2025 का भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहाँ विपक्ष की आवाज़ अब सिर्फ प्रतिरोध नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण की घोषणा बन चुकी है। राहुल गांधी की हर प्रेस कॉन्फ्रेंस अब एक राजनीतिक विस्फोट है— जिसमें सिर्फ आरोप नहीं, बल्कि दस्तावेज़ी प्रमाण, तकनीकी विश्लेषण और जनभावनाओं की गूंज शामिल होती है। 18 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन के ठीक अगले दिन, राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर 'केंद्रीकृत वोट चोरी ऑपरेशन' का आरोप लगाकर एनडीए सरकार की नींव पर प्रहार किया। सवाल सबके मन में फिर से पुख्ता हो उठा, क्या सरकारें इसी तरह बन रही हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे निशाने पर न लेकर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग और सरकार पर ऐसा हमला बोला जिसने भारतीय राजनीति को हिला कर रख दिया। उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर 'केंद्रीकृत वोट चोरी ऑपरेशन' को संरक्षण देने का आरोप लगाया और इसे 'लोकतंत्र की हत्या' करार दिया।
18 सितम्बर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कर्नाटक सीआईडी की जांच का हवाला दिया, जिसमें आयोग को 18 महीनों में 18 बार तकनीकी जानकारी मांगी गई थी—जैसे IP एड्रेस, OTP ट्रेल्स, डिवाइस पोर्ट्स। लेकिन चुनाव आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया। राहुल ने कहा, “अगर ये जानकारी दी जाती, तो ऑपरेशन चलाने वाले तक सीधा पहुंचा जा सकता था”।
राहुल गांधी ने तीन उदाहरण दिए
- गोदाबाई, 63 वर्षीय महिला, जिनके नाम से 12 वोट हटाने के लिए फर्जी लॉगिन बनाया गया।
- सूर्याकांत, जिनके नाम से 14 मिनट में 12 वोट हटाए गए, जबकि उन्हें कोई जानकारी नहीं थी।
- नागराज, जिनके नाम से 36 सेकंड में दो डिलीशन फॉर्म भरे गए—राहुल ने कहा, “यह मानव रूप से असंभव है।”
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को “भ्रामक और तथ्यहीन” बताया। आयोग ने कहा: “कोई भी आम नागरिक ऑनलाइन वोट डिलीट नहीं कर सकता। हर डिलीशन से पहले संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिया जाता है।”
आयोग ने कहा कि: “कोई भी आम नागरिक ऑनलाइन वोट डिलीट नहीं कर सकता।" राहुल गाँधी ने भी आम नागरिक पर सवाल नहीं उठाये। उन्होंने कहा कि वोट तो फर्जी तरीके से डिलीट हुए हैं। इसकी जाँच तो आयोग ही करा सकता है।
आयोग ने यह भी कहा कि 2023 में आलंद क्षेत्र में डिलीशन की कोशिश नाकाम रही थी और FIR आयोग ने ही दर्ज करवाई थी। पर सीआईडी के सवालों के जवाब क्यों नहीं दिये?
राहुल गाँधी ने दावा किया कि ये डिलीशन कांग्रेस के मजबूत बूथों में केंद्रित थे। “यह संयोग नहीं, एक योजनाबद्ध ऑपरेशन था।”
नियंत्रण की कोशिशें और बढ़ती चूकें
मोदी सरकार की प्रतिक्रिया अब एक डरे हुए शासक की तरह दिखती है। चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को “भ्रामक और तथ्यहीन” बताया, लेकिन तकनीकी सवालों का जवाब नहीं दिया। यही चुप्पी अब सबसे बड़ा जवाब बन गई है।
डिजिटल नियंत्रण की कोशिशें—चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल, सोशल मीडिया पर निगरानी, और वोटर डिलीशन जैसे आरोप—इस डर की अभिव्यक्ति हैं। The Guardian ने लिखा: “भारत का लोकतंत्र भीतर से खोखला हो रहा है।” NYT ने चेताया: “अगर वोटर को डिजिटल तरीके से मिटाया जा सकता है, तो लोकतंत्र बच नहीं सकता।”
भारत की छवि और मोदी की चुप्पी
अप्रैल से सितम्बर 2025 तक की घटनाएं बताती हैं कि भारत की विदेश नीति दबाव में है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में 9 ठिकानों पर हमला हुआ, लेकिन 9 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एकतरफा सीज़फायर की घोषणा कर दी। उन्होंने 50 से अधिक बार सार्वजनिक रूप से दावा किया कि “युद्ध मैंने रुकवाया।” इस पर मोदी सरकार की चुप्पी ने कई सवाल खड़े किए—क्या भारत की विदेश नीति अब आत्मनिर्भर है या बाहरी दबावों में झुकी हुई?
9 मई को भारत को वैश्विक मंच पर अभूतपूर्व अलगाव का सामना करना पड़ा—सिर्फ भूटान, इसराइल और ग्रीस ने समर्थन किया। इसके बाद अमेरिका ने भारत के टेक्सटाइल और फार्मा उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया, और रूस से तेल खरीदने पर अतिरिक्त शुल्क भी लगाया गया।
RSS और BJP में दरारें: संकेत या संकट?
मोदी ने RSS प्रमुख मोहन भागवत को 75वें जन्मदिन पर अख़बार में एक फुल-पेज लेख लिखकर बधाई दी। लेकिन भागवत ने कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी—न ही लेख के माध्यम से, न ही बयान के ज़रिए। राजनीतिक गलियारों में इसे “शब्दों की चुप्पी” कहा जा रहा है। वहीं, BJP अध्यक्ष का चुनाव दो वर्षों से लंबित है, जिससे संगठनात्मक लोकतंत्र पर सवाल उठ रहे हैं।
5 सितम्बर को RSS की बंद कमरे की बैठक में मुरली मनोहर जोशी ने 70 स्लाइड्स की प्रस्तुति दी, जिसमें भारत की आर्थिक गिरावट पर चिंता जताई गई। यह सब दर्शाता है कि सत्ता के केंद्र में अब एक असहज मौन और अंदरूनी असंतोष पनप रहा है।
बिहार, आधार और मतदाता पुनरीक्षण
बिहार में SIR को लेकर गहमागहमी है। आधार कार्ड पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं—क्या यह पहचान का साधन है या नियंत्रण का उपकरण? मतदाता पुनरीक्षण में लाखों लोगों को अधिकारिक रूप से कोई सूचना नहीं मिली। कई दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों के वोट बिना सुनवाई के हटाए गए। यह मुद्दा अब भोंथरा होता जा रहा है, लेकिन इसकी संवैधानिक गंभीरता बनी हुई है।
बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर सरकार की नीति अस्पष्ट है। बार-बार वादे हुए, लेकिन निष्कासन की कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। यह मुद्दा अब सिर्फ सुरक्षा का नहीं, बल्कि राजनीतिक ईमानदारी का सवाल बन चुका है।
विपक्ष की मजबूती और NDA की गहराती गड़बड़ी
राहुल गांधी की रणनीति ने विपक्ष को एक नई धार दी है। कांग्रेस, RJD, सपा और अन्य दल अब एक साझा नैरेटिव पर काम कर रहे हैं। बिहार, बंगाल और दक्षिण भारत में विपक्ष की पकड़ मजबूत हो रही है। वहीं NDA अब सतर्क नहीं, बल्कि ग़लतियों से घबराया हुआ दिखता है। हर नई चुनौती पर सरकार की प्रतिक्रिया डिफेंसिव होती जा रही है।
लोकतंत्र की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर
यह लड़ाई अब सिर्फ चुनावी नहीं रही—यह भारत के लोकतंत्र की आत्मा की लड़ाई है। राहुल गांधी हर बार एक नई गाँठ बाँधते हैं, और सरकार हर बार एक नई गलती करती है। जनता अब सिर्फ नेताओं को नहीं, संस्थाओं को भी देख रही है। 75 साल के भारत में, लोग RSS की ओर देख रहे हैं, लेकिन जवाब वहाँ से भी नहीं आ रहा।
दो वर्षों से BJP अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ, जिससे संगठनात्मक लोकतंत्र पर सवाल खड़े हुए हैं। दिल्ली में RSS की बंद कमरे की बैठक में मुरली मनोहर जोशी ने जो स्लाइड्स की प्रस्तुतियां दी, जिसमें भारत की आर्थिक गिरावट पर चिंता जताई गई, उसमें नोबल पुरस्कार प्राप्त वामपंथी अर्थशास्त्री डॉ अमर्त्य सेन का हवाला दिये जाने पर मोदी खेमे में आश्चर्य है। इसके बाद 11 सितम्बर 2025 को मोदी ने RSS प्रमुख मोहन भागवत के जन्मदिन पर एक फुल-पेज अख़बार लेख लिखा, जिसे “विदाई संदेश” माना गया। मोदी ने संघ को एक एनजीओ बताकर कद घटाया। मोदी खेमा चाहता है कि वो 75 के हैं, तो पहले खुद रिटायर हों। जबकि वे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं हैं। और मोदी के रिटायर होने की बात न करें। शायद इसीलिए 17 सितम्बर 2025 को भागवत ने मोदी के जन्मदिन पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी—राजनीतिक गलियारों में इसे “शब्दों की चुप्पी” कहा जा रहा है।
यह मौन, यह चुप्पी, यह नियंत्रण—सब मिलकर एक नए भारत की पटकथा लिख रहे हैं। सवाल यह नहीं कि कौन जीतेगा, सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र बचेगा।
इधर लोकतंत्र की लूट पर राहुल गांधी का दावा है कि अभी तो वे ‘हाइड्रोजन बम’ फोड़ने की बुनियाद बना रहे हैं। यह कह कर उन्होंने मोदी सरकार की साख पर पहले से ही छाया संकट और गहरा दिया है।