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फ़ोटो साभार: ट्विटर/माइकल इसलरी

असम: बीजेपी-बीपीएफ़ की सियासी जुगलबंदी

असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण के लिए मतदान गुरुवार को सम्पन्न हुआ। इस मौक़े पर 78.8 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया। इससे पहले 7 दिसंबर को बीटीसी चुनाव के पहले चरण में लगभग 77 प्रतिशत मतदान हुआ था।

बीटीसी चुनाव इस साल के शुरू में किए गए बोडो समझौते के आधार पर करवाए गए हैं। इस समझौते को दीर्घकालीन बोडो मसले के ‘अंतिम और व्यापक समाधान’ के रूप में वर्णित किया गया। संविधान की छठी अनुसूची द्वारा संचालित इन स्थानीय परिषद चुनावों के नतीजे अगले साल असम विधानसभा चुनावों में भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। असम में बीजेपी के नेतृत्व में जो गठबंधन सरकार है उसमें शामिल बीपीएफ़ के ख़िलाफ़ बीजेपी ने बीटीसी चुनाव में मुक़ाबला किया है। 

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बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त स्वशासी निकाय है, एक विशेष प्रावधान जो पूर्वोत्तर के कुछ जनजातीय क्षेत्रों में अधिक से अधिक राजनीतिक स्वायत्तता और विकेन्द्रीकृत शासन की अनुमति देता है।

बोडो एक मैदानी जनजात है, जो असम में अनुसूचित जनजाति के दर्जे के साथ सबसे बड़ा समुदाय है, जो राज्य की आबादी का लगभग 5-6% है। वे लंबे समय से एक संप्रभु जातीय मातृभूमि (बाद में, भारत के भीतर एक राज्य) बोडोलैंड के लिए संघर्ष करते रहे हैं। 1980 के दशक के मध्य में, इस माँग ने एक सशस्त्र विद्रोही आंदोलन को जन्म दिया और कई उग्रवादी समूह सामने आए। शांति की बहाली के लिए केंद्र, राज्य और बोडो समूहों के बीच 1993, 2003 और जनवरी 2020 में तीन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिससे उग्रवाद को समाप्त करने और अलग राज्य की माँग को छोड़ने पर सहमति बनी है।

1993 के समझौते के बाद एक बोडो स्वायत्त परिषद का गठन हुआ और 2003 के समझौते के परिणामस्वरूप बीटीसी का गठन हुआ। बीटीसी के अधिकार क्षेत्र के तहत पश्चिमी असम के बोडो बहुल चार ज़िले हैं-उदालगुड़ी, बाक्सा, चिरांग और कोकराझार। इनको बोडो प्रादेशिक स्वायत्त ज़िला (बीटीएडी) के रूप में जाना जाता रहा है, जिसे अब बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) का नाम दिया गया है।

असम सरकार की वेबसाइट के अनुसार, बीटीसी का उद्देश्य ‘आर्थिक, शैक्षिक और भाषाई आकांक्षा को पूरा करना और बोडो के भूमि-अधिकारों, सामाजिक-सांस्कृतिक और जातीय पहचान का संरक्षण’ है। बीटीसी - एक 46 सदस्यीय परिषद - का नेतृत्व मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम) करता है।

2003 के समझौते के बाद, 2005, 2010 और 2015 में तीन बीटीसी चुनाव हुए, सभी में, हाग्रामा मोहिलारी के नेतृत्व वाले बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ़) - जिसे पहले बोडो पीपुल्स प्रोग्रेसिव फ्रंट कहा जाता था- ने जीत हासिल की थी। यह समूह - राज्य और केंद्र में बीजेपी का सहयोगी भी है - इसकी उत्पति बोडो लिबरेशन टाइगर्स से हुई है, जो एक उग्रवादी समूह था, जो हथियार छोड़ने और 2003 के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो गया। मोहिलारी 2005 से सीईएम के पद पर बने रहे हैं और उनकी पार्टी केंद्र और राज्य दोनों सरकार में बीजेपी के साथ साझेदारी कर रही है, जबकि दोनों ने बीटीसी चुनाव एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ा है।

बीजेपी ने न केवल बीटीसी की सभी 40 निर्वाचित सीटों पर चुनाव लड़ा है (इसमें 46 सीटें हैं, अन्य छह नामांकित हैं), बल्कि अपनी सहयोगी बीपीएफ़ के ख़िलाफ़ भी आक्रामक रुख अपनाया है। चुनाव प्रचार में बीजेपी के मंत्री हिमंत विश्व शर्मा और बीपीएफ़ के मोहिलारी एक-दूसरे पर आक्रमण करते रहे।

alliance partner bjp and bpf fighting against each other in assam btc election  - Satya Hindi
रॉयल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, गुवाहाटी के राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर राजन पांडे के अनुसार बीजेपी की बीटीसी में अब तक न्यूनतम उपस्थिति रही है। उसने 2015 में केवल एक सीट जीती थी। बीजेपी अपनी सीटों की संख्या बढ़ा सकती है, लेकिन वह बीपीएफ़ का विकल्प नहीं बन सकती। उन्होंने कहा, ‘फिर भी उसने अपने दम पर लड़ने का फ़ैसला किया है - चूँकि बीजेपी बोडो समझौते को भुनाना चाहती है और गैर-बोडो वोटों को विभाजित करना चाहती है। और बदले में यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) को सत्ता में आने में मदद करना चाहती है।’

यूपीपीएल के साथ प्रभावशाली ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (आब्सू) के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद बोडो हैं, जो कि 2020 के समझौते के प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता थे। पांडे ने कहा, ‘कई लोगों का मानना ​​है कि यूपीपीएल इस चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ा सकती है - क्योंकि इसे आब्सू का समर्थन है, जिसने बोडो समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस समझौते का श्रेय प्रमोद बोडो को देते हुए मतदाता उनका समर्थन कर सकते हैं।’ 

यह बीजेपी के लिए अनुकूल बात हो सकती है, जो तब विधानसभा चुनाव में यूपीपीएल की मदद ले सकती है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीटीसी चुनावों का आमतौर पर विधानसभा चुनावों पर भी असर पड़ता है।
बोडोलैंड यूनिवर्सिटी के डॉ. संगरंग ब्रह्मा ने कहा, ‘बीटीआर क्षेत्र में 12 विधानसभा सीटें हैं। इसलिए जो भी बीटीसी चुनावों में जीतता है, वह संभवतः विधानसभा चुनावों में किंगमेकर हो सकता है। इसके अलावा, बीटीसी राज्य स्तर पर सत्ताधारी पार्टी के साथ अच्छे पदों पर रहना पसंद करता है - यह सुनिश्चित करने के लिए कि परिषद को धन मिलता रहे।’ बीटीआर में बोडो के अलावा कई समुदाय के लोग रहते हैं। उनमें प्रमुख हैं- बंगाली मुसलिम, असमिया, आदिवासी, कोच-राजवंशी, राभा, गारो, नेपाली आदि। जबकि ग़ैर-बोडो और बोडो आबादी के आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, यह अनुमान है कि ग़ौर-बोडो समुदायों की आबादी लगभग 70% है।
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दिनकर कुमार
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