अभी कुछ दिनों पहले 11 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 16 साल की एक दलित समुदाय की लड़की के साथ 5 लोगों ने गैंगरेप किया; इसके अलावा महाराष्ट्र के सतारा में 12 अक्टूबर को 13 साल की एक लड़की को घर में अकेला पाकर उसके पड़ोसी ने उसका बलात्कार करने की कोशिश की लेकिन जब लड़की ने विरोध और शोर मचाया तो पड़ोसी ने पास में रखी घरेलू चक्की के पाट से पीट-पीटकर मार डाला; नागपुर में एक लड़के ने एक लड़की के साथ पहले इंस्टाग्राम पर दोस्ती की और फिर उसका यौन उत्पीड़न किया; नई दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित संस्थान साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के कैंपस के अंदर गार्ड्स और कुछ अन्य ने मिलकर बी.टेक प्रथम वर्ष की छात्रा के साथ गैंगरेप की कोशिश की और उसके कपड़े फाड़ दिए, शिकायत किए जाने पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उसका आवश्यक सहयोग तक नहीं किया; पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की छात्रा के साथ 4 लोगों ने गैंगरेप किया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने अपने ग़ैर-जिम्मेदाराना बयान से यह साबित कर दिया कि महिला सुरक्षा को लेकर उनकी प्रतिबद्धता लगभग ज़ीरो है; हरियाणा के गुरुग्राम में 29 वर्षीय, विदेशी भाषा की शिक्षिका के साथ 4 जिम ट्रेनर लड़कों ने दो हफ्तों में दो बार गैंगरेप किया और जान से मारने की धमकी भी दी; हरियाणा के मुरथल में स्थित सर छोटूराम यूनिवर्सिटी के कैंपस में एक छात्रा के साथ यूनिवर्सिटी में कार्यरत एक चपरासी ने बलात्कार का प्रयास किया; और केरल का 26 वर्षीय, आनंदु अजी, जो सॉफ्टवेर इंजीनियर और आरएसएस का स्वयंसेवक भी था, उसने बार बार बलात्कार और यौन उत्पीड़न से मजबूर और लाचार होकर 9 अक्टूबर को आत्महत्या कर ली, आनंदु ने अपने अंतिम नोट में अपनी मौत का जिम्मेदार आरएसएस के पदाधिकारियों को ठहराया।
ये सभी मामले बीते दो सप्ताह के भीतर के हैं। आनंदु के मामले को छोड़ दिया जाए तो सभी मामले महिलाओं के बलात्कार और यौन उत्पीड़न से ही जुड़े हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की पिछली रिपोर्ट- 2021, 2022 और 2023 देखने से यह पता चलता है कि देश में महिलाओं के बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले की बाढ़ आ गयी है। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़कर 4,48,211 हो गए। प्रत्येक 1 लाख महिलाओं में 66.2 महिलाएं अपराध का शिकार हो रही हैं। इन अपराधों में सबसे बड़ा शेयर-लगभग 30%- ‘क्रूरता’ जैसे अपराधों का है जिसके लिए महिलाओं के पति या उनके सगे संबंधी ज़िम्मेदार हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के (संख्या के) मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। जबकि प्रति लाख महिलाओं में सर्वाधिक अपराध के मामले में तेलंगाना, राजस्थान, ओडिशा और हरियाणा जैसे राज्य प्रमुख हैं।
सरकारें कितनी संवेदनशील
यहाँ, इन तथ्यों से अधिक फ़र्क़ नहीं पड़ता कि किसी राज्य विशेष में क्या स्थिति है। मेरी नज़र में तो उस संदेश का असर होता है जो उच्च पदों पर बैठे लोगों द्वारा दिया जाता है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर ऊपर दिया गया ममता बनर्जी का संदेश देश भर के लोगों के मन में यह बात स्थापित कर देता है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ बलात्कार को लेकर सरकारें कितनी कम संवेदनशील और कितनी कम गंभीर हैं। यह बात समझना जरूरी है कि आखिर क्या बात है जो महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन अपराध कम नहीं हो रहे हैं बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ते ही जा रहे हैं।
बिलकिस बानो का उदाहरण लीजिए- गुजरात में दशक दर दशक बीजेपी की सरकार है, यहाँ 2022 में बिलकिस बानो के साथ (गुजरात दंगों के दौरान, 2002 में) गैंगरेप करने वाले और उसके बच्चे को उसके सामने ही पटककर मार देने वाले 11 दरिंदों को गुजरात सरकार ने बेशर्मी से एक कानून की आड़ में छिपकर जेल से छोड़ दिया, उन्हें सार्वजनिक रूप से फूल माला पहनाकर उनकी रिहाई का जश्न मनाया गया, जबकि ऐसे आपराधिक लोगों की रिहाई पर जश्न मनाना पीड़ित को दर्द देना है, उसे असुरक्षित महसूस कराना है। इस शर्मनाक कृत्य से पूरे देश में यह संदेश गया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के वर्चस्व वाले प्रदेश गुजरात में महिलाओं के साथ इतनी भीषण यौन क्रूरता करने वालों को भी सम्मान प्राप्त होता है। इतना अश्लील और निर्लज्ज निर्णय लेने के लिए गुजरात की बीजेपी सरकार ने स्वतंत्रता दिवस का दिन चुना था। एक तरह से यह भारत के स्वाधीनता संग्राम का अपमान था, संविधान बनाने वालों का अपमान था और साथ ही देश की आधी आबादी का भी अपमान था लेकिन जब तक सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया तब तक न राज्य सरकार को शर्म आई और न ही केंद्र सरकार को। 2024 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी 11 दरिंदों को फिर से जेल भेजा तो न्याय की ख़ुशबू महसूस की गई। बिलकिस बानो ने आश्वस्त होकर कहा कि ‘ये होता है न्याय। मैं सर्वोच्च न्यायालय का धन्यवाद करती हूं कि उन्होंने मुझे, मेरे बच्चों और सारी महिलाओं को समान न्याय की आशा दी।'
लेकिन सवाल यह है कि तमाम उच्च पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों ने क्या संदेश दिया? सरकारों के संदेश तो साफ़ थे कि उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
कविंदर गुप्ता का केस
ऐसा ही एक मामला कविंदर गुप्ता का है। जनवरी 2018 में बकरवाल समुदाय की 8 साल की बच्ची का एक मंदिर में 5-6 दिनों तक सामूहिक बलात्कार हुआ और उसकी हत्या कर दी गई। अप्रैल 2018 में कविंदर गुप्ता जब जम्मू एवं कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री बनाये गए तो उन्होंने मीडिया के सामने आकर कहा कि ‘कठुआ जैसी छोटी सी घटना को अनावश्यक तरीके से बड़ा बनाया गया है।’ इतनी ख़राब टिप्पणी के बाद भी केंद्र सरकार में बैठे नरेंद्र मोदी ने उनके ख़िलाफ़ कोई एक्शन नहीं लिया। इतनी गहरी संवेदनहीनता जो पूरे मानवीय विकास को शर्मसार कर सकती हो उसके ख़िलाफ़ कोई एक्शन ना लिया जाना बलात्कार जैसे अपराध को लगातार मिल रही स्वीकृति के रूप में समझा जाना चाहिए।आगे चलकर यह और पुख्ता भी हो गया कि 8 साल की बच्ची के सामूहिक बलात्कार पर इतनी निम्नस्तरीय टिप्पणी करने वाले कविंदर गुप्ता को 2025 में केंद्र सरकार द्वारा एक और उपहार दिया गया, अब उन्हें लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश का उप-राज्यपाल बना दिया गया।
अश्लीलता और बलात्कार को उच्च पायदान पर चढ़ाकर सम्मानित किए जाने की वजह से ही देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों को ‘न्यू नॉर्मल’ मान लिया गया है। अगला उदाहरण भारतीय सेना की अधिकारी सोफिया क़ुरैशी का है। मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार में वन मंत्री कुँवर विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना की अधिकारी सोफिया क़ुरैशी पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि- “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकियों को सबक सिखाने के लिए उसी समुदाय की बहन को भेजा है जिससे आतंकवादी आते हैं..।”
एक झटके में इस आदमी ने भारतीय सेना और देश के सभी मुसलमानों को आतंकवाद के समकक्ष खड़ा कर दिया। अच्छा तो यह रहता कि पीएम मोदी इस पर एक्शन लेते हुए इन्हें पार्टी से बर्खास्त करने की प्रक्रिया शुरू करते लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उल्टा। असल में, मंत्री जी पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सख़्त रवैया अपनाते हुए FIR का आदेश दे दिया था। लेकिन यह केंद्र की मोदी सरकार को अच्छा नहीं लगा। इसीलिए इस FIR का आदेश देने वाले जज जस्टिस अतुल श्रीधरन के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में किए गए ट्रांसफर को रोक दिया गया।
जस्टिस श्रीधरन का तबादला
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस श्रीधरन का ट्रांसफर छत्तीसगढ़ किए जाने की सिफारिश की थी जिसपर केंद्र की मोदी सरकार ने आपत्ति कर दी और सुप्रीम कोर्ट ने इस आपत्ति के सामने झुकते हुए जस्टिस श्रीधरन का ट्रांसफर इलाहाबाद उच्च न्यायालय कर दिया। इस तरह केंद्र सरकार ने जस्टिस श्रीधरन के सुप्रीम कोर्ट पहुँचने के दरवाज़ों को बंद करने की कोशिश की, क्योंकि इलाहाबाद में 160 से ज़्यादा जज हैं और छत्तीसगढ़ में 20 से कुछ अधिक। छत्तीसगढ़ में वरिष्ठता पाना आसान होता और सुप्रीम कोर्ट में पहुँचने का रास्ता भी आसान हो जाता लेकिन केंद्र सरकार ने इसलिए मुंह फुला लिया क्योंकि जज साहब ने एक असभ्य मंत्री जो देश विरोधी, देश को बाँटने वाली और सेना को अपमानित करने वाली बातें कर रहा था, उसके ख़िलाफ़ FIR का आदेश दे दिया था।
सच्चाई ये है कि पीएम मोदी ने फिर से सिद्ध किया कि वो और उनका दल ऐसे घिनौने लोगों को, जो देश की सेना और महिलाओं का अपमान करते हैं, उन्हें संरक्षण देते रहेंगे। ऐसा ही मामला महिला पहलवानों-विनेश फोगाट और साक्षी मलिक का भी था जिस पर मोदी जी ने ना सिर्फ़ चुप्पी साधी बल्कि जिस बृजभूषण शरण सिंह पर महिलाओं ने आरोप लगाए थे उस पर कोई कार्यवाही भी नहीं की।
ताजा उदाहरण समाजवादी पार्टी सांसद इक़रा हसन का है। कैराना सांसद इक़रा हसन जब सहारनपुर के शिव-लक्ष्मी मंदिर में हुई तोड़फोड़ के बाद वहाँ पहुँचीं तो उनपर, उनके पिता और भाई पर अभद्र टिप्पणियाँ की गईं। उन्होंने भावुक होकर क्षेत्र के लोगों से भावनात्मक सहयोग मांगा और आग्रह किया कि ऐसी बातें करने वालों पर आप लोगों को प्रतिक्रिया देना चाहिए। इसके एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा करते हुए कहा था कि- यूपी में महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करने वालों को यमराज के पास भेज दिया जाएगा। लेकिन उनके ही प्रदेश की एक महिला सांसद पर धर्म सूचक गालियों का इस्तेमाल किया गया और उनकी सरकार ने आवश्यक कार्यवाही नहीं की। कौन गंभीरता से लेगा ऐसी सरकारों को और सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्रियों और प्रधानमन्त्री को? क्योंकि जिनके वादे गंभीरता से निभाए नहीं जाते ऐसी सरकारें और उसके मुखिया भरोसे के लायक नहीं होते हैं। जब देश की संसद से विशेषाधिकार प्राप्त एक महिला अभद्र टिप्पणियों से सुरक्षित नहीं तो आम महिलाओं का क्या होगा? गरीब और वंचित वर्ग की महिलाओं का क्या होगा? कौन उनका सम्मान और गरिमा सुनिश्चित करेगा?
विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी किए जाने वाले ‘लैंगिक अंतराल सूचकांक’ में भारत वर्ष 2025 में दो स्थान और नीचे खिसककर 131वें (148 देशों में) स्थान पर पहुँच चुका है। सबसे बुरी हालत राजनैतिक प्रतिनिधित्व में है। भारत में महिलाओं का संसदीय प्रतिनिधित्व घटकर 2025 में मात्र 13.8% रह गया है। मंत्रियों के रूप में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 30% (2019) से घटकर 2025 में मात्र 5.6% रह गया है। यह सभी महिलाओं के बारे में है लेकिन अगर इक़रा हसन जैसे अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाली महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात करें तो यह अपमानजनक रूप से बहुत नीचे जा चुका है। इन सब के कारण राजनैतिक भूमिकाओं में रहने वाली महिलाओं को अपमानित करने और धमकाने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। पूरी दुनिया देख रही है कि भारत, जहाँ महिलाओं को देवी के रूप में मानने की बात की जाती है उसका नेतृत्व उन्हीं महिलाओं की गरिमा को तार-तार करने वालों को पुरस्कृत कर रहा है। यह बहुत निंदनीय है।
लैंगिक अंतराल सूचकांक में लगातार गिरते भारत को यह सोचना होगा कि इस तरह तो आधी आबादी को न्याय ही नहीं मिल सकेगा। नज़रिया बदलना होगा और ज़रूरत पड़े तो नेतृत्व बदलना होगा। जो नेतृत्व बच्चियों के बलात्कार, क्रूर बलात्कारों, महिला सैन्य अधिकारी के अपमान और एक महिला सांसद के अपमान पर न सिर्फ़ चुप रह जाता है बल्कि इसके अपराधियों को संरक्षण प्रदान करता है उससे महिला सुरक्षा की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है।