मोतिहारी में मोदी की रैली के दौरान लोगों ने फीकी चाय पिलाकर पुराने वादे की याद दिलाई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 जुलाई 25 को बिहार के मोतिहारी में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तब सभा स्थल के बाहर कुछ लोग एक टी स्टॉल बनाकर मोदी से मोतिहारी चीनी मिल में बनी चीनी की चाय पर व्यंग कर रहे थे। मोदी ने 2014-15 में आयोजित सभा में कहा था कि “अगली बार जब आऊंगा तो मोतिहारी चीनी मिल की चिमनी से धुंआ उठता दिखायी देगा। मैं इसी चीनी मिल में बनी चीनी की चाय पीकर वापस जाऊंगा।” इस चीनी मिल की चिमनी से अबतक न तो धुंआ उठा न चीनी मिल शुरू हो पायी। इस तरह की घोषणाओं पर विपक्ष अब मोदी और राज्य की नीतीश कुमार सरकार  पर हमला कर रहा है।
बिहार में विधान सभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है, राजनीतिक हलकों में शिक्षा, रोजगार, अस्पताल और औद्योगीकरण जैसे मुद्दों पर बहस गर्म होती जा रही है। यह पहला मौक़ा है जब बिहार के किसी चुनाव में सत्ताधारी और विपक्षी दोनों इन मुद्दों को केंद्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ़ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नयी नयी घोषणाओं के जरिये यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सरकार के लिए रोज़गार हमेशा ही से प्रमुख मुद्दा रहा है तो दूसरी तरफ़ विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सरकार को दोनों मोर्चों पर फेल बता रहे हैं। इस बार के चुनाव में तीसरी शक्ति के रूप में उभरने की कोशिश में लगे प्रशांत किशोर का चुनाव अभियान तो इन्हीं मुद्दों पर टिका ही है। 

लालू - नीतीश का जाति समीकरण 

बिहार को अबतक जाति आधारित राजनीति के लिए जाना जाता है। नब्बे के दशक में पिछड़ी और दलित जातियों को संगठित करके लालू यादव ने कांग्रेस की सत्ता को उखाड़ फेंका। इस अभियान में नीतीश कुमार और राम बिलास पासवान जैसे नेता भी उनके साथ थे।सन दो हज़ार के आते आते राजनीति की यह तिकड़ी टूट गयी। नीतीश ने अति पिछड़ों और अति दलितों का एक नया समीकरण बनाया और 2005 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इस तरह आसीन हुए कि अब तक अजेय बने हुए हैं। 2005 तक लालू यादव का चारा घोटाला, भ्रष्टाचार और अपराध का जंगल राज मुख्य मुद्दा बन चुका था। यह मुद्दा अब भी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन 2005 की तरह का धार नहीं है। 
ताज़ा ख़बरें
1990 के बाद पिछड़े और दलित तथा बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराये जाने के बाद मुसलमान कांग्रेस से अलग छिटक गए। सन दो हज़ार के आस पास पिछड़ों में भी विभाजन हुआ। अति पिछड़े और अति दलित, नीतीश के खेमे में चले गए। लालू के साथ बचे रहे मुसलमान और यादव, जिसे एम वाई कांबिनेशन कहा गया। बाद में चल कर सवर्ण बी जे पी के साथ ही लिए। इसलिए नीतीश जब बी जे पी साथ आए तो जीत का एक नया समीकरण बन गया। 
करीब 35 सालों से जाति में बंटे मतदाता क्या अब शिक्षा, रोजगार औद्योगीकरण और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर वोट करेंगे। इसका जवाब प्रशांत किशोर देते हैं “ 2014 के बाद से बिहार के मतदाता प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट दे रहे हैं, उनकी (मोदी ) जाति के कितने लोग बिहार में हैं। बहुत कम।इसका मतलब हुआ कि बिहार के लोग जाति के नाम पर वोट नहीं दे रहे हैं।”

रोजगार पर दांव 

आर जे डी नेता तेजस्वी यादव और जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर का दबाव सत्तारूढ़ एन डी ए गठबंधन पर दिखायी देने लगा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में “ बिहार युवा आयोग” बनाने की घोषणा की। यह आयोग नौकरी में स्थानीय लोगो को प्राथमिकता देने और राज्य में रोजगार बढ़ाने का उपाय सुझाएगा। इस तरह का आयोग बनाने की घोषणा सबसे पहले तेजस्वी यादव ने की थी। जुलाई में ही मुख्यमंत्री ने एक लाख इंटर्न भर्ती करने और उन्हें 4 से 6 हजार रुपए महीना देने की घोषणा कर दी। 
इस साल अगस्त तक 12 लाख युवकों को नौकरी और 38 लाख को अन्य रोजगार देने का लक्ष्य प्राप्त कर लेने का एलान भी कर दिया। स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथमिकता देने की घोषणा भी हाल में ही की गयी। नई औद्योगिक नीति के तहत 3 हजार 8 सौ करोड़ रुपए के उद्योगों को शुरू करने की कोशिश की जा रही है जिसमे से 3 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं सरकार की स्वीकृति के विभिन्न स्तरों पर हैं। सरकार की घोषणाओं की सूची लंबी है। अब तेजस्वी यादव का आरोप है कि नीतीश सरकार उनकी योजनाओं का नकल कर रही है। तेजस्वी के पिटारे में अभी बहुत कुछ है। वो 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने, राज्य में रोजगार बढ़ाकर पलायन रोकने की बात भी कर रहे हैं। 
बिहार से और खबरें
प्रशांत किशोर का पूरा अभियान ही राज्य के भीतर अच्छे स्कूल, कालेज और विश्व विद्यालय स्थापित करने पर केंद्रित हैं ताकि बिहार के छात्रों को पढ़ने के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़े। उनका दूसरा बड़ा मुद्दा रोजगार और तीसरा स्वास्थ्य सुविधाएं है। नीतीश कुमार और तेजस्वी दोनों ही अब जंगल राज और भ्रष्टाचार को ज़्यादा तूल नहीं देना चाहते। बिहार में अपराध फिर बढ़ने लगे हैं। नीतीश के पास उसका जवाब नहीं है। तेजस्वी भी अपने पिता के मुख्यमंत्री काल की छाया से दूर रहने की कोशिश में लगे हैं।