2025 की मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 193 देशों में 130वें स्थान पर है (स्कोर: 0.685), जो “मध्यम” श्रेणी में है।
- प्रति व्यक्ति आय: विश्व में 136वाँ स्थान।
- बेरोजगारी: 7-8%, असंगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन रुका हुआ।
- भूख सूचकांक (GHI 2024): 127 देशों में 105वाँ स्थान (स्कोर: 27.3, “गंभीर”)
- असमानता: 1% अमीरों के पास 40% से ज़्यादा संपत्ति।
ये आँकड़े बताते हैं कि भारत विकसित देश बनने से अभी काफ़ी दूर है। भूख, और शिक्षा-स्वास्थ्य की कमी बड़ी बाधा है।
मैन्युफैक्चरिंग: भारत क्यों पीछे?
चीन ने मैन्युफैक्चरिंग के दम पर दुनिया में सिक्का जमाया। 2025 में भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 13-14% है, जो “मेक इन इंडिया” के 25% लक्ष्य से बहुत कम है।
World Bank (2023): मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 2010 (17%) से घटकर 13% हुआ।
रोजगार: मैन्युफैक्चरिंग में कुल कार्यबल का 8% (~27.3-35.7 मिलियन) कार्यरत है। “मेक इन इंडिया” का 100 मिलियन नौकरियों का लक्ष्य अधूरा रहा।
चीन की तुलना: चीन का मैन्युफैक्चरिंग योगदान ~29%, जो वैश्विक बाज़ार को आपूर्ति करता है।
कमियाँ: कौशल की कमी (24% कार्यबल कुशल), पुरानी तकनीक, और बुनियादी ढांचे की कमी।
अमेरिकी टैरिफ (50%) कपड़ा, आभूषण, और रसायन जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है, जिससे MSME और असंगठित क्षेत्र में रोजगार और आय पर असर पड़ सकता है। HSBC का अनुमान: टैरिफ से जीडीपी वृद्धि 0.7% कम हो सकती है।
वास्तविकता
भारत की 7.8% जीडीपी वृद्धि की चमकदार तस्वीर आँकड़ों की बाज़ीगरी पर टिकी है। गलत डिफ्लेटर, असंगठित क्षेत्र का डेटा अभाव, और उच्च-आवृत्ति डेटा की असंगति वास्तविक स्थिति को छिपाते हैं। NSC, सुब्रमण्यम, और पटेल जैसे विशेषज्ञों के इस्तीफों ने डेटा विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। झूठे प्रचार और चमकदार आँकड़ों से वोटर को गुमराह किया जा सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था की हकीकत नहीं बदली जा सकती। वास्तविकता को स्वीकार कर नीतियों को प्रभावी बनाना ही भारत को सच्चा विकास दे सकता है।