हाल ही में सरकार ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी की नई दरों की घोषणा की है। अब चार की जगह जीएसटी के दो स्लैब ही रहेंगे। सरकार का दावा है कि दाम घटेंगे तो माँग बढ़ेगी लेकिन टैक्स कम होने से सरकारी खजाने को 48,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होगा। साथ ही राज्यों के राजस्व को भी नुक़सान होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 50% टैरिफ लगाने की पृष्ठभूमि में जीएसटी सुधार के इस कदम को मीडिया मास्टर स्ट्रोक बताते हुए दावा कर रहा है कि इससे आम लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन आज राहत देने की बात करने वाले ही बीते आठ साल से तकलीफ़ दे रहे थे, यह बात ग़ायब है। बहरहाल, अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए इस दावे पर यक़ीन करना मुश्किल है कि मात्र इस कदम से उसमें चमक लौट आएगी।
जीएसटी 2.0 से अर्थव्यवस्था चमकाने के दावे में कितना दम?
- विश्लेषण
- |
- |
- 8 Sep, 2025

सरकार का दावा है कि जीएसटी 2.0 से दाम घटेंगे और माँग बढ़ेगी, जिससे अर्थव्यवस्था को नई रफ़्तार मिलेगी। लेकिन क्या इन दावों में वाकई दम है? जानें वास्तविक स्थिति क्या है और संभावित असर क्या होगा।
जीएसटी का इतिहास
जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स एक अप्रत्यक्ष कर है, जो सामान और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है। इसका मकसद था देश में कई तरह के टैक्स – जैसे वैट, सर्विस टैक्स, और एक्साइज ड्यूटी – को एक सिंगल टैक्स में बदलना था। यह विचार पहली बार यूपीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय सामने आया था, लेकिन उस वक्त बीजेपी इसका विरोध कर रही थी। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने कहा था:
"GST के संबंध में गुजरात और भारतीय जनता पार्टी का रुख बहुत साफ है। आपका जीएसटी का सपना तब तक साकार नहीं हो सकता, जब तक आप पूरे देश में टैक्सपेयर के साथ आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर का नेटवर्क नहीं बनाते। ये असंभव है। क्योंकि जीएसटी की संरचना ही ऐसी है कि हम इसे लागू नहीं कर सकते।”