Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में ‘सब कुछ गुजरात को, बिहार को कुछ नहीं’ का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। विपक्ष और आम लोग सोशल मीडिया पर गुजरात में बड़ी फैक्ट्रियों और परियोजनाओं के मुकाबले बिहार को सिर्फ घोषणाएं मिलने की बात उठा रहे हैं।
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बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्ष के पास जो मुद्दे हैं उनमें ‘सब कुछ गुजरात को, बिहार को कुछ नहीं’ एक ऐसा मुद्दा है जिसकी चर्चा तो कम हो रही है लेकिन यह लोगों के दिमाग पर बहुत असर डाल सकती है। दरअसल पिछले दो-तीन दिनों से #BiharKoKyaMila के माध्यम से सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर यह सवाल गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे यह लगता है कि बिहार के एक बड़े तबके में इस बात को लेकर गहरा असंतोष है कि विकास का काम गुजरात में किया जा रहा है और बिहार को सिर्फ लॉलीपॉप थमाया जा रहा है।
एक सितंबर को पटना में संपन्न हुई वोटर अधिकार यात्रा के समापन समारोह में बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने दूसरे अहम मुद्दों के अलावा यह बात भी उठाई कि ‘गुजरात में फैक्ट्री और बिहार में विक्ट्री’ नहीं चलेगा। मोटे तौर पर उनके कहने का मतलब यह है कि गुजरात में तो बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगाई जा रही हैं और प्रोजेक्ट्स जा रहे हैं लेकिन बिहार में जीतने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के लिए ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं।
तेजस्वी यादव के अलावा जन सुराज के प्रशांत किशोर लगातार गुजरात के मुद्दे को आम लोगों के बीच उठा रहे हैं। तेजस्वी ने बिहार में केवल घोषणाएं और गुजरात में फैक्ट्रियां और विकास परियोजनाएं लगाए जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते हुए कहा कि यह ठगी है। तेजस्वी ने इसे बिहार के साथ भेदभाव बताया और एक तरह से बिहारी स्वाभिमान जगाने की कोशिश की।
इस बारे में प्रशांत किशोर भी लगातार अपनी आवाज उठाते रहे हैं। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की संपत्ति गुजरात की तरफ मोड़ दी है जबकि बिहार को नजरअंदाज किया जा रहा है। अपनी बिहार बदलाव यात्रा के दौरान प्रशांत किशोर ने कहा कि गुजरात को बुलेट ट्रेन दी जा रही है लेकिन बिहार को केवल एक दो नई ट्रेन देखकर बहलाया जा रहा है। वह यह भी कहते हैं कि गुजरात को गिफ्ट सिटी और सोलर पार्क और बुलेट ट्रेन मिली जबकि बिहार को श्रमिक ट्रेनें, जिससे बिहार एक मजदूर फैक्ट्री बना हुआ है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि बिहार से वोट लो लेकिन फैक्ट्रियां गुजरात में लगाओ। प्रशांत किशोर कहते हैं कि मोदी बिहार के लोगों का वोट और देशभर का पैसा लेकर गुजरात में फैक्ट्री लगवा रहे हैं और “आपके बच्चे गुजरात जाकर उन्हें फैक्ट्री में 10-12 हजार के लिए मजदूरी कर रहे हैं।”
इन दोनों नेताओं की बात पर बिहार के आम लोग क्या सोचते हैं इसका पता सोशल मीडिया ट्रेंड्स से भी चलता है। #BiharKoKyaMila, इस ट्रेंडिंग में बहुत से लोगों ने यह सवाल पूछा है कि आखिर बिहार को सेमीकंडक्टर कारखाना क्यों नहीं मिला। कई लोग यह पूछ रहे कि दस वर्षों में गुजरात का कायाकल्प करने का दावा करने वाली सरकार बिहार को 20 वर्षों के बाद भी लेबर फैक्ट्री क्यों बनाये हुए है। एक यूज़र ने राजकोट के 150 करोड़ से बने बस अड्डे की तस्वीर साझा करते हुए पूछा है कि बिहार के ‘बीजपी के निकम्मों‘ को बिहार के लिए कुछ नहीं दिखता है क्या? इसी तरह सात पीएम मित्र पार्कों में से एक भी बिहार को नहीं मिलने की बात भी बहस का मुद्दा है।
‘पूर्णिया इंडेक्स’ ने इस हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए लिखा है कि हम अच्छे ट्रांसपोर्ट नेटवर्क में पीछे हैं। एक यूज़र ने एक ग्राफिक साझा किया है जिसमे टॉप 200 यूनिवर्सिटीज में बिहार में एक भी न होने की बात की गयी है। ‘जागरूक बिहारी’ ने क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो मैप शेयर करते हुए लिखा है कि बैंकों में बिहार में अगर एक आदमी 100 रुपये जमा करता है तो बैंक कर्ज के तौर पर केवल 53 रुपये देते हैं।
एक और यूज़र ने लिखा है कि एम्स राजकोट और एम्स दरभंगा बनाने का ऐलान एक ही समय पर हुआ। आज एम्स राजकोट बनकर तैयार है तो एम्स दरभंगा के निर्माण में एक ईंट भी नहीं जोड़ी गयी है। पूर्णिया टाइम्स ने लिखा कि खेलो इंडिया के तहत 7 करोड़ आबादी वाले गुजरात को 426 करोड़ मिले जबकि 14 करोड़ आबादी वाले बिहार को केवल 20 करोड़ मिले।
इसी हैशटैग के तहत एक यूज़र ने बिहार के मधेपुरा में रेलवे की स्लीपर फैक्ट्री के खंडहर होने का मुद्दा उठाया है जो करोड़ों की लागत से बनायी गयी थी। ‘बिहार से है‘ ने लिखा कि दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम गुजरात में है लेकिन हमारे पास एक भी ऐसा स्टेडियम नहीं जहां हम आसानी से बैठकर मैच देख सकें। कुछ लोगों ने यह भी पूछा कि बिहार में आईटी हब बनाने के भाजपा और जदूय के वादों का क्या हुआ। एक यूज़र ने लिखा कि 11 साल से कोसी पर डैम बनाने का काम नहीं हुआ। इस पोस्ट में गुजरात और बिहार का एरियल व्यू दिखाया गया है जिसमें बिहार बाढ़ से डूबा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘सब कुछ गुजरात को, बिहार को कुछ नहीं’ बिहार चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है लेकिन इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि विपक्षी दल इसे आम लोगों के बीच उठाने में कितने कामयाब होते हैं। उनका मानना है कि तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर अगर इसे बिहार गौरव से जोड़कर लोगों को समझा पाए तो यह बड़ा मुद्दा बन सकता है। यह सवाल दरअसल बिहार में विकास के दावों को खोखला साबित करने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।