पश्चिम बंगला में एसआईआर मसौदा सूची से ममता बनर्जी के क्षेत्र में 45 हज़ार मतदाताओं यानी क़रीब 23% नाम हटाए गए हैं। यह कैसे हो गया? तो अब टीएमसी क्या रणनीति अपनाएगी?
पश्चिम बंगाल एसआईआर की वोटर ड्राफ्ट सूची में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर में क़रीब 45 हज़ार नाम हटाए गए हैं। यह इस क्षेत्र के कुल मतदाताओं का क़रीब 23 फीसदी है। पूरे राज्य में कुल मतदाताओं के क़रीब 4 फीसदी वोटर ही हटाए गए हैं। तो क्या ममता बनर्जी के चुनाव क्षेत्र में कुछ 'खेला' हो गया? कम से कम टीएमसी को तो ऐसा ही लगता है। तभी तो इसने पूरे विधानसभा क्षेत्रों में घर-घर जाकर मतदाताओं के नामों की पड़ताल करने का फ़ैसला किया है।
तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व ने अपने बूथ-स्तरीय एजेंटों को निर्देश दिए हैं कि वे हटाए गए मतदाताओं के नामों की घर-घर जाँच करें। यह फैसला विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर अभियान के तहत तैयार की गई मसौदा मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने के बाद लिया गया है। कहा जा रहा है कि टीएमसी इस मामले को लेकर चुनाव आयोग से नाराज है और कोई भी वैध मतदाता का नाम हटने नहीं देना चाहती है।
भवानीपुर की मसौदा सूची में क्या हुआ?
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2025 में भवानीपुर में कुल 2 लाख 6 हज़ार 295 मतदाता थे। अब मसौदा सूची में केवल 1 लाख 61 हज़ार 509 नाम बचे हैं। इसका मतलब है कि 44 हज़ार 787 मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। यह कुल मतदाताओं का लगभग 21.7 प्रतिशत है।
राज्य स्तर पर चुनाव आयोग ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की है। इसमें 58 लाख 20 हज़ार 898 नाम हटाए गए हैं, जो राज्य के कुल मतदाता करीब 7.08 करोड़ का क़रीब 4 प्रतिशत है। इनमें करीब 24 लाख मृत्यु, करीब 20 लाख स्थायी स्थानांतरण, 12 लाख से अधिक पता नहीं मिला, 1.38 लाख डुप्लिकेट एंट्री शामिल हैं। इसमें सबसे अहम आँकड़ा 'घोस्ट वोटर' या फर्जी वोटरों का है। 'घोस्ट वोटर' यानी ऐसे मतदाता जिनकी पहचान फील्ड वेरिफिकेशन में नहीं हो सकी, उनकी संख्या सिर्फ 1 लाख 83 हज़ार 328 है। चुनाव आयोग के अनुसार, यह संख्या एसआईआर प्रक्रिया के दौरान घर-घर जांच के बाद तय की गई है।एसआईआर अभियान 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले जिलों और सीमावर्ती क्षेत्रों में मतदाता प्रोफाइल को नए सिरे से तैयार करने के लिए चलाया गया था। टीएमसी इस बात पर ग़ुस्सा है कि बड़ी संख्या में मतदाताओं को मृत, स्थानांतरित या अनुपस्थित के रूप में चिह्नित किया गया है।
टीएमसी ने लगातार कहा है कि किसी भी परिस्थिति में कोई वैध मतदाता का नाम नहीं हटना चाहिए। हर हटाए गए नाम की फिजिकल रूप से जांच की जानी चाहिए। पार्टी का मानना है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक रूप से प्रेरित हो सकती है, खासकर मुख्यमंत्री के अपने क्षेत्र में।
भवानीपुर क्षेत्र की स्थिति
भवानीपुर एक घनी आबादी वाला शहरी क्षेत्र है, जिसमें कोलकाता नगर निगम के वार्ड 63, 70, 71, 72, 73, 74, 77 और 82 शामिल हैं। ईटी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि वार्ड 70, 72 और 77 में नाम हटाने की संख्या विशेष रूप से अधिक है। इनमें से वार्ड 77 अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है, जिस पर जाँच के दौरान विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए गए हैं। भवानीपुर में उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा से आए निवासियों की अच्छी-खासी आबादी है।पश्चिम बंगाल से और ख़बरें
टीएमसी की रणनीति क्या?
दावा और आपत्तियों पर सुनवाई प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में टीएमसी ने स्थानीय नेतृत्व को प्रभावित मतदाताओं के साथ खड़े होने और सत्यापन में उनकी मदद करने के निर्देश दिए हैं। पार्टी ने स्थानीय इकाइयों को निर्देश दिया है कि वे पड़ोस में 'मे आई हेल्प यू' कैंप जारी रखें, जहां लोगों को दस्तावेज, फॉर्म भरने और सुनवाई में सहायता दी जाए। यदि ज़रूरत पड़े तो वॉलंटियर्स को घर-घर जाकर मदद करनी चाहिए।
दक्षिण कोलकाता में भी खूब नाम हटाए गए
दक्षिण कोलकाता में भी बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए हैं। मसौदा सूची के अनुसार, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चार विधानसभा क्षेत्रों भवानीपुर, कोलकाता पोर्ट, बालिगंज और रासबिहारी में कुल 2.16 लाख से अधिक नाम हटाए गए हैं। यह उनके कुल मतदाता आधार का लगभग 24 प्रतिशत है। एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने से पहले इन क्षेत्रों में कुल लगभग 9.07 लाख मतदाता थे।टीएमसी का यह कदम 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। पार्टी का कहना है कि वह किसी भी नाम को अनुचित रूप से हटाने की कार्यवाही को बर्दाश्त नहीं करेगी। चुनाव आयोग ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
इस घटना ने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है, जहां विपक्षी दल भी मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगा रहे हैं। टीएमसी की यह पहल न केवल भवानीपुर बल्कि पूरे राज्य में मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मिसाल हो सकती है।