बिहार चुनाव में नीतीश कुमार लगातार चुनाव क्यों जीतते आ रहे हैं? इस बार सीएम बनने के बाद वे राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता बन जाएंगे।
बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं! इससे वे राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता बन जाएँगे। नीतीश-बीजेपी गठबंधन की यह निर्णायक जीत बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिख रही है। 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए ने भारी बहुमत पाकर सत्ता बरकरार रखी है और जेडीयू-बीजेपी की जोड़ी ने विपक्ष को पूरी तरह पीछे छोड़ दिया है।
एनडीए की इस सुनामी जैसी सफलता के केंद्र में बिहार के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का योगदान सर्वोपरि रहा। उम्र और स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतों की आ रही ख़बरों के बावजूद नीतीश कुमार ने 'फीनिक्स' की तरह वापसी की और एनडीए को महागठबंधन के खिलाफ निर्णायक बढ़त दिलाई। माना जा रहा है कि उनकी नेतृत्व क्षमता, महिला-केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं और जातिगत समीकरणों को संतुलित करने की रणनीति ने एनडीए को 200 से अधिक सीटों पर पहुँचाया।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़े गए इस चुनाव में एंटी-इनकंबेंसी बेअसर रही। नीतीश कुमार ने खुद बड़ी संख्या में रैलियां कीं। उनकी अपील ने जाति से ऊपर उठकर विकास और 'सुशासन' का संदेश दिया, जिसे जनता ने स्वीकार किया। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे 'मोदी-नीतीश की डबल इंजन सरकार का ऐतिहासिक समर्थन' बताया।
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत बनी महिलाएँ। उन्होंने 71.78% मतदान किया। माना जा रहा है कि महिला मतदाताओं का उच्च मतदान एनडीए की जीत का "क्रूसियल मार्जिन" बना। 'मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना', 'कन्या सुमंगला' और 'विकास मित्र' जैसी उनकी योजनाओं ने ग्रामीण महिलाओं को सशक्त किया। पीएम मोदी का 'GYAN' (गरीब, युवा, अन्नदाता, नारी) फॉर्मूला नीतीश कुमार की योजनाओं से जुड़ गया, जिससे महिलाओं और युवाओं ने जाति से ऊपर उठकर वोट दिया।
कभी 'पॉपुलिज्म' के आलोचक रहे नीतीश कुमार ने चुनाव से ठीक पहले कल्याणकारी योजनाओं की बौछार कर दी। बेरोजगार युवाओं को नकद भत्ता, छात्रों को सहायता और महिलाओं को प्रोत्साहन ने कल्याण और लुभावने वादे का मिश्रण तैयार किया। यह रणनीति महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की तरह बिहार में भी काम आई।
नीतीश की रणनीति महिलाओं और वंचित वर्गों में नीतीश कुमार की योजनाओं पर विश्वास पैदा करने में सफल रहा।
नीतीश कुमार ने जातिगत गठजोड़ को विस्तार दिया, पारंपरिक वोट बैंक ईबीसी, कुर्मी, कोइरी को मजबूत करते हुए दलित-मुस्लिम वोटों को भी आकर्षित किया। सीट-शेयरिंग फॉर्मूला ने गठबंधन को अनुशासित रखा। 'जंगल राज' का भय पैदा कर विपक्ष को कमजोर किया, खासकर आरजेडी के गढ़ों में।
1990 से सात वर्षों से अधिक समय तक लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। चारा घोटाले में लालू पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने परिवार की सत्ता पर पकड़ बनाए रखी और उत्तराधिकारी बनीं।
इसी दौर में इंजीनियरिंग स्नातक से राजनेता बने नीतीश कुमार ने अपनी ओबीसी कुर्मी समुदाय और अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी में आधार मजबूत किया। वह कभी लालू के विश्वसनीय 'छोटे भाई' माने जाते थे। उन्होंने यादवों के वर्चस्व के खिलाफ उन्होंने चुपचाप अपनी जमीन तैयार की। 2005 के विधानसभा चुनावों में नीतीश ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लालू को कड़ी टक्कर दी और निर्णायक जीत हासिल की। यह साझेदारी दशकों तक बिहार की राजनीति और सामाजिक गतिशीलता को नया आकार देती रही।
नीतीश और लालू दोनों समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के संरक्षण में उभरे, जिन्होंने 1970 के दशक के अंत में जनता पार्टी सरकार में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी आरक्षण लागू किया था। 1951 में नालंदा जिले के कल्याण बिघा गांव में जन्मे नीतीश ने 1977 के कांग्रेस-विरोधी जनता लहर में चुनावी राजनीति में कदम रखा। नीतीश ने कम उम्र में ही डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेताओं की रचनाओं से प्रेरणा ली। हालांकि, उनके शुरुआती चुनावी प्रयास असफल रहे। नीतीश ने राजनीति छोड़ने तक सोचा, लेकिन 1985 में लोक दल टिकट पर हरनौत जीतकर ब्रेकथ्रू मिला। 1989 में लोकसभा पहुंचे और वी.पी. सिंह सरकार में कृषि राज्य मंत्री बने।
1994 में नीतीश ने लालू के खिलाफ खुद को मजबूत करने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बनाई। बाद में यह जनता दल यूनाइडेट यानी जेडीयू बना। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्रालय संभाले। लालू की शासन शैली से असंतोष जताते हुए नीतीश उनके साये से बाहर निकले थे। मार्च 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत न होने से एक हफ्ते में इस्तीफा दे दिया, जिससे राबड़ी देवी की सरकार बनी रही।
फरवरी 2005 में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण राष्ट्रपति शासन लगा। अक्टूबर 2005 में आरजेडी को झटका लगा। नीतीश ने अच्छी खासी सीटें जीतकर बीजेपी के साथ सरकार बनाई। नीतीश मुख्यमंत्री बने और तब से अब तक वह सीएम बने हुए हैं।
नवंबर 2005 से नीतीश की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अटूट पकड़ है। बीजेपी और यहाँ तक कि आरजेडी के साथ बदलते गठबंधनों के बावजूद वह सीएम बने रहे।