क्या करतारपुर साहिब गलियारे पर पैदा हुई गर्माहट सच्ची थी या पाकिस्तान की रणनीति का एक हिस्सा था?
करतारपुर साहिब गलियारे पर काम शुरू होने के मौके पर भारत-पाकिस्तान रिश्तों में जो गर्माहट देखी गई, वह दो दिन भी नहीं टिक पाई। यह साफ़ हो चुका है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए कोई बातचीत फ़िलहाल नहीं होगी।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने करतारपुर साहिब गलियारे पर काम शुरू करने का ऐलान करते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने कहा था कि दिल्ली से रिश्ते सुधारने के मुद्दे पर उनकी सरकार और पाकिस्तानी सेना एक साथ है।
पाक सेना का हृदय परिवर्तन?
ऐसा क्या हो गया कि पाक सेना भारत से बेहतर रिश्ते चाहती है, यह सवाल उठना लाज़िमी है। पाकिस्तान में यह माना जाता है कि नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से बात करना अधिक मुफ़ीद है। इस पार्टी की सरकार अधिक कड़े निर्णय ले सकती है और उसे लागू भी कर सकती है। पाकिस्तान अपनी बात मोदी सरकार से मनवा ले तो यह सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर उसे जनता के गले उतार भी देगी।
वाजपेयी-मुशर्रफ़ बातचीत
कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ भारत की सबसे अहम बातचीत अटल बिहारी वाजपेयी के समय ही हुई थी। माना जाता है कि दोनों देश किसी समझौते के पास पहुँच चुके थे, पर अंत में बात बिगड़ गई। ग़ौर करने लायक बात यह है कि यह सब करगिल हमले के कुछ दिनों बाद ही हुआ था। बातचीत भी किसी और के साथ नहीं, करगिल के ‘विलन’ समझे जाने वाले परवेज़ मुशर्रफ़ के साथ हुई थी।