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प्रतीकात्मक तस्वीर टाटा मोटर्स डॉट कॉम की वेबसाइट से साभार

सिंगूर-नैनो प्रोजेक्ट केस में टाटा मोटर्स को मिलेंगे 766 करोड़ रुपये 

ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स को सिंगूर मामले में बड़ी जीत मिली है। कंपनी ने सोमवार को जानकारी दी है कि सिंगूर-नैनो प्रोजेक्ट केस में आर्टिब्रेशन ट्रिब्यूनल  ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है।
 तीन सदस्यीय आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल से सोमवार को कंपनी के पक्ष में सर्वसम्मति से फैसला आया है। टाटा मोटर्स को अब पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम से ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये रिकवरी के तौर पर मिलेंगे। टाटा मोटर्स ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े निवेश के नुकसान के संबंध में मुआवजा मांगा था। 
आर्टिब्रेशन ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद पश्चिम बंगाल सरकार को सिंगूर में टाटा मोटर्स की नैनो फैक्ट्री को बंद करने के लिए कंपनी को सितंबर 2016 से 11 प्रतिशत ब्याज के साथ कुल 765.78 करोड़ रुपये की बड़ी राशि का भुगतान करनी होगी।  
कंपनी ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को बताया है कि पश्चिम बंगाल के सिंगुर में ऑटोमोबाइल मैन्युफेक्चरिंग प्लांट के संबंध में तीन-सदस्यीय आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष मामला लंबित था। इस लंबित मामले में मध्यस्थता कार्यवाही को 30 अक्तूबर, 2023 के सर्वसम्मत निर्णय द्वारा टाटा मोटर्स लिमिटेड (टीएमएल) के पक्ष में निपटाया गया है।  

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नैनो कार के प्लांट के लिए आवंटित की गई थी जमीन 

आर्थिक मामलों के समाचार की वेबसाइट बी क्यू प्राइम डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने सिंगुर में ऑटोमोबाइल विनिर्माण सुविधा स्थापित करने के लिए किए गए पूंजी निवेश के नुकसान के कारण पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम से मुआवजे का दावा किया था। टाटा मोटर्स के बयान में कहा गया है कि फैसले के बाद मध्यस्थता कार्यवाही समाप्त हो गई है। 
भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद अक्टूबर 2008 में कंपनी ने नैनो परियोजना को पश्चिम बंगाल के सिंगुर से गुजरात के साणंद में स्थानांतरित कर दिया था। 
पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार ने 2006 में घोषणा की थी कि टाटा अपनी किफायती रेंज की 'नैनो' मॉडल का निर्माण करने के लिए एक कार विनिर्माण इकाई स्थापित करेगी, जिसके लिए करीब 1,000 एकड़ जमीन आवंटित की जाएगी। 
टाटा मोटर्स ने इसके अगले वर्ष सिंगुर में संयंत्र का निर्माण शुरू कर दिया था। पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो उस समय विपक्ष में थीं ने इस प्रोजेक्ट का जमकर विरोध किया था। उन्होंने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा करके भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध का नेतृत्व किया था। 
तब महीनों की अशांति और राजनीतिक उथल-पुथल के बाद, टाटा मोटर्स कंपनी ने राज्य से बाहर निकलने की घोषणा की थी। इसके बाद यह मुद्दा कंपनी और राज्य सरकार के बीच वर्षों तक चली कानूनी लड़ाई में बदल गया था। 
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लंबी कानूनी लड़ाई को बाद आया यह फैसला

आर्थिक मामलों के समाचार की वेबसाइट बी क्यू प्राइम डॉट कॉम की यह रिपोर्ट कहती है कि कंपनी ने 2011 के उस कानून को चुनौती दी थी जिसके जरिए राज्य सरकार ने जमीन पर कब्जा कर लिया था। 
जून 2012 में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सिंगूर अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया और भूमि पट्टा समझौते के तहत कंपनी के अधिकारों को बहाल कर दिया था। इसके बावजूद टाटा मोटर्स को जमीन पर कब्जा नहीं मिला था।  
राज्य सरकार ने इस मामले में अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की थी। अगस्त 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नैनो परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को अवैध घोषित किया और निर्देश दिया कि जमीन भूमि मालिकों को वापस कर दी जाए। 
पट्टा समझौते में एक खंड शामिल था कि यदि अधिग्रहण को अवैध माना जाता है, तो राज्य कंपनी को साइट पर खर्च की गई पूंजीगत लागत के लिए क्षतिपूर्ति करेगा। इस समझौते में दोनों पक्षों के बीच किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए एक तंत्र के रूप में मध्यस्थता का भी प्रावधान किया गया था। इसके बाद टाटा मोटर्स ने मध्यस्थता की मांग की और अपना दावा दायर किया था।  
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क़मर वहीद नक़वी
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