दिल्ली हिंसा की साज़िश रचने के आरोप में पाँच साल से जेल में बंद उमर ख़ालिद और अन्य आरोपितों को ज़मानत न मिलना न्यायपालिका के रवैये पर गंभीर सवाल उठा रहा है। आमतौर पर न्याय व्यवस्था में जमानत को नियम और जेल को अपवाद माना जाता है, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट को महज़ आरोपों के कारण नौजवानों का पाँच साल से जले में रहना बिल्कुल भी नहीं अखर रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज करते हुए जो कुछ कहा है, उससे लगता है कि अब सरकार के विरोध में प्रदर्शन सरकार की इजाज़त से ही हो सकते हैं। इस मामले में दिल्ली पुलिस का दोहरा रवैया भी साफ़ है जिसने ऐसे ही आरोप में फँसे भाजपा नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई में कोई रुचि नहीं दिखायी।
पाँच साल बाद भी उमर को बेल न मिलना न्याय व्यवस्था पर सवाल
- विश्लेषण
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- 4 Sep, 2025

दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद को पाँच साल बाद भी जमानत नहीं मिली। इस देरी ने भारतीय न्याय व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
याचिका ख़ारिज
2020 में सीएए के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन की पृष्ठभूमि में भड़की या भड़काई गयी हिंसा में 53 लोग मारे गये, सैकड़ों घायल हुए, और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई। दिल्ली पुलिस ने इसे एक सुनियोजित साजिश करार दिया और उमर ख़ालिद को इसका मास्टरमाइंड बताया जबकि उमर दिल्ली में मौजूद नहीं थे। इसके साथ ही शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी, और अन्य पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मुकदमा दर्ज किया। पुलिस का दावा है कि इन लोगों ने भड़काऊ भाषण दिये और व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए हिंसा की साजिश रची। पाँच साल से बिना बेल के जेल में रहना सामान्य नहीं था। इसे लेकर सिविल सोसायटी में काफ़ी हलचल देखी जा रही थी।
लेकिन 2 सितंबर 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शलिंदर कौर ने उमर खालिद सहित नौ आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि उनकी भूमिका "पहली नजर में गंभीर" है और साक्ष्य हिंसा की साजिश की ओर इशारा करते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि मुकदमे की प्रक्रिया स्वाभाविक गति से चल रही है, और जल्दबाजी में सुनवाई ‘दोनों पक्षों’ के लिए नुकसानदायक हो सकती है। यानी पाँच साल जेल में रखने के बावजूद अदालत को राहत देना जल्दबाज़ी लग रही है।