राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक ऐसा संगठन है, जिसके प्रभाव को आज भारत की सत्ता और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। लेकिन अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुके इस संगठन को अब तक तीन बार प्रतिबंध का सामना करना पड़ा है। पहला प्रतिबंध तो महात्मा गाँधी की हत्या से संबंधित था जब गृहमंत्री सरदार पटेल ने कहा था कि आरएसएस के बनाये विषाक्त वातावरण की वजह से महात्मा गाँधी की जान गयी। इसके बाद इमरजेंसी के दौरान और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी संघ पर प्रतिबंध लगा, लेकिन जल्दी ही उसे राहत मिल गयी।

RSS पर पहला प्रतिबंध

30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी के खुले सीने र तीन गोलियाँ मारकर उनकी हत्या कर दी थी। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के अनोखे प्रयोग के बल पर भारत को आजादी दिलाई थी। वे एक ऐसे भारत का सपना देखते थे, जहां हिंदू, मुस्लिम सहित सभी अल्पसंख्यक समुदाय समान नागरिक भाव के साथ रहते हों। लेकिन आरएसएस की शाखाओं में प्रशिक्षित और हिंदू महासभा नेता विनायक दामोदर सावरकर के शिष्य नाथूराम गोडसे की नज़र ये बड़ा गुनाह था और उसने दुनिया को रोशनी देने वाली एक महाज्योति बुझा दी।  गोडसे 'संघी राष्ट्रवादी’ था जो पिस्तौल चलाना जानता था लेकिन किसी अंग्रेज़ पर कंकड़ भी नहीं फेंका जबकि महात्मा गाँधी की जान ले ली। वह आजाद भारत का पहला आतंकवादी था।
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RSS की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। यह संगठन शुरू से ही केवल हिंदुओं को संगठित करने पर जोर देता था। इसने आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया। न तो 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में, न ही 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उसकी भूमिका रही। उल्टा, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान RSS ने अंग्रेजी सेना में हिंदुओं की भर्ती के लिए अभियान चलाया, जिसका इस्तेमाल सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के खिलाफ होना था। आरएसएस ने वह सब किया जो अंग्रेज़ों की फूट डालो-राज करो की नीति के अनुरूप था। 

महात्मा गांधी की हत्या के बाद, गृहमंत्री सरदार पटेल ने RSS की गतिविधियों को देश के लिए खतरा माना। उन्होंने 4 फरवरी 1948 को RSS पर प्रतिबंध लगा दिया। सरदार पटेल ने अपने पत्रों में लिखा कि RSS ने देश में सांप्रदायिक विष फैलाया और गांधी की हत्या के बाद इसके कार्यालयों में मिठाई बांटी गई। 11 सितंबर 1948 को तत्कालीन सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर को लिखे पत्र में पटेल ने कहा, “RSS के भाषण सांप्रदायिक विष से भरे थे... गांधी जी की मृत्यु पर RSS वालों ने जो हर्ष प्रकट किया और मिठाई बांटी, उससे यह विरोध और भी बढ़ गया।” 

RSS ने दावा किया कि नाथूराम गोडसे ने संगठन छोड़ दिया था, लेकिन गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने बाद में इस दावे का खंडन किया। गोपाल ने कहा कि नाथूराम ने कभी RSS नहीं छोड़ा, और यह बात संगठन को बचाने के लिए कही गयी थी।

पहला प्रतिबंध कैसे हटा?

RSS पर लगा पहला प्रतिबंध 11 जुलाई 1949 को हटा। भारत सरकार की विज्ञप्ति में कहा गया कि RSS ने आश्वासन दिया है कि वह भारत के संविधान और राष्ट्रध्वज के प्रति निष्ठा रखेगा, हिंसा में विश्वास नहीं करेगा, और संगठन का संविधान जनवादी तरीके से तैयार किया जाएगा। इसके अलावा, सरसंघचालक को व्यवहारतः चुना जाएगा, और नाबालिगों को अभिभावकों की अनुमति से ही संगठन में शामिल किया जाएगा।

हालांकि, RSS ने इन वादों को पूरी तरह निभाया नहीं। संगठन का संविधान तो बनाया गया, लेकिन सरसंघचालक आज भी चुना नहीं जाता, बल्कि नामित किया जाता है। इसके अलावा, RSS ने संविधान का विरोध भी किया। 26 नवंबर 1949 को जब भारत का संविधान स्वीकार किया गया, तो RSS के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने 30 नवंबर 1949 को इसके खिलाफ संपादकीय लिखा। गोलवलकर ने तिरंगे को अशुभ बताया, और 52 साल  तक RSS मुख्यालय में राष्ट्रध्वज नहीं फहराया गया।

पटेल से किये वादे को तोड़ा

RSS ने सरदार पटेल से वादा किया था कि वह राजनीति से दूर रहेगा, लेकिन इस वादे को भी तोड़ा गया। 1951 में RSS ने जनसंघ की स्थापना की।1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ, लेकिन RSS की सदस्यता के मुद्दे पर जनता पार्टी टूट गई। जनसंघ पृष्ठभूमि से आये नेता जनता पार्टी में रहते हुए आरएसएस के प्रति भी निष्ठा जता रहे थे जिससे दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया। 1980 में BJP का गठन हुआ, जिसमें शीर्ष पदों पर RSS से जुड़े लोग ही  रहे। 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला भी RSS का ही था।

इमरजेंसी और दूसरा प्रतिबंध

1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल (Emergency) लागू किया। उन्होंने RSS और जमात-ए-इस्लामी पर सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए प्रतिबंध लगा दिया। उस समय RSS के सरसंघचालक बाला साहेब देवरस ने इंदिरा गांधी को कई पत्र लिखे और आश्वासन दिया कि संगठन का आपातकाल विरोधी आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि RSS स्वयंसेवक सरकार के 20-सूत्री कार्यक्रम को लागू करने में सहयोग करेंगे। लेकिन इंदिरा गांधी ने न तो मुलाकात की और न ही प्रतिबंध हटाया। 
यह प्रतिबंध दो साल तक चला। 1977 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से हटीं और जनता पार्टी की सरकार बनी, तब इस प्रतिबंध को हटाया गया। इस दौरान कई RSS कार्यकर्ताओं ने माफी मांगकर जेल से रिहाई हासिल की।

बाबरी मस्जिद टूटने पर लगा तीसरा प्रतिबंध

10 दिसंबर 1992 को RSS पर तीसरा प्रतिबंध लगा। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को कार सेवकों ने तोड़ दिया था। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, जो RSS की शाखाओं से प्रशिक्षित थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार को आश्वासन दिया था कि मस्जिद की रक्षा की जाएगी। कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि:
  • बाबरी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा।
  • अयोध्या में केवल प्रतीकात्मक कार सेवा (जैसे भजन-कीर्तन) होगी।
  • कानून-व्यवस्था बनाए रखी जाएगी और मस्जिद की सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात होगा।
लेकिन 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ढहा दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपनी अवमानना माना और कल्याण सिंह को एक दिन की प्रतीकात्मक सजा दी। 2009 के लिब्रहान आयोग ने कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को विध्वंस के लिए जिम्मेदार ठहराया। आयोग ने कहा कि कल्याण सिंह ने उन अधिकारियों को अयोध्या में तैनात किया, जो विध्वंस के दौरान चुप रहे। 

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अपनी किताब Ayodhya 6 December 1992 में लिखा कि कल्याण सिंह का आश्वासन एक धोखा था। केंद्र सरकार ने RSS, VHP और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया। लेकिन RSS ने इसे ट्रिब्यूनल में चुनौती दी, और जून 1993 में जस्टिस पी.के. बहरी की अध्यक्षता वाले ट्रिब्यूनल ने प्रतिबंध हटा लिया। ट्रिब्यूनल ने माना कि सरकार के पास RSS को जिम्मेदार ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।
राममंदिर आंदोलन के दौरान सभी दलों का करना था कि विवाद का हल अदालत से होगा, लेकिन तब आरएसएस कह रहा था कि आस्था का सवाल अदालत से हल नहीं किया जा सकता। हालाँकि अंत में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से ही राममंदिर बनने का रास्ता साफ़ हुआ। 
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RSS और हिंदू राष्ट्र का विचार

RSS ने हमेशा दावा किया कि यह एक सांस्कृतिक संगठन है, लेकिन इसके कार्य और विचारधारा इसे राजनीतिक और सांप्रदायिक संगठन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। RSS ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की शपथ ली है। इसके विचारक, जैसे एम.एस. गोलवलकर, मानते थे कि हिंदू राष्ट्र में अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में रहना होगा। सरदार पटेल ने इस विचार को “पागलपन” कहा था। 

रामममंदिर बनाने के बहाने RSS ने हिंदुत्व के पक्ष में देश भर में माहौल बनाया। इसके सहयोगी संगठनों, जैसे BJP, VHP और बजरंग दल, ने बाबरी मस्जिद-राम मंदिर आंदोलन के जरिए राजनीतिक ताकत हासिल की।  2014 में BJP की पूर्ण बहुमत की सरकार बनना इस आंदोलन का परिणाम था।