न्यूयॉर्क अमेरिका का सबसे बड़ा और सबसे जीवंत शहर है। यहाँ वॉल स्ट्रीट है — जो दुनिया भर के आर्थिक कार्य-व्यापार की दिशा तय करता है। यहाँ संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय है — जहाँ दुनिया के बारे में अहम फ़ैसले होते हैं।
फ़्रांस से मिले उपहार के रूप में 1886 में समुद्र तट पर स्थापित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी अमेरिका की पहचान है। यह प्रतिमा याद दिलाती है कि अमेरिका के गठन का मूल सिद्धांत है लिबर्टी यानी स्वतंत्रता। यह स्वतंत्रता किसी क़ीमत पर बाधित नहीं की जा सकती। लेकिन सवाल है कि इस स्वतंत्रता के अधिकार में सम्मानजनक जीने की स्वतंत्रता शामिल है कि नहीं। न्यूयॉर्क के लोगों के सामने यह बड़ा सवाल है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का गृह शहर कहलाने वाले न्यूयॉर्क की आबादी क़रीब 85 लाख है, लेकिन जीवन स्तर बनाये रखना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। महंगाई और बेरोज़गारी से लोग परेशान हैं।
- न्यूयॉर्क में औसत किराया: $3,397 प्रति माह
- पाँच साल में 20% किराया बढ़ा
- आधे लोग 50% से अधिक आय केवल किराये पर ख़र्च करते हैं
- अपराध और सार्वजनिक गोलीबारी से लोग परेशान
- ट्रंप प्रशासन की फंड कटौती से स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं पर असर — 30 लाख लोग प्रभावित
- जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और तूफ़ान का ख़तरा बढ़ा, पर निपटने का सिस्टम पुराना
ममदानी का वादा: "सस्ता न्यूयॉर्क"
न्यूयॉर्क में ग़रीबी भी कम नहीं है। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की एक सोशल मीडिया पोस्ट सच्चाई बयान करती है। उन्होंने लिखा — “अमेरिका के चार करोड़ सत्तर लाख नागरिकों को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिलता। हर पाँच बच्चों में से एक का भी यही हाल है, जिसका बचपन कुपोषित है।”
ज़ोहरान ममदानी ने इन्हीं समस्याओं पर उँगली रखी, जो उनके ख़िलाफ़ फैलाये गये तमाम उन्माद पर भारी पड़ी।
- ममदानी का कैंपेन था — "सस्ता न्यूयॉर्क”
- किराया फ्रीज — 10 लाख अपार्टमेंट्स पर 4 साल तक किराया नहीं बढ़ेगा
- 2 लाख किफायती घर बनाएँगे
- सबवे और बसें तेज़ करेंगे — एमटीए पर दबाव डालकर
- मुफ्त बसें लाने की कोशिश
- हर बच्चे के लिए मुफ्त डे-केयर (6 हफ्ते से)
- मिनिमम वेज $30/घंटा — 2030 तक
- अमीरों पर टैक्स बढ़ाना
आर्थिक मुद्दे भारी पड़े
ममदानी के कैंपेन को हर तरफ़ से समर्थन मिला। ख़ासतौर पर ग़रीबों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। क्षेत्र और नस्ल की सीमाएँ टूट गयीं। यहाँ तक कि यहूदी विरोधी कहे जाने के बावजूद बड़ी संख्या में युवा यहूदियों ने ज़ोहरान के लिए कैंपेन किया। यानी आर्थिक मुद्दे तमाम भावनात्मक मुद्दों पर भारी पड़े।
जबकि जनता की आर्थिक बदहाली के लिए ज़िम्मेदार राजनीति और राजनेता हमेशा चाहते हैं कि चुनाव भावनात्मक मुद्दों पर हो और मीडिया पर अपने नियंत्रण के ज़रिए बाज़ी मार लें। भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में ऐसा होता है। लेकिन ज़ोहरान की जीत ने बताया है कि सही नीयत और पक्के इरादे से इसे मात दी जा सकती है।