दिल्ली विधानसभा के 2013 चुनावों से कुछ समय पहले की बात है। तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सुबह-सुबह किसी एक संपादक से नाश्ते पर मुलाकात किया करती थीं। एक दिन मुझे भी आमंत्रण मिला। राजनीति पर बातें हुईं तो मैंने उनसे कहा कि आजकल दिल्ली के हर ऑटो के पीछे आपकी और अरविंद केजरीवाल की फोटो लगी है। केजरीवाल की फोटो के नीचे ईमानदार और आपकी फोटो के नीचे बेईमान लिखा है। ये सभी पोस्टर आम आदमी पार्टी लगा रही थी। मेरा मानना था कि अगर कोई व्यक्ति अपने आपको ईमानदार कहता है तो किसी को एतराज नहीं होना चाहिए लेकिन वह बिना किसी सबूत के वह दूसरे को बेईमान कैसे कह सकता है? शीला जी इस मामले में अनजान बने रहना चाहती थीं या फिर यह सोचती थीं कि ऐसे आरोपों का खंडन करके या फिर कोई क़ानूनी कार्रवाई करके केजरीवाल को क्यों महत्व दें?