बिहार के चुनावी इतिहास में कम से कम तीन बार 5-10% मतदान बढ़ने पर सत्ता परिवर्तन हुआ है। क्या इस बार भी बढ़ी वोटिंग एनडीए के लिए खतरे की घंटी है?
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भले ही अधिकतर एग्ज़िट पोल एनडीए की बड़ी जीत के आसार बता रहे हों, लेकिन रिकॉर्ड स्तर पर वोटिंग एनडीए के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती है! बिहार में जब भी मतदान प्रतिशत 5-10 फीसदी तक बढ़ा है तब तब सरकार बदली है। ऐसा बिहार के इतिहास में कम से कम तीन बार हो चुका है। कई बार तो 1-2 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद भी सरकार बदल गई है।
बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम शुक्रवार को घोषित होने वाले हैं, लेकिन मतदान में अभूतपूर्व बढ़ोतरी ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। राज्य में दो चरणों में हुए मतदान में कुल 66.91 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो राज्य के इतिहास में सबसे ज़्यादा मतदान प्रतिशत है। यह 2020 के 57.29 प्रतिशत मतदान की तुलना में 9.62 प्रतिशत अंकों की भारी बढ़ोतरी है। सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों के शीर्ष नेतृत्व इस बढ़े हुए मतदान को अपने पक्ष में बता रहे हैं, लेकिन ऐतिहासिक पैटर्न एनडीए के लिए चेतावनी देने वाले संकेत देते हैं।
बिहार में तीन बार तो मतदान प्रतिशत में पाँच प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ोतरी हुई और तीनों बार सरकारें बदल गईं। 1967 के चुनावों में मतदान प्रतिशत 1962 के 44.5% से बढ़कर 51.5% हो गया था। यानी 7 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी हुई थी और कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। उस वर्ष गैर-कांग्रेसी दलों ने गठबंधन सरकार बनाई। 1980 के चुनावों में मतदान प्रतिशत 57.3% रहा, जबकि 1977 में यह 50.5% था। लगभग 6.8% अंकों की इस बढ़ोतरी ने सत्ता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया।
ऐसी ही स्थिति 1990 में तीसरी बार बनी। 1985 में मतदान प्रतिशत 56.3% था, जो बढ़कर 62% हो गया। यानी 5.7 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई। कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और उसकी जगह जनता दल ने ले ली।
बिहार के पिछले 17 विधानसभा चुनावों के आँकड़े बताते हैं कि मतदान में वृद्धि होने पर पांच बार सरकार बदली गई। हालाँकि, कई बार मतदान में गिरावट के बाद भी सरकार बदली है।
1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस के दो लगातार कार्यकाल खत्म किए, लेकिन मतदान में 2.28 प्रतिशत अंकों की गिरावट आई और यह 50.51 प्रतिशत रहा।
आम तौर पर माना जाता है कि जहाँ चुनाव द्विध्रुवीय होते हैं, वहाँ मतदान बढ़ना सत्ता परिवर्तन का संकेत माना जाता है, हालाँकि छोटी पार्टियाँ वोट काटकर अनिश्चितता पैदा कर सकती हैं। लेकिन कई बार मामूली मतदान प्रतिशत बढ़ने पर सत्ता नहीं बदली। अक्टूबर 2005 के बाद से हर चुनाव में मतदान लगातार बढ़ा। 2010 में 52.73 प्रतिशत, 2015 में 56.91 प्रतिशत और 2020 में 57.29 प्रतिशत। 2015 में जदयू ने भाजपा से अलग होकर आरजेडी-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और नीतीश मुख्यमंत्री बने रहे। नीतीश युग में मतदान वृद्धि के बावजूद सरकार नहीं बदली, लेकिन इस बार की 9.62 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी रिकॉर्ड तोड़ है और सरकार परिवर्तन की आशंका पैदा कर रही है।
एनडीए और महागठबंधन दोनों मतदान वृद्धि को अपने पक्ष में बता रहे हैं। एनडीए का कहना है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उत्साह उनके विकास कार्यों का प्रमाण है, जबकि महागठबंधन इसे असंतोष की लहर मान रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, छोटी पार्टियां वोट काट सकती हैं, लेकिन इतनी बड़ी वृद्धि निर्णायक होगी। नीतीश कुमार के 20 साल के कार्यकाल में पहली बार इतनी मतदान वृद्धि सरकार बदलने का संकेत दे रही है। परिणाम शुक्रवार को आएंगे, लेकिन मतदान के आंकड़े बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिखने की ओर इशारा कर रहे हैं।