तालिबान विदेश मंत्री जयशंकर के साथ
पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान – दो पड़ोसी, एक ही ज़बान, एक ही क़बीला, एक ही मज़हब। कभी एक दूसरे के लिए जान देने को तैयार, लेकिन आज एक-दूसरे की जान के पीछे पड़े हैं। 11 अक्टूबर 2025 से पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ व्यापार ठप करने का ऐलान करते हुए सीमाएँ बंद कर दीं। हज़ारों ट्रक दोनों तरफ़ खड़े हैं। एक तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान के ट्रक फल-सब्ज़ियाँ लिए खड़े हैं। दूसरी तरफ़ पाकिस्तानी ट्रक सीमेंट, दवाइयाँ और कपड़ा लिए खड़े हैं जिनका कोई ख़रीदार नहीं।
पाकिस्तान का कहना है – “ख़ून और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते।”
वजह है तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी TTP। पाकिस्तान का आरोप है कि TTP के लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान में छिपे हैं और हमले कर रहे हैं। अक्टूबर में पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के अंदर हवाई हमले किये थे जिस पर तालिबान भड़क गया। गोलीबारी हुई, दोनों तरफ़ सैनिक मारे गये। बस, उसी गुस्से में व्यापार बंद का ऐलान हुआलेकिन दो महीने भी नहीं बीते कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कराहने लगी।
पाकिस्तान को नुक़सान?
सीमेंट कारख़ाने ठप – अफ़ग़ानिस्तान से सस्ता कोयला आना बंद। अब दक्षिण अफ़्रीका और इंडोनेशिया से कोयला ला रहे हैं। कीमत 30 हज़ार से बढ़कर 45 हज़ार रुपये प्रति टन।
दवाइयाँ – हर साल अफ़ग़ानिस्तान को 187 मिलियन डॉलर की दवाइयाँ जाती थीं। अब कारख़ानों में स्टॉक पड़ा सड़ रहा है।फल-
सब्ज़ियाँ – पेशावर और क्वेटा की मंडियों में ढेर लगे हैं। प्याज़, टमाटर, सेब सब सड़ रहे हैं। कीमतें आधी से भी कम।ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के पठान सड़कों पर हैं। छोटे व्यापारी, ट्रक ड्राइवर, मज़दूर – सब बर्बाद।
पाकिस्तान का प्रसिद्ध अख़बार डॉन लिखता है – हर हफ़्ते अरबों रुपये का नुक़सान। विदेशी मुद्रा के भंडार पहले से कम हैं, ऊपर से राजस्व भी घट गया।
अफ़ग़ानिस्तान पर असर?
अफ़ग़ानिस्तान को भी नुक़सान हुआ है जो लैंडलॉकड देश है। पहले 70% से ज़्यादा आयात पाकिस्तान के रास्ते आता था। लेकिन तालिबान झुकने को तैयार नहीं है। उसने नये रास्ते खोले हैं।
- ईरान का चाबहार बंदरगाह खुल गया। इसे भारत ने बनाया है। अफ़ग़ान ट्रक ईरान होते हुए भारत से सामान ला-ले जा रहे हैं।
- उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान के रास्ते खुले।तुर्की और रूस से नए व्यापारिक रिश्ते बन रहे हैं।
- अक्टूबर और नवंबर 2025 में दो बड़े अफ़ग़ान डेलिगेशन दिल्ली आए।
- विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी खुद भारत आए और जयशंकर से मिले।
यानी पाकिस्तान ने दरवाज़ा बंद किया तो अफ़ग़ानिस्तान ने सारी खिड़कियाँ खोल दीं।
दुश्मनी आई कहाँ से?
इसकी जड़ 1893 में है। ब्रिटिश अफ़सर सर मोर्टिमर ड्यूरंड ने अफ़ग़ान अमीर अब्दुर रहमान ख़ान से नक़्शे पर एक लकीर खिंचवाई –ड्यूरंड लाइन। 2,640 किलोमीटर लंबी यह लकीर ब्रिटिश भारत और अफ़ग़ानिस्तान को विभाजित करती थी।इस लकीर ने पश्तून क़बीलों को दो टुकड़ों में काट दिया।भारत विभाजन के बाद यह लाइन अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा बन गयी।अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रवादियों ने कभी इसे मान्यता नहीं दी। कहते हैं – “ये अंग्रेज़ों की थोपी हुई लकीर है!”1947 में जब पाकिस्तान बना तो अफ़ग़ानिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में उसकी सदस्यता का विरोध किया था – दुनिया का इकलौता देश जिसने ऐसा किया। फिर 1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया। अमेरिका, सऊदी अरब और पाकिस्तान ने मिलकर मुजाहिदीन को हथियार दिए। पाकिस्तान की ISI ने पेशावर-क्वेटा के मदरसों में हज़ारों लड़कों को ट्रेनिंग दी। इन्हीं में से निकले तालिबान। यह युद्ध दस साल चला। सोवियत सेनाएँ वापस चली गयीं तो तमाम अफ़ग़ान कबीले आपस में लड़ने लगे। उनके पास अमेरिकी हथियार थे जिनकी वजह से वे काफ़ी घातक हो चुके थे।
- 1994 में मुल्ला उमर ने तालिबान बनाया जिसने 1996 में काबुल पर क़ब्ज़ा।
- तालिबान मदरसे में पढ़ने वाले तालिब यानी छात्र शब्द का बहुवचन है।
- सोवियत सेनाओं से लड़ने के नाम पर पाकिस्तान के तमाम मदरसों में अफ़ग़ान शरणार्थी बच्चों को ट्रेनिंग दी गयी थी।
- मुल्ला उमर ने उन्हें तालिबान के रूप में संगठित कर लिया था।
- उस वक़्त पाकिस्तान, सऊदी अरब और UAE – सिर्फ़ तीन देशों ने तालिबान को मान्यता दी थी।
फिर 9/11 हुआ जिसके लिए ज़िम्मेदार तालिबान को माना गया जिसने अल क़ायदा को मदद की थी। अमेरिका ने तालिबान को उखाड़ फेंकने का अभियान शुरू किया। पाकिस्तान ने दिखावे के लिए अमेरिका का साथ दिया। ऐसे में तालिबान को लगा – “पाकिस्तान ने धोखा दिया।” 2021 में अमेरिका चला गया और तालिबान वापस आया। पाकिस्तान ने सोचा – अब तो हमारा पुराना दोस्त सत्ता में है। लेकिन तालिबान ने कहा – “हम अफ़ग़ान हैं, तुम्हारे गुलाम नहीं। ड्यूरंड लाइन नहीं मानते।” और इसी बीच TTP बना।
2007 में बैतुल्लाह महसूद ने कई छोटे जिहादी गुटों को मिलाकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान बनाया। ये लोग कहते हैं – “पाकिस्तानी फ़ौज अमेरिका की गुलाम है, हम पाकिस्तान में भी शरिया लाएँगे।”2021 से अब तक TTP ने पाकिस्तान में 600 से ज़्यादा हमले किए। हज़ार से ज़्यादा सैनिक और नागरिक मारे गए।पाकिस्तान चिल्लाता है – “तालिबान, अपने मेहमानों (TTP) को भगाओ!” तालिबान कहते हैं – “ये हमारे मेहमान हैं, हम पश्तून रिश्ता निभाएँगे।”
अफगानिस्तान का मौजूदा हाल
पाकिस्तान में व्यापारी तबाह हो रहे हैं। वे सरकार से व्यापार शुरू करने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने भी व्यापार फिर शुरू करने को कहा है। लेकिन सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर टस से मस नहीं हो रहे। कहते हैं – “पहले TTP को ख़त्म करो, फिर बात होगी।” दूसरी तरफ़ तालिबान के सुप्रीम लीडर मौलाना हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा चुपचाप कंधार में बैठे हैं। कोई फोटो नहीं, कोई बयान नहीं। बस हुक्म चल रहा है – “पाकिस्तान से निर्भरता ख़त्म करो।” चाबहार के रास्ते ईरान और भारत से तथा ज़मीन के रास्ते रूस और अन्य मध्य एशियाई देशों से व्यापारिक रास्ते खोले जा रहे हैं।यानी जिस आतंकवाद को पाकिस्तान ने 40 साल तक पाला-पोसा, आज वही उसकी कमर तोड़ रहा है। जिस ड्यूरंड लाइन को पाकिस्तान ने हमेशा सख़्ती से लागू करना चाहा, उसी को तालिबान आज भी नहीं मानते। और जिस भारत को पाकिस्तान ने हमेशा अफ़ग़ानिस्तान से दूर रखना चाहा, आज वही भारत चाबहार के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान का नया व्यापारिक दोस्त बन रहा है। शायद पाकिस्तान ने जो बोया था, वही काट रहा है।