बिहार में चुनावों की घोषणा हो गई है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सत्ता संघर्ष जारी है। क्या प्रशांत किशोर की एंट्री ने समीकरण बदल दिए हैं? क्या वे चुनावी खेल बिगाड़ देंगे?
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चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज हो गई हैं। 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान दो चरणों में होगा। 6 नवंबर और 11 नवंबर को। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन यानी इंडिया गठबंधन के बीच सीधी टक्कर के रूप में उभर रहा है। लेकिन अब रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार की सियासत में एक नया मोड़ ला रही है।
तो क्या एनडीए और बीजेपी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव और भी मुश्किल होने वाला है? क्या नीतीश कुमार, पीएम मोदी के नेतृत्व और चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी जैसे नेताओं के भरोसे एनडीए इंडिया गठबंधन को शिकस्त दे पाएगा? या फिर दो दशक से ज़्यादा की सत्ता विरोधी लहर इंडिया गठबंधन को फायदा दे जाएगी? या फिर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के तीसरा विकल्प बनने से त्रिशंकु विधानसभा के आसार बनेंगे और इसमें क्या प्रशांत किशोर किंगमेकर बनेंगे। पढ़िए, बिहार में राजनीतिक हालात कैसे हैं।
नीतीश पर सवाल
जेडीयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नौवीं बार सत्ता में हैं और एनडीए के चेहरे बने हुए हैं। उन्होंने बीजेपी और विपक्ष के बीच कई बार गठबंधन बदला है, लेकिन उनकी साफ-सुथरी शासन शैली और उनका जातिगत समीकरण एनडीए की चुनावी रणनीति का आधार बने हुए हैं। हालांकि, हाल की उनके स्वास्थ्य संबंधी अटकलों ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। विपक्षी नेता खुलेआम उनके स्वास्थ्य पर चिंता जता रहे हैं और कह रहे हैं कि इससे सरकार की कार्यप्रणाली पर 'चिंताजनक प्रभाव' पड़ रहा है।
बीजेपी के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण संतुलित करने में अहम हैं।
आरजेडी की चुनौती
पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव युवाओं और आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक में मजबूत पकड़ रखते हैं। तेजस्वी की लोकप्रियता ओबीसी-ईबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मजबूत हुई है, जहां वे आरजेडी को मजबूत कर रहे हैं। उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव हाल ही में आरजेडी से निष्कासित हो चुके हैं और उन्होंने 'जन शक्ति जनता दल' नामक नई पार्टी गठित की है, जिसका चुनाव चिन्ह 'ब्लैकबोर्ड' है। तेज प्रताप ने दावा किया कि पांच छोटी पार्टियों का समर्थन है, लेकिन निर्वाचन आयोग के स्रोतों के अनुसार, यह पार्टी अभी पंजीकृत नहीं हुई है और न ही कोई चिन्ह आवंटित हुआ है। हालाँकि, तेज प्रताप का असर सीमित रहने के आसार हैं।
पूर्व जेएनयू छात्र नेता और कांग्रेस के कन्हैया कुमार इंडिया गठबंधन के मुखर प्रचारकों में से एक हैं। वे बीजेपी और निर्वाचन आयोग पर 'लोकतंत्र को कमजोर करने' का आरोप लगा रहे हैं।
चिराग पासवान क्या करेंगे?
लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने सीट बँटवारे पर तनाव की अटकलों को खारिज करते हुए कहा है कि एनडीए 243 में से 225 सीटें जीतेगा। 2020 में उनकी पार्टी ने स्वतंत्र रूप से 137 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जहां सिर्फ एक सीट मिली, लेकिन इससे जेडीयू को भारी नुकसान हुआ था। इस बार चिराग पूरी तरह एनडीए में हैं, साथ में जेडीयू और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी। चिराग ने कहा, 'नीतीश कुमार एनडीए का मजबूत कड़ी हैं, कोई कमजोरी नहीं।'
उपेंद्र कुशवाहा नाराज क्यों?
राष्ट्रीय लोक मोर्चा यानी आरएलएम के प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के फ़ैसले से नाराज़ हैं, जिसमें भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह को पार्टी में वापस लिया गया। लोकसभा चुनावों में पवन सिंह ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में काराकाट से कुशवाहा को हराया था, जिससे एनडीए को शाहाबाद क्षेत्र में सात सीटें गंवानी पड़ीं। राजपूत वोटों को एकजुट करने के लिए बीजेपी ने पवन सिंह को अमित शाह और जेपी नड्डा से मिलवाया। कुशवाहा को राज्यसभा में जगह मिली है, लेकिन विधान परिषद में देरी से वे असंतुष्ट हैं।
बीजेपी की राजपूत वोटों पर नज़र
भोजपुरी स्टार पवन सिंह की बीजेपी में वापसी को राजपूत वोटों को मजबूत करने की रणनीति माना जा रहा है। वे आरा से टिकट की दौड़ में हैं, जहां वर्तमान विधायक अमरेंद्र प्रताप सिंह बुजुर्ग हो चुके हैं। पवन सिंह को स्टार प्रचारक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाएगा।
ओवैसी खेल बिगाड़ेंगे?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि अगर इंडिया गठबंधन छह सीटें देता है तो उनकी पार्टी शामिल हो जाएगी। 2020 में एआईएमआईएम ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सीमांचल में पांच जीतीं, लेकिन चार विधायक बाद में आरजेडी में चले गए। ओवैसी ने तेजस्वी यादव को पत्र लिखा है, लेकिन अभी फैसला गठबंधन पर निर्भर है।
प्रशांत किशोर: रणनीतिकार से दावेदार
पूर्व रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी सभी 243 सीटों पर लड़ेगी। वे 9 अक्टूबर को उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करेंगे, जिसमें महिलाओं, मुसलमानों और ईबीसी को प्रतिनिधित्व का वादा है। किशोर खुद राघोपुर (तेजस्वी की सीट) या करगहर से लड़ सकते हैं। जन सुराज ने 2024 के उपचुनावों में डेब्यू किया था। कहा जा रहा है कि उनकी उपस्थिति ठीक-ठाक हो गई है और काफ़ी सीटों पर असर डाल सकते हैं। चुनावी रणनीतिकार कुछ सीटें जीतने की भी भविष्यवाणी कर रहे हैं। लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वह एनडीए या महागठबंधन किसके वोट बैंक में सेंध लगाते हैं। यह भी अटकलें हैं कि यदि त्रिशंकु विधानसभा होती है तो उनका झुकाव एनडीए की तरफ़ रह सकता है।
जीतन राम मांझी का क्या होगा?
केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतन राम मांझी एनडीए में 15-20 सीटें मांग रहे हैं और राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा चाहते हैं। उनके पास चार विधायक हैं, लेकिन 80 वर्षीय मांझी का प्रभाव बरकरार है— उनका बेटा राज्य मंत्री है। मांझी ने कहा, सब ठीक है, लेकिन यह 'जीने या मरने' की स्थिति है।
वर्तमान 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए के पास 131 सीटें हैं। इसमें से बीजेपी के 80, जेडीयू के 45, हम(एस) के 4 और दो निर्दलीयों का समर्थन है। दूसरी ओर, विपक्षी इंडिया गठबंधन के पास 111 सीटें हैं, जिसमें आरजेडी के 77, कांग्रेस के 19, सीपीआई(एमएल) के 11, तथा सीपीआई(एम) और सीपीआई के दो-दो विधायक शामिल हैं। 2020 के चुनावों में एनडीए ने बहुमत हासिल किया था, लेकिन इस बार जातिगत समीकरण, विकास के मुद्दे और नेताओं की सेहत जैसे फ़ैक्टर चुनाव को रोचक बना रहे हैं।
यह चुनाव बिहार के भविष्य का फैसला करेगा, जहां जाति, विकास और नेतृत्व की लड़ाई प्रमुख होगी। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही तैयारियों में जुटे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर का उदय त्रिकोणीय संघर्ष को और संघर्षपूर्ण बना रहा है।