loader

कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच बातचीत क्यों नाकाम हुई?

कांग्रेस और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच बात क्यों नहीं बनी? वह भी तब जब कहा जा रहा था कि कांग्रेस को जितनी ज़रूरत पीके की है उतनी ही पीके को भी कांग्रेस जैसी पार्टी की ज़रूरत है! तो सवाल है कि आख़िर इसके पीछे की वजह क्या थी? क्या कांग्रेस नेताओं का अड़ियल रुख या फिर प्रशांत किशोर का तेलंगाना में केसीआर के साथ अनुबंध करना? या फिर उनके बीच में विचारधारा की दिक्कतें हैं?

प्रशांत किशोर ने जिन वजहों को बताते हुए कांग्रेस में शामिल होने से इनकार किया है वह वजह ऐसी है जिसे दूर करना मुश्किल नहीं था। रिपोर्ट है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में आमूल-चूल बदलाव चाहते थे और इसके लिए खुली छूट चाहते थे। लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस इसके पक्ष में नहीं थी और वह चाहती थी कि एक-एक कर बदलाव किए जाएँ। क्या यह इतना मुश्किल था कि इस पर बात न बन पाए या फिर कुछ और वजह थी?

ताज़ा ख़बरें

इसे ठीक से समझना हो तो दोनों तरफ़ से इस बातचीत की गंभीरता को महसूस कीजिए। पिछले कुछ हफ़्तों से कांग्रेस के आलाकमान और प्रशांत किशोर के बीच बातचीत की रिपोर्टें आ रही थीं। सोनिया गांधी से ही कई दौर की बातचीत हुई। कांग्रेस में कमेटी गठित की गई। प्रशांत किशोर से मुलाक़ात को सोनिया गांधी ने अपने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि कई वरिष्ठ नेताओं से उनकी बातचीत कराई। प्रशांत किशोर भी पिछले कुछ हफ्तों से प्रजेंटेशन देने से लेकर कांग्रेस नेताओं से बातचीत में व्यस्त रहे। हालाँकि इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

इसका नतीजा नहीं निकल पाने के लिए क्या दोनों में से कोई एक पक्ष ज़िम्मेदार है? कांग्रेस की तरफ़ से रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में 2024 लोकसभा चुनावों के लिए एक एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बनाकर प्रशांत किशोर को उसका सदस्य बनाकर पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया लेकिन प्रशांत किशोर ने इनकार कर दिया। उन्होंने आगे प्रशांत किशोर की इस प्रयास के लिए तारीफ़ की।
बातचीत विफल होने को लेकर प्रशांत किशोर ने भी ट्वीट कर कहा है कि कांग्रेस में गहराई तक जड़ें जमा चुकीं सांगठनिक समस्याओं को परिवर्तनकारी सुधारों के ज़रिए सुलझाने के लिए मुझसे ज़्यादा पार्टी को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है। 

दोनों के बयानों को पढ़ने से साफ़ तौर पर पता चलता है कि इसमें कोई वैचारिक मतभेद जैसी बात नहीं थी। तो क्या तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए टीआरएस से आईपैक का अनुबंध वजह था?

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस ने दो दिन पहले ही इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी यानी IPAC से सौदा कर लिया है। यह कंसल्टेंसी फर्म चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से जुड़ी रही है, हालाँकि पिछले साल ही उन्होंने खुद को उस फर्म से आधिकारिक तौर पर अलग कर लिया है।

congress and prashant kishor talks failure reason - Satya Hindi

रिपोर्टों में इस वजह को भी खारिज किया गया है। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि न तो आईपैक और टीआरएस के बीच अनुबंध और न ही पश्चिम बंगाल में ममता के लिए प्रशांत किशोर का काम करना या पहले बीजेपी के लिए काम करना वह वजह है जिसके कारण कांग्रेस और पीके में बात नहीं बन पाई। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बनने की वजह यह थी कि प्रशांत किशोर बीजेपी को हराने के लिए खुली छूट चाहते थे। लेकिन कांग्रेस एक बाहरी व्यक्ति को उस तरह की खुली छूट देने को तैयार नहीं थी।

रिपोर्ट है कि इसी कारण से प्रशांत किशोर तैयार नहीं हुए क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि 2017 में जिस तरह के संकटपूर्ण हालात बने थे इस बार भी बने।

2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस नेताओं से सीख ले चुके हैं। तब उनकी पूरी कार्ययोजना को बेहद आधे अधूरे ढंग से लागू करके उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने को मजबूर कर दिया गया और उसके बाद कांग्रेस का जो हश्र हुआ उससे पीके पर ऐसा दाग लगा जिसे धुलने में उन्हें लंबा वक़्त लगा। इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि या तो उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने की पूरी छूट मिले और उनके काम में किसी भी नेता का कोई दखल न हो, तब ही वह कांग्रेस में शामिल होंगे।

विश्लेषण से और ख़बरें

लेकिन लगता है कि इस मुद्दे पर दोनों पक्ष आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दोनों को एक-दूसरे पर शायद उस तरह का भरोसा नहीं है। एनडीटीवी से बातचीत में एक बार प्रशांत किशोर ने कहा भी था, 'दूसरों को यह स्वाभाविक लगता है कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस को एक साथ आना चाहिए और एक साथ काम करना चाहिए। लेकिन दोनों पक्षों को एक साथ काम करने के लिए विश्वास की छलांग लगानी होगी। कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है।' उन्होंने खुद के बार में कांग्रेस के संदेह जताने को भी जायज ठहराया था। तो सवाल है कि क्या ऐसा भरोसा कभी आगे बन सकता है?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें