असम के बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) में शनिवार को घोषित बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है। इस चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी को भारी असफलता मिली है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा जिस तरह से इस छोटे से चुनाव में हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव खड़ा कर रहे थे, उसे भारी झटका लगा है। पूर्व विद्रोही नेता हग्रामा मोहिलारी के नेतृत्व वाली बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने 40 सीटों वाली इस काउंसिल में 28 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। वहीं, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) को 7 और सत्तारूढ़ बीजेपी को महज 5 सीटें मिलीं। दोनों इस बार गठबंधन में नहीं थे। यह नतीजा 2020 के चुनावों से बिल्कुल उलट हैं, जब यूपीपीएल-भाजपा गठबंधन ने बीपीएफ को सत्ता से बाहर कर दिया था। चुनाव विश्लेषक इसे 2026 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी बता रहे हैं।

चुनावी तस्वीर: बीपीएफ की शानदार वापसी 

बीटीआर में निकाय चुनाव 9 सितंबर को हुए हुए थे। बीटीआर के पांच जिलों कोकराझार, चिरांग, उदालगुड़ी, बक्सा और तमुलपुर में 78.42 फीसदी मतदाताओं ने हिस्सा लिया। कुल 316 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला त्रिकोणीय था, लेकिन बीपीएफ ने क्षेत्रीय मुद्दों जैसे विकास, बेरोजगारी और सांस्कृतिक पहचान पर जोर देकर जनाधार मजबूत किया। पूर्व सीईएम मोहिलारी ने डेबरगांव सीट से जीत दर्ज की, जबकि वर्तमान सीईएम प्रमोद बोरो यूपीपीएल के टिकट पर गोइमारी से सफल रहे। कांग्रेस जैसे अन्य दलों को एक भी सीट नहीं मिली।

भाजपा के लिए इस नतीजे से क्या संकेत हैं

भाजपा के लिए ये नतीजे चिंताजनक संकेत हैं। 2020 में नौ सीटें जीतने वाली पार्टी इस बार पांच पर सिमट गई, जो उसके बीटीआर में कमजोर होते जनाधार को बताता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने चुनाव प्रचार में भारी जोर लगाया था, लेकिन यूपीपीएल के साथ गठबंधन न होने और क्षेत्रीय असंतोष ने नुकसान पहुंचाया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह हार भाजपा को बीपीएफ के साथ नया गठबंधन करने के लिए मजबूर कर सकती है, क्योंकि बीपीएफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा रह चुकी है। लेकिन जिस तरह आदिवासियों और जनजातीय लोगों के संगठन बीजेपी की नीतियों को अब समझ गए हैं, वे बीपीएफ को रोक सकते हैं।
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बीजेपी की रणनीति पर सवाल, हिमंता के सारे नैरेटिव नाकाम

यह झटका भाजपा की रणनीति पर सवाल उठाता है। बीटीआर में आदिवासी वोटों का विभाजन और विकास योजनाओं (जैसे ओरुनोदोई योजना) का अपेक्षित असर न पड़ना पार्टी के लिए सबक है। विपक्षी नेता सुष्मिता देव ने इसे "राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ जनादेश" करार दिया। दरअसल, बीजेपी और हिमंता बिस्वा सरमा जब से सत्ता में आए हैं, यहां हिन्दू-मुसलमान मुद्दा बनाना चाह रहे हैं। सरमा मुसलमानों के लिए मियां शब्द का इस्तेमाल करते हैं और उनका बांग्लादेश से घुसपैठ करने वाले मुस्लिमों से जोड़ देते हैं। हाल ही में बीजेपी ने एक बहुत साम्प्रदायिक नफरत वाला वीडियो जारी किया था। जिसमें बताया गया था कि अगर असम में बीजेपी नहीं रही तो इस प्रदेश पर मुसलमानों का कब्जा हो जाएगा और हिन्दुओं पर तमाम अत्याचार होंगे। यह वीडियो इस चुनाव के मद्देनज़र भी जारी किया गया था। लेकिन बीजेपी और हिमंता बिस्वा सरमा के सारे नैरेटिव को बोडोलैंड के मतदाताओं ने हरा दिया। इसलिए यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। 

नतीजों का 2026 असम विधानसभा चुनावों पर असर 

बीटीआर चुनाव को 2026 के असम विधानसभा चुनावों का "सेमीफाइनल" माना जा रहा था। नतीजों ने इसकी पुष्टि कर दी है। बीटीआर में भाजपा-यूपीपीएल की हार राज्यस्तर पर एनडीए गठबंधन को कमजोर कर सकती है। बीपीएफ की मजबूत वापसी से आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण बढ़ेगा, जो विपक्ष (कांग्रेस-एआईयूडीएफ) को फायदा पहुंचा सकता है।
अगर भाजपा बीपीएफ के साथ तालमेल बिठाती है, तो 2026 में बीटीआर के वोट एनडीए के पक्ष में जा सकते हैं। अन्यथा, क्षेत्रीय असंतोष राज्यव्यापी मुद्दा बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह चुनाव विकास, शांति और पहचान की राजनीति को परिभाषित करेगा, जो मार्च-अप्रैल 2026 के विधानसभा चुनावों में निर्णायक साबित होगा।

19 विधानसभा सीटें प्रभावित होंगी? 

बीटीआर में हाल के सीमांकन के बाद 19 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से अधिकांश अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं। (2023 के सीमांकन से पहले यह संख्या 16 थी, लेकिन अब 19 हो गई है।) इनमें कोकराझार, उदालगुड़ी, चिरांग, बक्सा और तमुलपुर जिलों की सीटें शामिल हैं, जैसे सिदली, तमुलपुर, धुरी आदि।

आदिवासी बेल्ट पर सीधा असर

बीटीसी परिणाम इन 19 सीटों पर सीधा असर डालेंगे, क्योंकि स्थानीय मुद्दे जैसे भूमि अधिकार, शिक्षा और रोजगार यहां के मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। भाजपा ने 2021 में इनमें से अधिकांश पर कब्जा किया था, लेकिन बीपीएफ की लहर से 2026 में 10-12 सीटें खतरे में पड़ सकती हैं। कुल 126 सीटों वाली असम विधानसभा में ये 19 सीटें एनडीए के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर आदिवासी बेल्ट में।
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बीपीएफ की जीत बीटीआर में शांति और विकास की नई उम्मीद जगाती है, लेकिन भाजपा के लिए यह चेतावनी है कि क्षेत्रीय साझेदारों के बिना चुनावी सफलता मुश्किल है। 2026 के चुनावों से पहले गठबंधन पुनर्गठन और विकास फोकस जरूरी होगा। बीटीआर के लाखों मतदाता अब नजर रखेंगे कि सत्ता परिवर्तन कैसे उनके जीवन को बेहतर बनाता है। फिलहाल बीजेपी और हिमंता के सारे बयानों को इस चुनाव ने हरा दिया है।