बिहार चुनाव नतीजों पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि "आंकड़े पचा नहीं पा रहे, भाजपा से सीखेंगे।" उन्होंने भारत के चुनाव आयोग (ECI) पर गंभीर आरोप लगाए।
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख और लोकसभा सांसद अखिलेश यादव ने हाल ही में आए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों पर अपनी असहमति व्यक्त की है। रविवार को बेंगलुरु में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, यादव ने कहा कि वह इन परिणामों को 'पचा नहीं पा रहे हैं'।
एनडीए (NDA) को मिली सीटों की 'दोहरी सेंचुरी' पर सवाल उठाते हुए अखिलेश यादव ने कहा, "मैं यह परिणाम (सीटों की डबल सेंचुरी) पचा नहीं पा रहा हूँ। हम इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में सीटें कैसे जीती जा सकती हैं? स्ट्राइक रेट इतना अधिक कैसे हो सकता है?"
सपा नेता ने अन्य राजनीतिक दलों को बीजेपी से सीखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियों को बीजेपी से यह सीखना चाहिए कि एक विशिष्ट संख्या में सीटों पर चुनाव कैसे लड़ा जाता है। उन्होंने आगे कहा, "हम बीजेपी से जो सीखेंगे, उसे हम पलटकर लागू करेंगे।"
चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप
चुनाव आयोग (ECI) की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए यादव ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की बात कही। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी आधे घंटे में आधार कार्ड और वोटर आईडी बना लेती है। इसे 'वोट चोरी' बताते हुए उन्होंने कहा, "यह आरोप नहीं है, यह सच है।" उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग पूरी तरह बीजेपी के लिए काम कर रहा है।डुप्लीकेशन (दोहराव) को रोकने के लिए, अखिलेश यादव ने सुझाव दिया कि फर्जी कार्डों को बनने से रोकने के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को मेटल वोटर आईडी कार्ड जारी करने चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों के दौरान पुलिस ने हजारों मतदाताओं को वोट डालने नहीं दिया।
चुनाव आयोग के स्वतंत्र कामकाज पर सवाल उठे
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के परिणाम न केवल राजनीतिक उलटफेर के लिए याद किए जाएंगे, बल्कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की निष्पक्षता पर विपक्ष द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों के कारण भी ये चर्चा में हैं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने मतगणना प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाया, जिसके चलते संवैधानिक संस्था के रूप में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े हो गए। विपक्ष का दावा था कि कई सीटों पर जानबूझकर उनके उम्मीदवारों को हराया गया, जहां जीत-हार का अंतर बहुत कम था। इन आरोपों में मतगणना अधिकारियों पर दबाव डालने और यहां तक कि कुछ विशेष सरकारी तंत्र के दुरुपयोग की बातें भी शामिल है, जिसने चुनाव आयोग के स्वतंत्र कामकाज पर संदेह पैदा कर दिया।मतगणना में धांधली के आरोपों का मुख्य आधार उन दर्जनों सीटों पर केंद्रित था जहाँ अंतिम परिणाम 100 से लेकर 1000 वोटों के अत्यंत संकीर्ण अंतर से तय हुए। विपक्ष ने आरोप लगाया कि कई आरजेडी उम्मीदवारों को शुरुआती बढ़त के बावजूद, देर रात नतीजों की घोषणा के समय हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके एजेंटों को मतगणना केंद्रों से जबरन बाहर निकाला गया और पोस्टल बैलेट (डाक मतपत्र) की गिनती में अनियमितताएं बरती गईं, जहाँ बड़ी संख्या में पोस्टल बैलेट को अवैध घोषित कर दिया गया। विपक्ष का स्पष्ट कहना था कि चुनाव आयोग ने निष्पक्षता से काम नहीं किया, बल्कि केंद्र और सत्ताधारी पार्टी के प्रभाव में आकर निर्णय लिए, जिससे जनादेश को बदलने का प्रयास किया गया।
चुनाव आयोग पर लगे ये गंभीर आरोप केवल प्रक्रियागत विसंगतियों तक सीमित नहीं थे, बल्कि इन्होंने देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को झकझोरने का काम किया। इन विवादों ने एक बार फिर चुनाव सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया है, विशेषकर मतगणना प्रक्रिया की पारदर्शिता और चुनाव अधिकारियों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के संदर्भ में। भारत के चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो गई है। ऐसे आरोपों से निपटने और अपनी निष्पक्षता को पुनः स्थापित करने के लिए उसे अधिकतम पारदर्शिता और जवाबदेही से काम करना पड़ेगा।