महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल के बीच आरक्षण को लेकर खिंची तलवार राज्य का राजनीतिक संतुलन बिगाड़ सकता है। सरकार ने मराठों को आरक्षण देने का रास्ता निकाला है लेकिन छगन भुजबल ने इसे ओबीसी समुदाय के साथ धोखा करार दिया है। सरकार ने मराठा आरक्षण के लिए जारी आंदोलन ख़त्म करने में जो कामयाबी पायी थी वह कैबिनेट मंत्री छगन के ‘भुज’बल को देखते हुए संकट में पड़ गयी है। इसी के साथ रोज़गार के सवाल को आरक्षण तक सीमित रखने की राजनीति की सीमा भी उजागर हो गयी है।
मराठा आरक्षण: छगन के ‘भुज’बल से कैसे निपटेंगे फडणवीस?
- विश्लेषण
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- 4 Sep, 2025
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण पर छगन भुजबल के तेवर से महायुति सरकार संकट में? क्या फडणवीस इस ‘भुजबल’ दबाव से निकल पाएंगे? जानें राजनीतिक समीकरण।

देवेंद्र फडणवीस और छगन भुजबल
मराठा आरक्षण का विवाद
मुंबई के आजाद मैदान में मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति को हिला दिया था। मनोज जराँगे पाटिल इस मुद्दे को लेकर लगभग एक दशक से आंदोलन चला रहे हैं। मराठा समुदाय महाराष्ट्र की कुल आबादी का 32-33% हिस्सा है। उसके बीच ओबीसी आरक्षण का मुद्दा बड़ा हो चुका है। मनोज जरांगे पाटिल इस मुद्दे पर पाँच दिनों से अनशन पर थे। आख़िरकार सरकार ने 2 सितंबर को इस सिलसिले में हैदराबाद गजट को लागू करने का शासनादेश जारी कर दिया जिसके बाद पाटिल ने अपना अनशन ख़त्म कर दिया।
मराठा आरक्षण की मांग 1980 के दशक में अण्णासाहेब पाटील ने शुरू की थी। वैसे मराठा समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली माना जाता है। 1960 से अब तक महाराष्ट्र के 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं। फिर भी, 2024 की महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की रिपोर्ट बताती है कि 84% मराठा क्रीमी लेयर से बाहर हैं, और 21.22% गरीबी रेखा से नीचे हैं। ग्रामीण मराठा बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, जिसके चलते वे आरक्षण को अपनी समस्याओं का समाधान मानते हैं।