असम में सरकारी ज़मीन खाली कराने के नाम पर बेदखली अभियान जारी है। अभी तक सात बड़े अभियान राज्य में चलाए जा चुके हैं। अभी तक करीब 50 हज़ार लोग विस्थापित हो चुके हैं। ये लोग इधर-उधर अस्थायी कैंपों में रह रहे हैं। लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह अभियान अब राजनीतिक अभियान बन गया है। एक समुदाय विशेष को या फिर आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है। हाल ही में जब जमीयत-ए-उलमाए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने असम का दौरा किया तो सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दी। उन्हें बांग्लादेश भेजने की धमकी तक दी गई। 

असम में कहां-कहां बेदखली की गई 

गोलाघाट: बेदखली अभियान के तहत कई घरों को ढहाया गया। गोरिया जातीय परिषद के अनुसार, गोलाघाट में 84 घर तोड़े गए। लखीमपुर: इस जिले में 16 घर तोड़े गए। 
विश्वनाथ: जापारीगुड़ी में विलेज ग्राजिंग रिजर्व की 175 बीघा (लगभग 23 हेक्टेयर) जमीन से 309 परिवारों को हटाया गया। 
ग्वालपाड़ा: 667 परिवारों के अतिक्रमण हटाए गए, जिनमें अधिकतर बांग्ला भाषी मुस्लिम समुदाय के थे। 
धुबरी, नलबाड़ी, और अन्य जिले: पिछले एक महीने में इन जिलों में 3,000 से अधिक परिवार विस्थापित हुए। बरपेटा: 28 व्यक्तियों को उनके घरों से हटाया गया और मटिया ट्रांजिट कैंप भेजा गया।
बरपेटा: 28 व्यक्तियों को उनके घरों से हटाया गया और मटिया ट्रांजिट कैंप भेजा गया।
असम सरकार ने दावा किया कि 1,29,548 एकड़ (लगभग 52,428 हेक्टेयर) जमीन अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराई गई। इसके अतिरिक्त, 1,19,548 बीघा (लगभग 15,873 हेक्टेयर) जमीन खाली कराने की बात कही गई।
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सरकार का दावा है कि यह अभियान अवैध अतिक्रमण, विशेष रूप से बांग्लादेशी घुसपैठियों, को हटाने के लिए है, लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता और विपक्षी नेता इसे अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर बांग्ला भाषी मुस्लिमों, को निशाना बनाने का आरोप लगाते हैं। गडरिया समुदाय ने दावा किया कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने स्वदेशी मुस्लिमों (आदिवासी) के घर न तोड़ने का वादा किया था, लेकिन नोटिस और तोड़फोड़ ने समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा की।

असम का बेदखली अभियान विवादित क्यों 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी बेदखली या विध्वंस अभियान से पहले प्रभावित लोगों को उचित नोटिस और पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। हालाँकि, असम में कई मामलों में इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया, जिससे अभियान गैरकानूनी करार दिए गए हैं। 
साम्प्रदायिक रंग: कई आलोचकों का मानना है कि ये अभियान विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहे हैं। मदरसों और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चलाए गए अभियानों ने इस धारणा को और मजबूत किया है। यह आरोप लगाया गया है कि ये कार्यवाही संवैधानिक अधिकारों और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं। 
मानवाधिकार उल्लंघन: बेदखली अभियानों के दौरान कई परिवारों को अपने घरों और आजीविका से वंचित किया गया है, जिससे मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है। इन कार्यवाहियों को अमानवीय और बर्बर बताया गया है। 
सरमा की राजनीति: कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि ये अभियान राजनीतिक लाभ के लिए चलाए जा रहे हैं, विशेषकर चुनावी वर्ष में। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की टिप्पणियाँ और बयानबाजी ने इस धारणा को और मजबूत किया है।

बेदखली अभियान के विरोध में कौन-कौन है  

विपक्षी दल: कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF), और अन्य विपक्षी दल इन अभियानों का कड़ा विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद राकिबुल हुसैन ने इन कार्यवाहियों को असंवैधानिक करार दिया है, जबकि AIUDF के नेता बदरुद्दीन अजमल ने इन्हें "एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने" वाला बताया है।  
मानवाधिकार संगठन: एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इन अभियानों को असंवैधानिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन करार दिया है। उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में इन कार्यवाहियों की आलोचना की।  
सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी: कई सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी भी इन अभियानों का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि उनका तर्क है कि ये कार्य विभाजनकारी हैं और असम के सामाजिक ताने-बाने के लिए हानिकारक हैं।

बेदखली अभियानः मौलाना मदनी बनाम हिमंता बिस्वा सरमा

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने मौलाना मदनी के हालिया बयानों और उनकी गतिविधियों पर निशाना साधा है। असम में मुसलमानों के खिलाफ चलाए जा रहे विध्वंस अभियान को लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इस अभियान को "न केवल अमानवीय बल्कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के भी उल्लंघन" के रूप में बताया है। 
मदनी ने हाल ही में असम के उन स्थानों का दौरा किया, जहां हाल में बेदखली अभियान चलाए गए थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, सरमा ने मीडिया से बातचीत में मदनी की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया और दावा किया कि मदनी को केवल कांग्रेस शासन के दौरान ही महत्व मिलता रहा है। उन्होंने कहा, "मदनी कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? मदनी का साहस केवल कांग्रेस के समय दिखता है, बीजेपी के साथ नहीं। अगर वे अपनी सीमा पार करेंगे, तो मैं उन्हें जेल में डाल दूंगा। मैं मुख्यमंत्री हूं, मदनी नहीं। मैं मदनी से नहीं डरता।" सरमा ने यह भी चेतावनी दी कि अगर मदनी "अपनी सीमा पार करते हैं," तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।
असम में चलाए जा रहे बेदखली अभियान को लेकर मदनी का तर्क है कि यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करता है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी बेदखली या विध्वंस अभियान से पहले प्रभावित लोगों को उचित नोटिस और पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए। हाल के दिनों में, असम सरकार द्वारा चलाए गए अभियान में इन निर्देशों का पालन नहीं करने के आरोप लगाए गए हैं। विशेष रूप से, 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि बिना उचित प्रक्रिया और पुनर्वास के किसी भी बेदखली को गैरकानूनी माना जाएगा।
मदनी ने सरमा के बयानों पर तीखा प्रहार किया है। एक पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल पर, जहां असम के मुख्यमंत्री ने उन्हें बांग्लादेश भेजने की "धमकी" दी थी, मदनी ने जवाब दिया, "हिमंता को मदनी का जवाब, मुझे बांग्लादेश भेजो!" उन्होंने कहा, "अगर इस तरह की बेतुकी बातें करने वालों में रत्ती भर भी गैरत होगी, तो आगे किसी मुसलमान को ऐसी बेहूदा धमकी नहीं दी जाएगी। वो मेरे बाप-दादा का भारत की आजादी की लड़ाई में इतिहास पढ़ें और अपना इतिहास भी पढ़ें।"
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बहरहाल, इस टकराव ने असम में चल रहे बेदखली अभियान और राजनीतिक बयानबाजी के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। मदनी का दावा है कि ये अभियान न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि कानूनी प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं कर रहे हैं। जबकि सरमा का रुख सख्त और चुनौतीपूर्ण रहा है। यह विवाद असम में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को और गहरा करने वाला साबित हो सकता है।