अफ़ग़ानिस्तान अभी पूरी दुनिया के ईमान का इम्तिहान ले रहा है। ईमान, इंसानियत के बगैर जिसके कोई मायने नहीं। अफ़ग़ानिस्तान से आप कैसे पेश आएँगे, इससे आपके चरित्र और नैतिकता का अंदाज़ होगा। ‘आप’ के क्या मायने हैं? हम जानते हैं कि दुर्भाग्यवश यह ‘आप’ देशों की शक्ल में ही पहचाना जाता है। यानी मैं या आप, बतौर इंसान चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हमारी तरह से कुछ भी करने का फ़ैसला हमारी सरकारें करती हैं। हमारे मुल्कों के नाम पर। और अभी अफ़ग़ानिस्तान के भीतर किसी भी तरह के हस्तक्षेप से बाक़ी मुल्क इंकार कर रहे हैं। मानो, उन्होंने कभी यह किया ही न हो। अफ़ग़ानिस्तान में जनतंत्र और उदार सरकार हो कि एक निरंकुश अनुदार, जनतंत्र विरोधी सरकार हो, यह अफ़ग़ानिस्तान का अंदरूनी मसला है! अगर अफ़ग़ानिस्तान की जनता यही चाहती है तो ये बेचारे जनतंत्र उसमें कर ही क्या सकते हैं? 
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के हावी होने के बाद दुनिया के तथाकथित ताक़तवर मुल्कों की प्रतिक्रिया ऐसी है मानो अफ़ग़ान ही आज के हालात के लिए ज़िम्मेवार हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की सेना अगर नहीं लड़ सकी तो आख़िर अमेरिका कितनी देर उसे बचा सकता है! इसपर अब इतना लिखा और कहा जा चुका है कि उसमें जोड़ने की ज़रूरत नहीं कि अफ़ग़ानिस्तान की इस दुर्दशा के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और एशिया में उनके सहयोगी पाकिस्तान की बार-बार की दखलंदाजी और अलग-अलग गिरोहों को हथियारबंद करने की नीति, जिसे वे रणनीति कहते रहे हैं, ज़िम्मेवार रही है।