प्रियंका गाँधी के कांग्रेस महासचिव बनने से पार्टी ही नहीं बाहर के लोगों को भी ताज्जुब नहीं हुआ, क्योंकि यह बिल्कुल ही अनपेक्षित नहीं था। बीच-बीच में भाई राहुल की मदद करती हुई प्रियंका भले ही राजनीति के हाशिए पर खड़ी थीं, पर वह उचित समय पर पार्टी में ऊंचे पद पर आ जाएँगी, यह साफ़ था और बस सही समय का इंतज़ार था। लेकिन इससे कई सवाल भी उठते हैं। आख़िर सवा सौ साल पुरानी पार्टी एक ही परिवार पर निर्भर है, स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाली पार्टी को क्यों एक परिवार से बाहर नेतृत्व देने लायक कोई नेता नहीं मिलता है, यह सवाल लाज़िमी है।