राहुल बजाज के बोलने की धूम है। इसलिए कि उसके सामने बोले जिसे साक्षात आतंक माना जाता है। राहुल बजाज ने बात कोई नयी नहीं की। लेकिन उनका बोलना ही मायने रखता है। इसलिए कि वे पूँजीपतियों के समुदाय के सदस्य हैं जिसका धर्म सत्य की नहीं, अपने मुनाफ़े की रक्षा है। आश्चर्य नहीं कि वे सरकार से डरे हुए हैं। भारत का पूँजीपति वर्ग अमेरिका के मुक़ाबले अधिक राज्याश्रित है। इसलिए वह राज्य की आलोचना करने से बचता है। तो राहुल बजाज क्योंकर बोल पाए?
जो डरा हुआ है, वह नहीं, जो डरा रहा है, वह अपराधी है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 2 Dec, 2019


भारत का पूँजीपति वर्ग राज्य की आलोचना करने से बचता है। लेकिन राहुल बजाज बोले और अकेले ही रहे, इस कारण हमें न बोलने वालों पर हमला नहीं करना चाहिए। जो भय के स्रोत के ख़िलाफ़ खड़े न हो सके, उन्हीं पर हमला कर बैठना मूर्खता है। भय के स्रोत पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। इसलिए जो न बोल सके उनका हम मज़ाक़ न उड़ाएँ या उन्हें न ललकारें।
राहुल ने इसका जवाब ख़ुद ही दिया। जो हिम्मत भारत के सबसे धनवान नहीं जुटा सके, वह पुरानी काट के पूँजीपति राहुल बजाज के लिए सहज इस कारण थी, जैसा उन्होंने ख़ुद बताया कि उनका जन्म ही सत्ता विरोध से जुड़ा हुआ है। बोलते हुए यह कहना शायद ज़रूरी नहीं था लेकिन उन्होंने कहा कि उनके दादा गाँधीजी के लिए पुत्रवत थे। यहाँ तक तो गनीमत थी। उन्होंने अपने बारे में कहा कि भले ही आज के आकाओं को यह बात न पसंद आए, उनका नाम जवाहरलाल नेहरू ने रखा था। जब उन्होंने यह बताया तो उस महफ़िल में, जो भारत के सबसे ताक़तवर लोगों की थी, हँसी की लहर दौड़ गई। यह हँसी किस पर थी? या यह राहत की हँसी थी?

























