ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह बात किसी से छिपी नहीं रही कि चीन ने पाकिस्तान को अपनी सैन्य और तकनीकी ताक़त देकर भारत का मुक़ाबला करने की शक्ति दी। शुरुआत में चीन की इस भूमिका को लेकर आक्रोश भी देखने को मिला। लेकिन अब लग रहा है कि सरकार इस मुद्दे पर भ्रमित है। सेना के अफ़सरों से लेकर मंत्रालयों तक के बीच चीन को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत की ओर से 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया गया। इसके तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर  (PoK)  में आतंकी ठिकानों पर हमले किये गये। ऐसा लगा कि भारत PoK पर कब्जा कर सकता है, जैसा कि 1971 में इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग किया था। लेकिन 10 मई को ऑपरेशन अचानक रुक गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालाँकि इसे "स्थगित" बताया, लेकिन मिसाइलों के ज़रिए चल रही "बातचीत" थम गई।
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पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने लड़ाई के शुरू में ही पाँच-छह भारतीय लड़ाकू विमान, जिनमें राफेल शामिल थे, मार गिराए। शुरू में भारतीय मीडिया ने इसे प्रोपेगैंडा बताया, लेकिन बाद में दबी ज़बान में यह स्वीकार किया जाने लगा कि भारत को भी कुछ विमानों का नुक़सान हुआ है। इसकी वजह थी पाकिस्तान को मिला चीन का सहयोग। 

उप सेनाप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने 4 जुलाई 2025 को FICCI के एक कार्यक्रम में खुलासा किया, "पाकिस्तान को चीन से लाइव डेटा और सैन्य सहायता मिली। 81% पाकिस्तानी हथियार चीनी हैं।" रक्षा मंत्रालय के थिंक टैंक CENJOWS और अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स ने भी पुष्टि की कि चीन ने सैटेलाइट तस्वीरें और रडार डेटा साझा किए।

लेकिन ऐसा लगता है कि यह स्वीकारोक्ति भारत के सत्ता प्रतिष्ठान को रास नहीं आया। ख़ासतौर पर चीन का नाम खुलकर लिया जाना। चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने 9 जुलाई 2025 को कहा, "चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश का गठजोड़ भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में चीन की भूमिका स्पष्ट नहीं है।”

विश्लेषण से और
यह बयान जनरल सिंह के दावे से उलट है। तो क्या यह सेना में शीर्ष स्तर पर मतभेद है, या सरकार कूटनीति के तहत चीन की भूमिका को कमतर दिखाना चाहती है?

राहुल गाँधी ने चेताया था

2 फरवरी 2022 को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार को लक्ष्य करके कहा था, "भारत की विदेश नीति का एक सबसे बड़ा लक्ष्य पाकिस्तान और चीन को अलग रखना था। लेकिन आपने क्या किया? आप उनको साथ ले आए!" उनकी यह आशंका ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सच साबित हुई।
जनरल राहुल .आर. सिंह के अलावा रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाले थिंक टैंक CENJOWS की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि चीन के सैन्य सहयोग के कारण ही वह भारत के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख अपनाने में सक्षम हुआ।

भारत-चीन संबंध

1962 के युद्ध ने भारत-चीन संबंधों को गहरी चोट पहुंचाई थी। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने इसे सुधारने की पहल की। 1986-87 में सुमदोरोंग चू घाटी में तनाव के बाद दिसंबर 1988 में राजीव गांधी ने बीजिंग जाकर चीनी नेता देंग शियाओपिंग से मुलाकात की। दोनों ने सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का समझौता किया और इसके बाद बीसवीं सदी के अंत तक सीमा पर शांति बनी रही। लेकिन 2000 के दशक में चीन ने अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण तिब्बत" कहना शुरू किया, जिससे तनाव फिर बढ़ा।

स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स

चीन की "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति हिंद महासागर में भारत को घेरने का प्रयास है। इसके तहत चीन ने कई देशों में बंदरगाहों और सैन्य ठिकानों का नेटवर्क बनाया है।
  • पाकिस्तान: ग्वादर बंदरगाह (CPEC का हिस्सा)।
  • श्रीलंका: हंबनटोटा बंदरगाह (99 साल की लीज पर)।
  • म्यांमार: क्याउकप्यू बंदरगाह।
  • बांग्लादेश: चटगांव में निवेश।
  • अफ्रीका: जिबूती में सैन्य अड्डा।
इस रणनीति का उद्देश्य भारत की समुद्री पहुंच को सीमित करना और हिंद महासागर में प्रभुत्व स्थापित करना है। भारत ने जवाब में "नेकलेस ऑफ़ डायमंड्स" रणनीति अपनाई, जिसमें मलेशिया, सिंगापुर, मालदीव, और ईरान (चाबहार बंदरगाह) के साथ सहयोग बढ़ाया जा रहा है। QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ) में भारत की सक्रियता भी इसका हिस्सा है।
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अरुणाचल पर नया दावा

2006 से चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण चीन" कहता रहा है। 2023 में अपने "मानक नक्शे" में उसने अरुणाचल को अपने क्षेत्र में दिखाया, जिसे भारत ने खारिज किया। 2025 में चीन ने अरुणाचल के कुछ हिस्सों में नए गांव बसाए और सैन्य चौकियां बनाईं, जिसे "कार्टोग्राफिक आक्रामकता" कहा गया। यह भारत की संप्रभुता को चुनौती है, जिसका जवाब भारत ने सैन्य और बुनियादी ढांचे के विकास से दिया।

सीमा पर मोदी का बयान

चीन ने LAC पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की है। 2020 की गलवान झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, (अनौपचारिक आँकड़ा है कि चीन के भी 40 से ज़्यादा सैनिक मारे गये)। चीन ने पांगोंग त्सो और डेपसांग में बफर जोन बना जिससे भारत की गश्त सीमित हुई। अक्साई चिन में 15 वर्ग किमी में 6 स्थानों पर सैन्य निर्माण हुआ। 19 जून 2020 को PM मोदी ने संसद में कहा, "न कोई घुसा है, न घुसा हुआ है।" 

हालाँकि, सैटेलाइट तस्वीरें और स्थानीय नेताओं के बयान यथास्थिति में बदलाव की पुष्टि करते हैं। विपक्ष ने इसे सरकार की कमजोरी बताया।

दलाई लामा पर ‘दो’ राय

तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा को पंडित नेहरू के समय भारत में शरण दी गई थी। भारत में तिब्बत की निर्वासित सरकार भी है, हालाँकि भारत औपचारिक रूप से तिब्बत को चीन का हिस्सा मानता है। 6 जुलाई को दलाई लामा 90 वर्ष के हो गये। 3 जुलाई को उन्होंने कहा कि उनका उत्तराधिकारी गदेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा चुना जाएगा, न कि किसी बाहरी प्राधिकरण द्वारा। दरअसल, चीन ने दावा किया कि "गोल्डन अर्न" परंपरा (1793 में किंग राजवंश द्वारा शुरू की गयी परंपरा) से चुनाव होगा जिसमें सोने के कलश में डाले गये कई नामों की पर्ची से एक को निकाल कर उत्तराधिकारी चुना जाता है।
ज़ाहिर है, दलाई लामा और चीन सरकार में विवाद है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 जुलाई 2025 को कहा, "दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर फैसला लेने का अधिकार केवल उन्हीं को है। यह तिब्बतियों और उनके अनुयायियों के लिए अहम है।" दूसरी ओर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 4 जुलाई 2025 को कहा, "भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े मामलों में कोई रुख नहीं अपनाती और न ही टिप्पणी करती है।”

यानी विदेश मंत्रालय ने अपनी सरकार के एक मंत्री के बयान को काट दिया। यह बताता है कि चीन को नाराज़ करने से मोदी सरकार बचना चाहती है। क्या इसके पीछे चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों में हुआ इज़ाफ़ा है।

व्यापार और निर्भरता

2024-25 में भारत-चीन व्यापार $130 बिलियन था, लेकिन भारत को $85 बिलियन का व्यापार घाटा हुआ। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स में चीन पर निर्भर है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद चीनी सामान के बहिष्कार का मसला काफ़ी गरम था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक कार्यक्रम में कहा था, "अब तो दीवाली पर गणेश जी भी छोटी आँख वाले आने लगे हैं।”  यह चीन से बड़े पैमाने पर हो रहे आयात की ओर इशारा था। उन्होंने व्यापारियों से स्वदेशी सामान बेचने का आह्वान भी किया था। लेकिन आयात लाइसेंस सरकार ही देती है, और व्यापार में वृद्धि से साफ है कि निर्भरता कम नहीं हुई। हाल ही में फॉक्सकॉन के दक्षिण भारत प्लांट से चीनी इंजीनियरों की वापसी ने भारत की आत्मनिर्भरता योजनाओं को झटका दिया।

साफ़ है कि चीन को लेकर भारत की नीति में काफ़ी भ्रम है। या कहें कि चीन भारत के लिए एक जटिल चुनौती है— चाहे वह ऑपरेशन सिंदूर में उसकी भूमिका हो, स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स रणनीति, अरुणाचल पर दावे, या दलाई लामा का मुद्दा। सेना और सरकार के बयानों में विरोधाभास कूटनीतिक संयम का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह भ्रम की स्थिति को भी दिखाता है। यह भ्रम जितनी जल्दी दूर हो, भारत के भविष्य के लिए अच्छा होगा।