसी भी भूमिका में और समान परिस्थितियों में भाग लेने की पात्रता पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाएगा।”

वैश्विक स्तर पर इस घोषणा के बहुत मायने थे क्योंकि अब भारत और दुनिया के तमाम देशों ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि आने वाले समय में महिला और पुरुषों के बीच किए जाने वाले भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं होगी। लेकिन यह घोषणा सालों तक कोई संस्थागत रूप नही ले सकी। न जाने कितने महिला आंदोलन चलाए गए, तीस वर्षों तक लगातार कोशिशें की गईं उसके बाद 1975 में वह दिन आया जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1975 को ना सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया बल्कि 1976 से 1985 के दशक को महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया गया। 8 मार्च 1975 के दिन ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की भी घोषणा कर दी गई। 1976 में महिला विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र का फण्ड (UNIFEM) भी बनाया गया जो आगे चलकर 2010 में एक नया रूप लेने वाला था। 1975 में ही मेक्सिको सिटी में पहली महिला विश्व कांफ्रेंस का आयोजन भी किया गया।

महिला अधिकारों की यात्रा

महिलाओं के अधिकारों की यह यात्रा अब चल पड़ी थी। इसके बाद 1995 में एक महत्वपूर्ण पड़ाव आया जब बीजिंग में आयोजित चौथी विश्व महिला कांफ्रेंस में ‘बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफ़ॉर्म फ़ॉर एक्शन’ (BPfA) स्वीकार किया गया। भारत भी इस घोषणा का हस्ताक्षरकर्ता देश है। बीजिंग डिक्लेरेशन के माध्यम से पहली बार महिलाओं के अधिकारों, सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए एक ग्लोबल दस्तावेज तैयार किया गया। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, हिंसा और ग़रीबी समेत 12 आयाम निश्चित किए गए जिन पर काम किया जाना था। महिला अधिकारों की यह यात्रा, UNIFEM को समेटती हुई, 2 जुलाई 2010 को UN Women के रूप में एक नए प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँच गई। अब संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के लिए एक बिल्कुल अलग संस्थान बन चुका था। अब इस संगठन को लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण के साथ साथ LGBTQ+ समुदाय के लिए भी काम करना था। UN Women को यूनिसेफ, यूएनडीपी और यूएनएफपीए जैसे संगठनों के साथ मिलकर काम करना था जो पहले से ही इस दिशा में कुछ न कुछ काम कर रहे थे।

बीती 2 जुलाई को महिलाओं के लिए बने इस संयुक्त राष्ट्र के संगठन को 15 साल पूरे हो गए हैं और बीजिंग घोषणा के 30 साल भी पूरे होने वाले हैं इसलिए यह 2025 का साल बड़ा ही महत्वपूर्ण है।

अब सवाल यह उठता है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय 3 से शुरू इस सफ़र के 2025 तक पहुँचने के बाद महिलाओं के लिए क्या बदला है। क्या उनकी चुनौतियाँ कम हुई हैं? क्या भारत जैसे देश जहाँ दुनिया की सबसे ज़्यादा महिला आबादी है, यहाँ उनके हालातों में कोई सुधार हुआ है?

यूएन वीमेन की रिपोर्ट

UN Women ने महिलाओं के हालातों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े अपनी हालिया रिपोर्ट में दर्ज किए हैं। इसके अनुसार आज भी 4 देशों में से 1 देश में महिला अधिकारों के ख़िलाफ़, विरोधी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। इन देशों में आज भी महिलाओं के पास पुरुषों की अपेक्षा 64% कम क़ानूनी अधिकार हैं।

पितृसत्ता अपने क़दम पीछे लेने को तैयार नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 51% देशों में अभी भी महिलाओं को पुरुषों के समान काम नहीं करने दिया जाता, उन्हें कई ऐसे कामों को करने की इजाज़त नहीं है जिन्हें करने की इजाज़त पुरुषों को है।

दुनिया भर के संसदों और विधानमंडलों में आज भी 75% संख्या पुरुषों की है। मतलब कानून बनाने का काम करने वाले 75% लोग आदमी हैं। मतलब यह हुआ कि कानून बनाने में अपनाई गई प्रक्रिया में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 25% है। भारत जैसे देशों में तो यह स्थिति और भी ख़राब है। यहाँ, 18वीं लोकसभा में मात्र 13.6% महिलाएं हैं और राज्य विधानसभाओं में यह स्थिति बदतर होकर लगभग 9% पहुँच जाती है। 

जिस देश में कानून बनाने और संविधान में सुधार करने का काम 90% पुरुषों के माध्यम से हो रहा है वहाँ लैंगिक समानता, प्रतिबद्धता कम ‘दया आधारित’ ज़्यादा है।

2023 में दुनिया में 85 हज़ार महिलाओं की हत्या 

रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ़ 2023 में ही पूरे विश्व में 85 हज़ार महिलाओं और लड़कियों की जानबूझकर हत्या कर दी गई। इस बड़ी संख्या में इन महिलाओं के हत्यारे ज़्यादातर उनके क़रीबी साथी या पारिवारिक सदस्य थे। भारत में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध 2018 की अपेक्षा 2022 में 12.9% बढ़कर 4,45,256 तक पहुँच गए। मुझे एक साल की देरी से चल रहे NCRB के अगले आंकड़े का इंतज़ार है जिससे मैं यह पता लगा सकूँ कि भारत में महिलाओं के साथ बीते वर्षों में और क्या क्या बीता? सिर्फ़ NCRB ही नहीं, सांख्यिकीय मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट- भारत में महिलाएं और पुरुष, 2023 - में बताया गया है कि भारत में हर रोज़ महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों को लेकर 1220 FIR दर्ज हो रही हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15-49 आयु वर्ग की एक तिहाई महिलाएं अर्थात 33% महिलाएं किसी ना किसी किस्म की हिंसा झेल रही हैं।

फिर भी समाज में एक एजेंडा चलाया जा रहा है जिसमें बार बार यह बताने की कोशिश हो रही है कि कुछ महिलाओं ने अपने पतियों पर अत्याचार किया, और इस बात की आड़ में सभी महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है। कुछ मामलों को पूरे जेंडर पर थोपने की इस कोशिश में स्वार्थी समूह शामिल हैं जिसमें महिलायें और पुरुष दोनों ही हैं। जबकि असलियत कुछ और ही है। NCRB, 2022 के अनुसार अभी भी महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले 31.4% अपराध ससुराल पक्ष और पतियों द्वारा किए जाते हैं जिसमें अमानवीय हिंसा सबसे प्रमुख पहलू है। इसके अलावा 19.2% अपराध अपहरण के हैं और बलात्कार व छेड़खानी के अपराधों का प्रतिशत लगभग 26% है। सवाल यह है कि महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़खानी, उनका अपहरण आदि करने में कौन शामिल होता है? क्या इस सच को नकारा जा सकता है कि महिला के लिए पुरुष ही सबसे बड़ा खतरा है, पुरुष ही सबसे बड़ा ‘जानवर’ है, पुरुष ही है जिससे उसे डर लगना चाहिए, पुरुष ही है जो उसे अकेले में और खुले में, दोनों ही अवस्था में डराता है? 

संघर्ष क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति

दो चार मामलों को प्रमाण के तौर पर लेकर पूरे जेंडर के साथ हो रहे उत्पीड़न को नकारा नहीं जा सकता है। अपने चारों ओर देखिए, देश ही नहीं, दुनिया भर में देखिए। महिलाओं के लिए स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं। आंकड़े चीख रहे हैं कि, दुनिया भर में 60 करोड़ से अधिक महिलाएं और लड़कियाँ अब ऐसे इलाकों में रह रही हैं जो किसी न किसी संघर्ष क्षेत्र (conflict zone) से 50 किलोमीटर की सीमा में हैं। सबसे खास बात यह कि यह संख्या पिछले एक दशक में 50% बढ़ी है। चाहे सूडान का संघर्ष हो या ग़ज़ा का या फिर मणिपुर का, करोड़ों की संख्या में हिंसा और युद्ध प्रभावित महिलाएं और बच्चे एक सच्चाई हैं। लेकिन खबरों में ऐसे दिखाया जाता है जैसे युद्ध का सबसे बड़ा प्रभाव पुरुषों पर ही पड़ रहा है, सिर्फ़ पुरुष ही मारा जा रहा है। 

महिलाओं को नकारना एक वैश्विक अभ्यास होता जा रहा है। UN Women की रिपोर्ट यह बताती है कि 2020 से 2023 के बीच हुई 80% शांति वार्ताओं में महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखा गया। जबकि दुनिया की तमाम ऐसी रिपोर्ट और अध्ययन बताते हैं कि जिन शांति वार्ताओं में महिलाएं शामिल होती हैं उनके असफल होने की संभावना 64% तक कम होती है, इसके अलावा महिलाओं के नेतृत्व वाली वार्ताओं और समझौतों के 15 वर्षों तक टिके रहने की संभवाना होती है।

अपनी योग्यता के बावजूद वैश्विक स्तर पर महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 20% कम वेतन पाती हैं, जबकि वे पुरुषों के बराबर ही कार्य करती हैं।

घरेलू फ्रंट पर और समर्पण के लिहाज से भी महिलाओं के योगदान को भले ही कमतर करके आंका जाता रहे पर सच्चाई यह है कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 2.5 गुना अधिक अवैतनिक देखभाल का कार्य (जैसे बच्चों की देखभाल, बुज़ुर्गों की सेवा, घरेलू काम) करती हैं।

विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी किया जाने वाला लैंगिक अंतराल सूचकांक, एक ऐसा सूचकांक है जो दावों और सच्चाई के बीच के अन्तर को उजागर करने का काम करता है। 2013 में 101वें स्थान से पिछले दस सालों में, भारत वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक में 30 स्थानों की गिरावट के साथ 2024 में 131वें स्थान पर पहुँच गया है। 148 देशों में 131वाँ स्थान यह बताने के लिए पर्याप्त है कि चाहे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान हो या मिशन शक्ति, सभी बस सरकार की पीठ थपथपाने का अखबारी मुद्दा ज़्यादा है, महिला सशक्तिकरण के लिए इन योजनाओं से कुछ हो नहीं पाया। 

सबसे अधिक संख्या वाला यह महिलाओं का देश भारत, अपने नीचे सरकते हुए हालातों से बहुत चिंतित करता है। 2030 आने वाला है और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने वाली अवधि भी समाप्त होने वाली है। लैंगिक समानता से संबंधित सतत विकास लक्ष्य-5, भारत में बहुत शर्मनाक अवस्था में है। 
  • भारत में अभी भी महिलाएँ औसतन पुरुषों से 28% कम पैसे कमाती हैं (Global Gender Gap Report 2023)।
  • भारत में 93% महिलाएँ बिना वेतन के घरेलू या पारिवारिक श्रम में संलग्न हैं (NSSO, Periodic Labour Force Survey)।
  • महिला श्रम भागीदारी दर (FLPR) 2023 में महज 37% रही, जबकि पुरुषों की 78.5%।

18 से कम उम्र की 2 करोड़ लड़कियाँ स्कूल नहीं जातीं

भारत में तो सरकार सिर्फ़ भाषणों, अखबारी विज्ञापनों और खबर प्रबंधन के ऊपर खड़ी है, महिलाओं के गिरते हालातों की असलियत से उसका कोई संबंध नहीं नजर आता। जहां पर एक तरफ सरकार को डिजिटल माध्यमों से हो रहे अनगिनत यौन शोषणों के मामलों को सुलझाने के लिए किसी भी किस्म की चिंता नहीं है। भारत में 6–18 वर्ष की लगभग 2 करोड़ लड़कियाँ स्कूल नहीं जातीं (UNICEF, 2022), सरकार को इसकी चिंता नहीं है, खुलेआम स्कूलों को बंद किया जा रहा है। अभी भी मातृत्व मृत्यु दर, प्रति एक लाख में 103 पर बनी हुई है, अभी भी देश की 59% महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं और वहशी किस्म के गैंगरेप रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। अपराधियों को न खाकी से डर है न संसद के कानून और संविधान से और न ही न्यायपालिकाओं में बैठे न्यायाधीशों से। 

वहीं दूसरी तरफ़, ताकतवर व्यक्ति महिलाओं का यौन शोषण करने के बाद बचकर निकल लेता है। भारतीय संस्कृति के तथाकथित रखवाले आदमी जिन्हें सरकारों का समर्थन प्राप्त है वो महिलाओं की पसंद और नापसंद तय कर रहे हैं। सरकारें कानून बनाकर यह तय करना चाह रही हैं कि महिलाएं किससे शादी करेंगी किससे नहीं! न्यायालय बलात्कार पीड़िताओं पर बलात्कारियों से विवाह करने के फैसले थोप रहे हैं, महिलाओं के पहनावों को लेकर टीका-टिप्पणियाँ की जा रही हैं।

1% महिलाएँ ही ऐसे देशों में जहाँ लैंगिक समानता ठीक 

महिला सशक्तिकरण सूचकांक (WEI) और वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (GGPI) को आधार बनाकर UN Women और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा संयुक्त रूप से 2023 में एक और रिपोर्ट तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में 114 देशों का मूल्यांकन किया गया था। इसके अनुसार, दुनिया भर में केवल 1% महिलाएं ही ऐसे देशों में रहती हैं जहाँ महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता का स्तर उच्च है। वहीं, 90% से अधिक महिलाएं उन देशों में रहती हैं जहाँ महिला सशक्तिकरण कम या मध्यम स्तर का है और लैंगिक समानता प्राप्त करने में प्रदर्शन भी कम या मध्यम स्तर का ही है। दुखद है लेकिन भारत इसी 90% समूह का हिस्सा है।

जब तक शासन करने वाली, कानून बनाने वाली और न्याय करने वाले समूह में उचित महिला भागीदारी नहीं होगी तब तक भारत समेत पूरी दुनिया में महिलाएं अपने सशक्तिकरण के लिए उस लैंगिक समूह पर आश्रित बनी रहेंगी जिसने हजारों वर्षों से महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण को रोकने का हर संभव प्रयास किया है।