दिसंबर 2025 की सर्द सुबह में जब देश के हजारों यात्री इंडिगो की रद्द उड़ानों के कारण एयरपोर्ट के फर्श पर सोने को मजबूर हैं, और हम अभी भी जून 2025 के एयर इंडिया (अहमदाबाद) हादसे की राख को कुरेद रहे हैं, एक सवाल पूछना जरूरी है: क्या हम वास्तव में "विश्व गुरु" बन रहे हैं, या हम एक सुनियोजित "कॉर्पोरेट बंधक" स्थिति में जी रहे हैं?

सरकार का पीआर तंत्र चिल्ला रहा है कि 2014 के बाद देश में विमानन क्रांति हुई। वे कहते हैं—"हवाई चप्पल वाला हवाई जहाज में है।" लेकिन यह सदी का सबसे बड़ा झूठ है। सच्चाई यह है कि पिछले एक दशक में, मनमोहन सिंह के दौर की उस 'असली क्रांति' की हत्या कर दी गई है जिसने आम आदमी को उड़ना सिखाया था। आज जो बचा है, वह सिर्फ दो कंपनियों (इंडिगो और टाटा) का एकाधिकार (Duopoly) है, जो आपकी मजबूरी का मुनाफा वसूल रहे हैं।
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महाझूठ नंबर 1: "74 बनाम 157 एयरपोर्ट" का गणित

सरकार का सबसे बड़ा दावा है: "2014 में देश में सिर्फ 74 एयरपोर्ट थे, हमने इसे बढ़ाकर 157 कर दिया।"

यह आंकड़ों की बाजीगरी है। 2013-14 की 'एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया' (AAI) की रिपोर्ट चीख-चीख कर कहती है कि उस समय भारत में 125 एयरपोर्ट और सिविल एन्क्लेव मौजूद थे। सरकार ने 2014 के आँकड़ों में सिर्फ उन एयरपोर्ट्स को गिना जहां कमर्शियल फ्लाइट्स आती थीं (74), लेकिन 2025 के आंकड़ों में हर उस हवाई पट्टी, हेलिपैड और वाटर-एरोड्रम को जोड़ लिया जहां कभी-कभार कोई छोटा विमान उतरता है।

एयरपोर्ट पर सरकार का दावा

सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने जिन बड़े हवाई अड्डों (जैसे सिक्किम का पाकयोंग या केरल का कन्नूर) का फीता काटा, उनकी नींव, जमीन अधिग्रहण और मंजूरी यूपीए सरकार के दौरान ही हो चुकी थी। पाकयोंग को 2008 में मंजूरी मिली थी। वर्तमान सरकार ने सिर्फ ईंटें जोड़ी हैं, नींव नहीं रखी। उल्टा, उन्होंने जनता के पैसे से बने, मुनाफा कमाने वाले मुंबई, लखनऊ और गुवाहाटी जैसे एयरपोर्ट्स को 'निजीकरण' के नाम पर एक खास मित्र (अडानी समूह) की झोली में डाल दिया। यह 'राष्ट्र निर्माण' नहीं, 'संपत्ति हस्तांतरण' है।

महाझूठ नंबर 2: "उड़ान योजना और सस्ता किराया"

याद कीजिए 2005-2008 का दौर। कैप्टन गोपीनाथ की 'एयर डेक्कन' और विजय माल्या की 'किंगफिशर' के बीच प्राइस वॉर चल रहा था। तब सरकार ने कोई सब्सिडी नहीं दी थी, फिर भी बाजार की प्रतिस्पर्धा ने टिकट का दाम 999 रुपये और कई बार 1 रुपये तक पहुंचा दिया था। वह असली 'मुक्त बाजार' था।

आज, सरकार की बहुप्रचारित 'उड़ान' (UDAN) योजना का हश्र देखिए। दावा था 2,500 रुपये में हवाई यात्रा का। लेकिन दिसंबर 2025 में सरकार खुद 1500 किमी से कम की उड़ानों के लिए 18,000 रुपये तक की कैपिंग (सीमा) लगा रही है। यह हवाई चप्पल वाले का मजाक उड़ाना है।

उड़ान योजना में दावा

कैग (CAG) की रिपोर्ट्स ने इस झूठ का पर्दाफाश कर दिया है। 52% से ज्यादा 'उड़ान' रूट्स शुरू होने के बाद बंद हो गए क्योंकि वे केवल तब तक चलते थे जब तक सरकार 'वायबिलिटी गैप फंडिंग' (VGF) यानी सब्सिडी देती थी। जैसे ही सब्सिडी खत्म, उड़ान बंद। यह कनेक्टिविटी नहीं, एयरलाइनों को सरकारी खैरात बांटने की योजना थी।
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नीतिगत हत्या: प्रतिस्पर्धा से 'डुओपॉली' तक

मनमोहन सिंह के कार्यकाल (2004-2014) में यात्रियों की संख्या में 443% की वृद्धि हुई थी। आज यह वृद्धि दर गिरकर 132% के आसपास रह गई है। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि उस समय जेट एयरवेज, किंगफिशर, सहारा, डेक्कन, स्पाइसजेट, इंडिगो और गोएयर जैसे 7-8 खिलाड़ी मैदान में थे।

2014 के बाद की नीतियों ने सुनियोजित तरीके से छोटे खिलाड़ियों का गला घोंटा-

0/20 नियम: पुरानी एयरलाइनों को विदेश उड़ने के लिए 5 साल का अनुभव चाहिए था, लेकिन नई नीति ने इंडिगो जैसी कैश-रिच कंपनियों को तुरंत विदेशी उड़ान भरने की छूट दे दी, जिससे पुराने खिलाड़ियों का अनुभव बेकार हो गया।

ईंधन (ATF) की मार: दुनिया में तेल सस्ता हुआ, लेकिन भारत में टैक्स नहीं घटा। सरकार ने जेट और गो-फर्स्ट को मरने दिया ताकि बाजार साफ होकर सिर्फ दो दिग्गजों—टाटा (एयर इंडिया/विस्तारा) और इंडिगो—के पास आ जाए। आज 86% बाजार इनके पास है। अब वे जो किराया मांगेंगे, आपको देना होगा।
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सुरक्षा और भविष्य

दिसंबर 2025 का यह संकट अचानक नहीं आया है। यह पिछले 10 वर्षों से एक 'नीतिगत शिफ्ट' का परिणाम है—जिसने "यात्री-केंद्रित" मॉडल को "कॉर्पोरेट-केंद्रित" मॉडल में बदल दिया।

हमने 125 हवाई अड्डों की ठोस नींव (2014) से शुरुआत की थी, जिसे मनमोहन सिंह सरकार और NTDPC की दूरदर्शी सोच ने तैयार किया था। लेकिन आज, हमारे पास 157 हवाई अड्डों का सिर्फ आंकड़ा है, जबकि आम नागरिक 18,000 रुपये का टिकट खरीदने में असमर्थ है और सुरक्षा भगवान भरोसे है। यह 'अमृत काल' नहीं, भारतीय विमानन का 'अंधकार युग' है।

जून 2025 में अहमदाबाद में हुआ एयर इंडिया हादसा भी कोई दुर्घटना नहीं थी, वह सिस्टम की विफलता थी। पायलटों की थकान, स्पेयर पार्ट्स की कमी और मुनाफे की भूख ने सुरक्षा मानकों को ताक पर रख दिया है।

भारत का एविएशन सेक्टर आज आईसीयू में है। हमने 'प्रतिस्पर्धा' को मारकर 'एकाधिकार' को चुना है। 2009 के 'राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति' (NTDPC) ने जिस वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर का सपना देखा था, उसे आज "सेल्फी पॉइंट्स" और महंगे एयरपोर्ट बर्गर में बदल दिया गया है। यह 21वीं सदी का सबसे बड़ा एविएशन घोटाला है- जहाँ जनता जमीन पर है और कीमतें आसमान में।