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बाहरी या विदेशियों के नाम पर डराने का खेल क्यों?

आज जब भारत में नागरिकता की बहस छेड़ दी गई है और बाहरी या विदेशियों की शिनाख़्त की बात कही जा रही है तो यह सवाल उठता है कि देश कैसे बनता है? क्या वह ज़मीन के अलग-अलग टुकड़ों को एक-दूसरे से जोड़कर बनाया जाता है? या वह अलग-अलग क़िस्म की आबादियों को साथ लाने की एक प्रक्रिया है? ये सवाल भारत और पूरी दुनिया में नए सिरे से पूछे जा रहे हैं।  
अपूर्वानंद

देश कैसे बनता है? क्या वह ज़मीन के अलग-अलग टुकड़ों को एक-दूसरे से जोड़कर बनाया जाता है? या वह अलग-अलग क़िस्म की आबादियों को साथ लाने की एक प्रक्रिया है? आबादी,यानी लोग। वह क्या चीज़ है जिससे लोग एक आबादी बन जाते हैं या कोई एक आबादी एक आबादी बन जाती है? क्या कोई आतंरिक गुण है जो जिनमें एक-सा पाया जाता है, वे एक आबादी बन जाते हैं? क्या है वह? डीएनए? भाषा? किसी एक ज़मीन के टुकड़े पर कुछ लम्बे वक़्त तक एक साथ बसे रहना? या कुछ और? ये सवाल भारत और पूरी दुनिया में नए सिरे से पूछे जा रहे हैं। तकलीफ़ यह है कि ये सवाल ख़ून और आंसुओं से लिथड़े हुए हैं। 

अगर जगह और लोगों का रिश्ता जन्म-जन्म का है और जगह उनसे त्वचा की तरह चिपटी हुई है या ख़ून की तरह ही उनमें दौड़ रही है तो अमरीका की सरहद पर कौन लोग जमा हैं और क्यों वे पीढ़ियों से जहाँ रहते आए थे, उस जगह से विरक्त होकर अब अमरीका को अपना मुल्क, अपना देश, अपना राष्ट्र बना लेना चाहते हैं? 

कौन लोग हैं जो बार-बार रात के अँधेरे में जोख़िम लेकर सरहदी चौकीदारों की सर्चलाईट से बचते हुए समंदर पारकर इंग्लैंड में किसी तरह घुस भर जाना चाहते हैं और जिनसे ख़ुद को बचाने की हरचंद कोशिश इंग्लैंड का निज़ाम कर रहा है?

अमरीका इन लोगों से डर गया है या यह कहना अधिक मुनासिब होगा कि उसका निज़ाम लोगों को इन नए अजनबियों से डरा रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प धमकी दे रहे हैं, ‘अमरीका में जन्म लेकर यहाँ की नागरिकता ले लेने की चालाकी अब नहीं चलेगी।’ 

आबादियों पर आबादियाँ मध्य पूर्व से, लीबिया, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों से यूरोप में प्रवेश करना चाहती हैं। वहाँ वे अवांछित मानी जाती हैं, दुरदुराई जाती हैं। लेकिन यूरोप के देशों में कई ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने दरवाजे इनके लिए खुले रखे हैं। 

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यह आसान नहीं है। अजनबियों का डर इतना अधिक है कि जिन सरकारों ने इस मेहमाननवाजी का दुस्साहस किया है, उनके गिरने की या वापस सत्ता में न आने की आशंका प्रबल है। जर्मनी हो या फ़्रांस या इटली, हर जगह वैसे राजनीतिक दल इसी बीच और मजबूत हुए हैं जो लोगों को इन बिनबुलाए मेहमानों से डरा रहे हैं। 

जो डरा रहे हैं उनमें वे भी हैं जिन्हें ख़ुद इन जगहों पर आए अभी सौ साल भी नहीं गुजरे हैं। जिनके पिता और माता अभी भी दूर छूट गए अपने गाँव को याद करते होंगे! ब्रिटेन के एक्सचेकर के चांसलर साजिद जावेद के माता-पिता पाकिस्तान से इंग्लैंड आए। वे उस दल के सदस्य हैं जो इंग्लैंड की नागरिकता के मामले में सख़्त हैं। इन्होंने उस बच्ची की नागरिकता ख़त्म कर देने की वकालत की थी जो गुमराह होकर इस्लामिक स्टेट में शामिल होने को सीरिया चली गई थी और अब वापस अपने मुल्क आना चाहती है। 

यह कितनी दिलचस्प विडंबना है कि एक पाकिस्तानी मूल का व्यक्ति एक बांग्लादेशी मूल की बच्ची को उस देश की नागरिकता से वंचित करना चाहता है जहाँ दोनों के परिवार आगे-पीछे पहुँचे हैं। यह भी ध्यान रहे कि संभव है कि शमीमा बेग़म, जिनके माता-पिता बांग्लादेश के हैं, पाकिस्तानी मूल की रहतीं अगर बांग्लादेश न बना होता।

 

शमीमा बेग़म अभी बच्ची थी, यानी पन्द्रह साल की जब वह इस्लामिक स्टेट के स्वर्ग के लुभावने सपने में फँस कर इंग्लैंड से चोरी-चोरी भागकर सीरिया पहुँच गई। उससे डच मूल के एक लड़ाके की शादी कराई गई जो मारा गया। शमीमा इस बीच नाबालिग माँ बन गई। अब जब वह सपना एक भयानक यथार्थ बन चुका है, वह उस मुल्क लौटना चाहती है जिसने उसके मां-बाप को न सिर्फ़ पनाह दी बल्कि शहरीयत भी दी। 

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शमीमा एक ख़िलाफ़त के सपने में जीने के लिए उस मुल्क को छोड़ आई जिसमें दाख़िल होने के लिए उसके अनेकों हममज़हब और उसके माँ-बाप के पिछले वतन के लोग बेसब्र हैं! उसके माता-पिता बांग्लादेशी थे, जिनके माता पिता पाकिस्तानी रहे होंगे! शमीमा को बांग्लादेश ले ले, यह मांग की गई! उसने कहा कि इंग्लैंड अपनी समस्या को हमारे सिर मढ़ने की कोशिश कर रहा है। 

साजिद जावेद शमीमा और उसके बच्चे को इंग्लैंड के लिए ख़तरा मानते हैं। लेकिन जिन राजनेताओं की जड़ें इंग्लैंड की ज़मीन में साजिद से कहीं अधिक गहरी और दूर तक जाती हैं, उनमें से कई शमीमा को ठुकराने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर शमीमा समस्या है तो हमारी समस्या है। वे अधिक ख़ालिस इंग्लिश हैं या साजिद?

साजिद ख़ान का मूल अगर पाकिस्तान का है तो उनकी ही टोरी या कंज़र्वेटिव पार्टी की प्रीति पटेल तो हमारी हैं और वह अभी आप्रवासी विरोधी बोरिस जॉनसन की कैबिनेट में मंत्री हैं। उनके माता-पिता किसी भी भारतीय से अधिक भारतीय, यानी, गुजराती हैं! युगांडा से ईदी अमीन द्वारा खदेड़ दिए जाने के बाद वे इंग्लैंड आए। आज उनकी बेटी उनकी तरह के लोगों की क़िस्मत का फ़ैसला कर रही हैं। 

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इस विडंबना पर विचार करें कि जब प्रीति के माता-पिता इंग्लैंड में प्रवेश करना चाह रहे हों और उस वक़्त प्रीति इस मामले की मंत्री हों तो क्या उन्हें इंग्लैंड में वैसे प्रवेश मिलेगा जैसे तब मिल गया था! हो सकता है प्रीति पटेल का विभाग अपने माता-पिता के आवेदन को नामंजूर कर दे! या उनसे पूछे कि वह क्या ख़ास हुनर है जो उनके पास है जिससे इंग्लैंड को लाभ होगा?

बांग्लादेश का बनना वैसे ही अनिवार्य नहीं था, जैसे पाकिस्तान का। कश्मीर का भारत के साथ जुड़ने का निर्णय भी परिस्थितिजन्य था, कोई कुदरती फ़ैसला न था। ईदी अमीन न होता तो प्रीति पटेल आज इंग्लैंड के हितों को बाहरी लोगों से बचाने की जिम्मेदारी न निभा रहीं होतीं!

आप साजिद जावेद और प्रीति पटेल का तुलनात्मक अध्ययन करें। दूसरी पीढ़ी के नागरिक, एक पाकिस्तानी मूल का और दूसरी भारतीय, दो मुल्क जिन्हें एक-दूसरे का विरोधी माना जाता है। लेकिन इन दोनों से अधिक कट्टर अंग्रेज कौन है जो उसे बाहरी लोगों की बाढ़ में डूबने से बचाना चाहता हो! जिनके पुरखों के पुरखों की मिट्टी इंग्लैंड की मिट्टी में है आज वे अपने से अधिक अंग्रेज, इन दो नेताओं से यह बहस कर रहे हैं कि इंग्लैंड के मूल्य अधिक उदार हैं!

आज जब भारत में फिर से नागरिकता की बहस छेड़ दी गई है और बाहरी या विदेशियों की शिनाख़्त का नया राष्ट्रीय खेल बनाया जा रहा है, हम उस इत्तेफाक के बारे में ज़रूर सोचें जिसके बिना न तो साजिद जावेद और न प्रीति पटेल इंग्लैंड के ख़ासमख़ास होते!  

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