आरके सिंह बीजेपी से निलंबित। डाटा प्रोटेक्शन एक्ट।
बिहार चुनाव के मतदान के साथ ही मोदी सरकार ने करप्शन खोलने और बोलने वालों पर डबल सर्जिकल स्ट्राइक की। एक तो करप्शन पर एनडीए सरकार को आईना दिखाने वाले बीजेपी के ही पूर्व केन्द्रीय मंत्री व पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव रहे आर के सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया, तो दूसरे डेटा प्राइवेसी के नाम पर भ्रष्टाचार उजागर करने में जनता के सबसे ताक़तवर हथियार - आरटीआई कानून के उस प्रावधान को डिलीट कर दिया, जिसके तहत जनता ‘बड़े जनहित’ के लिए ज़रूरी सूचना सरकार से मांग सकती थी।
तमाम गोदी मीडिया ने इस क़ानून का जोरदार जश्न मनाया है। सच यह है कि मोदी के अमृत काल में करप्शन पर अब न कोई सवाल पूछने की इजाज़त है, और न सूचना मांगने की।
दरअसल, 14 नवंबर 2025 को नए डेटा संरक्षण नियमों की घोषणा करते हुए मोदी सरकार ने एक ऐसा जादू का खेल दिखाया है जिसमें उन्होंने आम आदमी को "डेटा प्राइवेसी" का चमकदार पैकेज तो दे दिया, लेकिन भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनता के सबसे ताक़तवर हथियार - सूचना का अधिकार यानी आरटीआई क़ानून के सबसे धारदार हथियार को गायब कर दिया। सरकार का संदेश साफ है, जनहित बाद में, पार्टी हित और पार्टी नीत सरकार हित पहले।
नए डेटा संरक्षण नियमों की घोषणा के साथ जारी आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कानून के लिंक दिए गए, लेकिन जब नागरिकों ने उसे क्लिक किया तो सामने एक संदेश आया: "सॉरी, यह पेज उपलब्ध नहीं है।"
नये डाटा संरक्षण नियमों की प्रेस विज्ञप्ति का हाल
मतलब साफ है, वे इसकी फाइन प्रिंट छिपाना चाहते हैं। हालांकि, 13 नवंबर 2025 की आधिकारिक गजट अधिसूचना (जी.एस.आर. 843(ई)) हासिल कर ली गई है। यह खुलासा करती है कि सरकार ने आरटीआई कानून को कानूनी तौर पर लंगड़ा करने वाला एक खंड सक्रिय कर दिया है। उनका नया नारा साफ है: "क्या खाया, क्या खिलाया, नहीं बताऊंगा।"
'निजी डेटा' सरकारी फाइलों पर एक ताला बना!
आम आदमी "निजी डेटा" सुनकर अपने आधार नंबर, बैंक विवरण, पर्सनल चैट, मेडिकल रिकॉर्ड के बारे में सोचता है। वह एक ऐसे कानून का स्वागत करेगा जो इसे सुरक्षित रखे। सरकार इसी का फायदा उठा रही है।
हत्यारा खंड है डीपीडीपी एक्ट की धारा 44(3)। इसने आरटीआई कानून में संशोधन कर दिया है। पुराना आरटीआई कानून (धारा 8(1)(जे)) समझदारी भरा था। इसमें कहा गया था कि हालाँकि आपका निजी डेटा सुरक्षित है, लेकिन अगर किसी सरकारी कर्मचारी की कार्रवाई "बड़े जनहित" से जुड़ी है, तो उस जानकारी को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।सरकार ने अब इस ‘जनहित’ वाले सुरक्षा वाल्व को मिटा दिया है।
अब, किसी भी जानकारी को "निजी डेटा" बताकर आपसे छिपाया जा सकता है। लेकिन एक सरकारी कर्मचारी के "निजी डेटा" का वास्तविक दुनिया में क्या मतलब है? यह उनका घर का पता या उनके बच्चे के नंबर नहीं है। यह तो भ्रष्टाचार के सबूत हैं।
यहां वो सब कुछ है जो आप फिर कभी नहीं जान पाएंगे, और ये सब "निजता की सुरक्षा" के नाम पर:
उदाहरण 1: एक ताकतवर मंत्री की शैक्षणिक डिग्री
पुराना आरटीआई: आप किसी मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री की यूनिवर्सिटी डिग्री के लिए आरटीआई दायर कर सकते थे, यह तर्क देकर कि उनकी शैक्षणिक योग्यता की सच्चाई "बड़े जनहित" का मामला है क्योंकि यह सार्वजनिक पद के लिए उनकी उपयुक्तता से जुड़ा है।
नई 'निजता' ढाल: सरकार अब इनकार कर सकती है, यह कहते हुए कि डिग्री मंत्री का "निजी डेटा" है। "जनहित" का तर्क अब मर चुका है। सच्चाई दफन रहेगी।
उदाहरण 2: एक अधिकारी के परिवार के विदेश दौरे के बिल
पुराना आरटीआई: अगर किसी वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पत्नी और बच्चों को एक सरकारी विदेश दौरे पर ले गया, तो आप बिल और विवरण मांग सकते थे, यह तर्क देकर कि निजी पारिवारिक छुट्टियों के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग भ्रष्टाचार है और "जनहित" का मामला है।
नई 'निजता' ढाल: सरकार अब मना कर देगी। परिवार के सदस्यों के नाम, उनके यात्रा की तारीखें, और किए गए खर्च सभी "निजी डेटा" हैं। "जनहित" वाला अपवाद ख़त्म। आपके पैसे से की गई शानदार छुट्टी एक राज्य का रहस्य बनकर रह जाएगी।
उदाहरण 3: एक मंत्री की उद्योगपतियों के साथ मीटिंग्स
पुराना आरटीआई: अगर कोई सरकारी नीति अचानक किसी खास कॉर्पोरेट घराने के पक्ष में हो जाती तो आप यह देखने के लिए मंत्री का लॉगबुक मांग सकते थे कि फ़ैसले से पहले वह उद्योगपति से कितनी बार मिले। यह एक क्लासिक "जनहित" में खुलासा था।
नई 'निजता' ढाल: मंत्री की नियुक्ति डायरी अब उनका "निजी डेटा" है। उनकी मीटिंग्स उनके "निजी मामले" हैं। सत्ता और पैसे के बीच की सांठगांठ अब कानूनी रूप से जनता की नजरों से सुरक्षित है।उदाहरण 4: एक संदिग्ध रक्षा सौदे का विवरण
पुराना आरटीआई: आप एक बहु-करोड़ रुपये की रक्षा खरीद से जुड़े फाइल नोटिंग्स और संचार को यह देखने के लिए मांग सकते थे कि क्या प्रक्रियाओं का पालन किया गया था।
नई 'निजता' ढाल: सरकार अब लगभग हर चीज को काला कर सकती है, यह दावा करते हुए कि निर्णय लेने में शामिल अधिकारियों के पास उनके विचार-विमर्श और राय के संबंध में "निजता का अधिकार" है। एक साफ-सुथरे, पारदर्शी सौदे में "जनहित" अब एक वैध तर्क नहीं रहा।
गजट अधिसूचना को छुपाने की कोशिश?
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी छुपाई गई यह अधिसूचना ही हथियार है। यह बताती है कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट, 2023 के विशेष खंड, जिनमें धारा 44(3) भी शामिल है, अब लागू हैं।इसकी टाइमिंग बेहद संदिग्ध है। अधिसूचना बिहार चुनाव नतीजों से एक दिन पहले जारी की गई, ताकि ख़बर दबी रहे। इससे भी ज़्यादा अपमानजनक व्यवसायों के लिए "18-माह का चरणबद्ध अनुपालन" है। एक निजी कंपनी को ढलने के लिए डेढ़ साल मिलता है। लेकिन सरकार को जवाबदेह ठहराने का आपका मौलिक अधिकार? रातों-रात बिना चेतावनी के छीन लिया गया।
यह ध्यान देने योग्य है कि बीते हफ्ते संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक दो दिन पहले पूर्व केंद्रीय ऊर्जा मंत्री बीजेपी नेता आरके सिंह ने राज्य में 62,000 करोड़ रुपये के बिजली घोटाले का चौंकाने वाला खुलासा किया था। सिंह ने आरोप लगाया कि राज्य के बिजली विभाग में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी हुई है, जिसमें बिहार सरकार के मंत्रालय के कई अधिकारी शामिल हैं। उन्होंने इस पूरे मामले की गहन जाँच केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई से कराने की मांग की। उसमें एक बड़े कॉर्पोरेट का नाम आ रहा था। चुनाव समाप्त होते ही सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया।
यह सरकार की वास्तविक प्राथमिकता को उजागर करता है: कॉर्पोरेट्स के लिए "सहज परिवर्तन" को सुगम बनाओ, लेकिन जनता की निगरानी का तत्काल और क्रूर शटडाउन कर दो।
"तुम्हारे लिए पारदर्शिता, हमारे लिए नहीं"
प्रेस विज्ञप्ति में गर्व से कहा गया है कि "डेटा फिड्यूशियरीज़ को स्पष्ट संपर्क जानकारी प्रदर्शित करनी होगी।" लेकिन क्या आप अब किसी संदिग्ध परियोजना को मंजूरी देने वाले अधिकारियों के कॉल रिकॉर्ड्स के लिए आरटीआई दायर कर सकते हैं? नहीं। वह उनका "निजी डेटा" होगा।
वे "डेटा प्रिंसिपल्स के अधिकारों को मज़बूत करने" की बात करते हैं। लेकिन एक "सार्वजनिक प्रिंसिपल" के तौर पर आपके चुने हुए प्रतिनिधियों पर डेटा तक पहुँचने का आपका अधिकार कुचल दिया गया है। सरकार ने एक ऐसी व्यवस्था बना दी है जहाँ एक व्यक्ति के रूप में आपकी निजता एक कर्तव्य है, लेकिन सरकार की पारदर्शिता एक विशेषाधिकार है जिसे उसने वापस ले लिया है।करप्शन, कुशासन पर चुप कराने की साजिश?
यह करप्शन और शासन की खामियों पर पब्लिक के प्रति जवाबदेही को ख़त्म करने की एक दशक लंबी साजिश का मास्टरस्ट्रोक है:
- 2019: आरटीआई कानून में संशोधन कर सूचना आयुक्तों को सरकार का अधीनस्थ बना दिया गया।
- प्रणालीगत तोड़फोड़: सूचना आयोगों को खाली पदों के साथ छोड़ दिया गया, जिससे डेढ़ लाख से अधिक अपीलें लंबित हैं।
- डर का माहौल: सवाल पूछने के लिए 100 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है। (Satark Nagrik Sangathan Report 2022)
अब, इस छुपे हुए कानूनी पेंच के साथ, मिशन पूरा हो गया है। उन्होंने सिस्टम को तोड़ा नहीं है; उन्होंने भ्रष्टाचार को कानूनी बनाने के लिए चुपके से कानून बदल दिया है। पीआईबी विज्ञप्ति वादा करती है कि नियम "विश्वास बढ़ाएंगे।" आम नागरिक के लिए, संदेश साफ है: अब आपके विश्वास की जरूरत नहीं है। आपके सवाल अब स्वागत योग्य नहीं हैं। नया भारत वह है जहाँ सरकार के रहस्य क़ानून द्वारा सुरक्षित हैं और जानने का आपका अधिकार एक ऐतिहासिक अवशेष है।
भारत का मौजूदा लोकतंत्र मोदी सरकार का घोषित अमृत काल है। मोदीजी हैं, तो कुछ भी मुमकिन है। नीतीश नायडू के समर्थन वाली एनडीए सरकार की इस नयी मर्यादा नीति में सीता की अग्निपरीक्षा नहीं होगी। जनकनंदिनी सीता के बिहार में घूमकर मोदी जी को माता सीता पर संदेह करने, सवाल उठाने वालों पर बहुत गुस्सा आया। सिंह ने सवाल कैसे उठाया? माता सीता की अग्नि परीक्षा? मोदीजी का आदेश - यह क्रूर है, बंद करो, और बाहर करो सिंह को। और आरटीआई के जरिये सवाल उठाने वाली जनता को बिहारी बाबू के अंदाज में मोदी जी ने कहा - खामोश!
पार्टी विद डिफरेंस बीजेपी की विजय के ये दो फल खाइये और बंगाल के लिए तैयार हो जाइए।