केंद्र में मंत्री और लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान वैसे तो यह कहते रहे हैं कि वह मजबूती से एनडीए के साथ हैं लेकिन हाल में उनके कुछ विरोधाभासी बयानों से बिहार में यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या वह अकेले चुनाव लड़ने का खतरा मोल ले सकते हैं? 
ध्यान रहे कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से खुद को औपचारिक रूप से अलग किए बिना अकेले चुनाव लड़ा था और इस बार यह चर्चा चल रही है कि वह जन सुराज के प्रशांत किशोर के साथ चुनाव लड़ने पर जोड़ घटाव कर रहे हैं हालांकि औपचारिक रूप से अब तक चिराग पासवान ने ऐसी कोई बात नहीं कही है।
चिराग पासवान का हाल में दिया गया वह बयान बहुत चर्चा में है जिसमें उन्होंने पहले तो यह कहा कि बिहार में वह एनडीए में नहीं है लेकिन बाद में सफाई दी और दावा किया कि वह उससे अलग नहीं है। अपनी सफाई में चिराग पासवान ने कहा कि दरअसल उनका मकसद यह बताना था कि बिहार विधानसभा में उनका कोई विधायक नहीं है इस तरह वह बिहार में एनडीए में नहीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले अपराध के मुद्दे पर चिराग पासवान यह कह चुके हैं कि उन्हें इस बात का अफसोस है कि वह एक ऐसी सरकार के साथ हैं जिसमें इतना क्राइम हो रहा है। 
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एनडीए के साथ न होने और उसके साथ होने के बारे में इस तरह के बयानों से यह चर्चा शुरू हुई है कि क्या वह एक बार फिर एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने के बारे में रणनीति बना रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उनका बड़ा मकसद नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपना उम्मीदवार देखकर उन्हें हराना था जिसमें उन्हें कामयाबी भी मिली और नीतीश कुमार की पार्टी महज 43 सीटों पर सिमट गई थी।
2020 के विधानसभा चुनाव के समय यह कहा गया था कि चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार दरअसल भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर खड़े किए और इसमें परोक्ष रूप से भाजपा के शीर्ष नेता शामिल थे। उस समय चिराग पासवान ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया था। उसके बाद से राजनीति में कई बदलाव आए। स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में बंट गई और चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस मंत्री बन गए।
यह भी कहा गया कि नीतीश कुमार के गुस्से और उनके कहने के बाद चिराग पासवान को भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की राजनीति से अलग कर दिया। लेकिन 2024 का चुनाव आते-आते राजनीति ने फिर करवट ली और पशुपति कुमार पारस केंद्र की राजनीति से दूर कर दिए गए और उनकी जगह एक बार फिर चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा बने और उनकी पार्टी ने पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ते हुए सभी सीटों पर जीत हासिल की।
2020 के चुनाव से इतर इस बार चिराग पासवान का खुद को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने का इरादा बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि इसके तहत वह पहले एनडीए में अधिक से अधिक सीट हासिल करने के दबाव के तहत विरोधाभासी बयान दे रहे हैं। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि क्या ‘मोदी का हनुमान’ इस बार उनसे अलग होने के बारे में तो नहीं सोच रहे। इसीलिए चिराग पासवान का इस बार मकसद नीतीश कुमार को हराने से ज्यादा अपनी पकड़ मजबूत करना है और कहा जा रहा कि इसके लिए वह प्रशांत किशोर के साथ अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं।

प्रशांत किशोर के साथ चुनाव लड़ने की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि दोनों एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं और ऐसा बताया जा रहा है कि हाल के दिनों में चिराग पासवान और प्रशांत किशोर की मुलाकात भी हुई है। इस मुलाकात के पीछे यह रणनीति भी बताई जा रही है कि नीतीश कुमार की तय मानी जा रही अनुपस्थिति और हार में दोनों नेता तेजस्वी यादव को युवाओं के बीच अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान रहे हैं।

इस परिस्थिति में इस बात की चर्चा हो रही है कि क्या चुनावी जोड़ घटाव देखते हुए चिराग पासवान केंद्र में मंत्री पद छोड़कर एनडीए से अलग हो सकते हैं?
यह भी चर्चा है कि चिराग पासवान खुद सहित अपने पांच सांसदों का केंद्र की सरकार से समर्थन वापस लेने का डर दिखा कर बिहार विधानसभा चुनाव में अपने लिए ज्यादा सीट झटक सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह नीतीश कुमार के लिए बड़ा झटका होगा क्योंकि इसके बाद उनकी पार्टी की सीट कम करनी होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार इस स्थिति से कैसे उबरते हैं। 
अगर चिराग पासवान एनडीए छोड़ने और प्रशांत किशोर के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का रिस्क लेते हैं तो यह बिहार की राजनीति के लिए एक दिलचस्प बात होगी और इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ सकता है। हालांकि चिराग के समर्थन वापस लेने से केंद्र सरकार पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की बैसाखियों के सहारे चल रही मोदी सरकार पर खतरा बढ़ सकता है।