अमेरिका के 50 फ़ीसदी टैरिफ़ से उपजी आशंकाओं के बीच केंद्र सरकार ने दावा किया है कि अप्रैल-जून 2025 की तिमाही में भारत की जीडीपी 7.8% की रफ्तार से बढ़ी है, जो पिछले साल (6.5%) और जनवरी-मार्च 2025 (7.4%) से अधिक है। लेकिन क्या यह तस्वीर पूरी तरह सच है, या इसके पीछे आँकड़ों की बाज़ीगरी छिपी है? मीडिया का बड़ा हिस्सा तो इस आँकड़े को लेकर उड़ चला है और अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश कर रहा है, लेकिन विशेषज्ञों की ओर से इस आँकड़े पर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। उनका कहना है कि जिस समय दोपहिया वाहनों का बाज़ार भी मंदी का शिकार हो, उस समय ऐसे आँकड़े गंभीर परीक्षण और विश्लेषण की माँग करते हैं।

जीडीपी: चमक या छलावा?

जीडीपी क्या है? सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश में एक साल में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है, जो अर्थव्यवस्था की रफ्तार दर्शाता है। सरकार का दावा है कि अप्रैल-जून 2025 में जीडीपी 7.8% की दर से बढ़ी, जो भारत को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार करता है। लेकिन इस चमकदार तस्वीर में कुछ खामियाँ हैं।

जीडीपी दो तरह से मापी जाती है: नाममात्र (Nominal) और वास्तविक (Real)। नाममात्र जीडीपी बाज़ार मूल्यों पर आधारित होती है, जबकि वास्तविक जीडीपी में मुद्रास्फीति को हटाया जाता है। इस तिमाही में नाममात्र जीडीपी वृद्धि 8.8% थी, लेकिन वास्तविक जीडीपी 7.8%। इस अंतर का कारण है जीडीपी डिफ्लेटर, जो मुद्रास्फीति को मापता है। लेकिन यहाँ गड़बड़ी है।
ताज़ा ख़बरें

डिफ्लेटर की गड़बड़ी

जीडीपी डिफ्लेटर में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का ज़्यादा इस्तेमाल हुआ है। जून 2025 में WPI -0.13% और जुलाई में -0.58% था, जो ऋणात्मक मुद्रास्फीति (Deflation) दर्शाता है। इसका मतलब है कि खाद्य वस्तुओं (जैसे सब्जियाँ: -28.96%) और ईंधन की कीमतें घटीं। लेकिन सेवा क्षेत्र की वास्तविक मुद्रास्फीति (3.4%) को WPI कम करके दिखाता है। नतीजा? सेवा क्षेत्र की 9.3% वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। विशेषज्ञों (HSBC, ICICI सिक्योरिटीज़) का कहना है कि सही डिफ्लेटर से जीडीपी वृद्धि 7% के आसपास होती, न कि 7.8%।

इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र का डेटा गायब है। भारत की अर्थव्यवस्था का 45-50% हिस्सा और 86-93% रोजगार (43-46.5 करोड़ लोग) असंगठित क्षेत्र से आता है, जिसमें छोटे दुकानदार, दिहाड़ी मजदूर, और MSME शामिल हैं। लेकिन जीडीपी आँकड़े संगठित क्षेत्र (50-55% जीडीपी, 9-14% रोजगार) के सीमित डेटा (जैसे IIP, सूचीबद्ध कंपनियाँ) पर आधारित हैं। 

नोटबंदी (2016) और GST (2017) ने असंगठित क्षेत्र को भारी नुकसान पहुँचाया, लेकिन इसका असर जीडीपी में ठीक से नहीं दिखता।

उच्च-आवृत्ति डेटा की असंगति

जीडीपी वृद्धि 7.8% दिखती है, लेकिन उच्च-आवृत्ति डेटा (High-Frequency Data) कुछ और कहता है। IIP (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) इस तिमाही में केवल 2% बढ़ा। कोयला उत्पादन, स्टील खपत, और निजी वाहन बिक्री में गिरावट आई। ये रोज़ाना की आर्थिक गतिविधियों को दर्शाते हैं। अगर ये गिरावट दिखा रहे हैं, तो 7.8% वृद्धि कैसे संभव है? यह असंगति बताती है कि जीडीपी आँकड़े वास्तविक स्थिति को पूरी तरह नहीं दर्शाते।

मनमर्ज़ी आँकड़े

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC), जो कभी आँकड़ों की विश्वसनीयता का प्रतीक था, अब सवालों के घेरे में है। 2019 में NSC के अध्यक्ष पी.सी. मोहनन और सदस्य जे.वी. मीनाक्षी ने इस्तीफा दे दिया, यह आरोप लगाकर कि सरकार आँकड़ों को दबा रही है। NSS 2017-18 की रोजगार रिपोर्ट, जिसमें बेरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर (6.1%) पर थी, को दबाने का आरोप लगा।

अरविंद सुब्रमण्यम, भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (2014-18) थे। इस्तीफ़ा देने के बाद 2019 में उन्होंने दावा किया कि 2011-17 के बीच जीडीपी वृद्धि को 2.5% बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। उनकी गणना पद्धति में खामियों की बात ने सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए।
विश्लेषण से और ख़बरें
ऊर्जित पटेल, RBI गवर्नर (2016-18), ने भी 2018 में इस्तीफा दिया। कारण? सरकार का RBI की स्वायत्तता पर दबाव। सरकार ने RBI एक्ट के सेक्शन 7 के इस्तेमाल की धमकी दी थी जो सरकार को RBI को निर्देश देने की शक्ति देता है।यह अभूतपूर्व स्थिति थी। सरकार RBI के 9.6 लाख करोड़ रुपये के भंडार का बड़ा हिस्सा चाहती थी जिसका पटेल ने विरोध किया। 

आरटीआई से पता चला है कि नोटबंदी (2016) के दौरान भी RBI ने चेतावनी दी थी कि काला धन कैश के बजाय सोने और रियल एस्टेट में है, फिर भी इसे लागू किया गया, जिससे असंगठित क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि सरकार आँकड़ों को चमकदार दिखाने और अपनी छवि प्रबंधन में ज़्यादा रुचि रखती है, जिससे नीतिगत फैसले गलत दिशा में जाते हैं।

चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था है?

2025 में भारत 4.2 ट्रिलियन डॉलर की नाममात्र जीडीपी के साथ चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसने हाल ही में जापान (4.1 ट्रिलियन) को पीछे छोड़ा। शीर्ष चार देश हैं:  
  • अमेरिका: 26.7 ट्रिलियन डॉलर (आबादी: 34.7 करोड़)  
  • चीन: 18.3 ट्रिलियन डॉलर (आबादी: 141.6 करोड़)  
  • जर्मनी: 4.4 ट्रिलियन डॉलर (आबादी: 8.2 करोड़)  
  • भारत: 4.2 ट्रिलियन डॉलर (आबादी: 146 करोड़)  
  • जापान: 4.1 ट्रिलियन डॉलर (आबादी: 12.31 करोड़)
भारत की आबादी बाकी देशों (चीन को छोड़कर) से कहीं ज़्यादा है, फिर भी जीडीपी में यह चौथे स्थान पर है। चीन की जीडीपी भारत से 4.4 गुना बड़ी है, जबकि उसकी आबादी भारत से थोड़ी कम है।

प्रति व्यक्ति आय

प्रति व्यक्ति आय (2025):  
  • अमेरिका: 81,000 डॉलर (~71 लाख रुपये, 88 रुपये/डॉलर)  
  • जर्मनी: 53,000 डॉलर (~46 लाख रुपये)  
  • जापान: 33,000 डॉलर (~29 लाख रुपये)  
  • चीन: 13,000 डॉलर (~11 लाख रुपये)  
  • भारत: 2,800 डॉलर (~2,46,400 रुपये)
भारत की प्रति व्यक्ति आय 675 रुपये प्रति दिन है (88 रुपये/डॉलर पर)। लेकिन यह औसत है, जिसमें अंबानी-अडानी की संपत्ति और फुटपाथ पर सोने वाले की जेब में पड़े दो रुपये भी शामिल हैं। असंगठित क्षेत्र (86-93% कार्यबल) में मज़दूरी कहीं कम है:  
  • ग्रामीण पुरुष: ~350 रुपये/दिन  
  • ग्रामीण महिला: ~200 रुपये/दिन  
  • शहरी पुरुष: ~450 रुपये/दिन  
  • शहरी महिला: ~300 रुपये/दिन
यह असमानता (1% अमीरों के पास 40% संपत्ति) वास्तविक स्थिति को दर्शाती है।
सर्वाधिक पढ़ी गयी ख़बरें

मानव विकास सूचकांक: असल तस्वीर

2025 की मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 193 देशों में 130वें स्थान पर है (स्कोर: 0.685), जो “मध्यम” श्रेणी में है।  
  • प्रति व्यक्ति आय: विश्व में 136वाँ स्थान।  
  • बेरोजगारी: 7-8%, असंगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन रुका हुआ।  
  • भूख सूचकांक (GHI 2024): 127 देशों में 105वाँ स्थान (स्कोर: 27.3, “गंभीर”)
  • असमानता: 1% अमीरों के पास 40% से ज़्यादा संपत्ति।
ये आँकड़े बताते हैं कि भारत विकसित देश बनने से अभी काफ़ी दूर है। भूख, और शिक्षा-स्वास्थ्य की कमी बड़ी  बाधा है।

मैन्युफैक्चरिंग: भारत क्यों पीछे?

चीन ने मैन्युफैक्चरिंग के दम पर दुनिया में सिक्का जमाया। 2025 में भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 13-14% है, जो “मेक इन इंडिया” के 25% लक्ष्य से बहुत कम है।  

World Bank (2023): मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 2010 (17%) से घटकर 13% हुआ।  

रोजगार: मैन्युफैक्चरिंग में कुल कार्यबल का 8% (~27.3-35.7 मिलियन) कार्यरत है। “मेक इन इंडिया” का 100 मिलियन नौकरियों का लक्ष्य अधूरा रहा।  

चीन की तुलना: चीन का मैन्युफैक्चरिंग योगदान ~29%, जो वैश्विक बाज़ार को आपूर्ति करता है।

कमियाँ: कौशल की कमी (24% कार्यबल कुशल), पुरानी तकनीक, और बुनियादी ढांचे की कमी। 

अमेरिकी टैरिफ (50%) कपड़ा, आभूषण, और रसायन जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है, जिससे MSME और असंगठित क्षेत्र में रोजगार और आय पर असर पड़ सकता है। HSBC का अनुमान: टैरिफ से जीडीपी वृद्धि 0.7% कम हो सकती है।

वास्तविकता

भारत की 7.8% जीडीपी वृद्धि की चमकदार तस्वीर आँकड़ों की बाज़ीगरी पर टिकी है। गलत डिफ्लेटर, असंगठित क्षेत्र का डेटा अभाव, और उच्च-आवृत्ति डेटा की असंगति वास्तविक स्थिति को छिपाते हैं। NSC, सुब्रमण्यम, और पटेल जैसे विशेषज्ञों के इस्तीफों ने डेटा विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। झूठे प्रचार और चमकदार आँकड़ों से वोटर को गुमराह किया जा सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था की हकीकत नहीं बदली जा सकती। वास्तविकता को स्वीकार कर नीतियों को प्रभावी बनाना ही भारत को सच्चा विकास दे सकता है।