तारीखः 14 नवंबर, शुक्रवार 2025
समयः 3.15 बजे
बिहार के नतीजेः रुझानों में एनडीए प्रचंड बहुमत की ओर

बिहार विधानसभा चुनाव में 14 नवंबर बाद दोपहर तक जो रुझान आए हैं, उससे स्पष्ट संकेत है कि राज्य में फिर से एनडीए की सरकार आ रही है। एनडीए ने अप्रत्याशित रूप से भारी बढ़त हासिल कर ली है। 243 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटें आवश्यक थीं, लेकिन एनडीए ने लगभग 208 सीटों पर इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक बढ़त बना ली है। 2010 के बाद यह उसका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। महागठबंधन के दो प्रमुख दल आरजेडी और कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन सामने आया है। 

राहुल-तेजस्वी ने भीड़ तो बहुत जुटाई, वोटर नदारद

हैरानी की बात है कि आरजेडी के पास बहुत बड़ा काडर है, वो इस चुनाव में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाया। जबकि कांग्रेस पार्टी काडर के अभाव में कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिहार में वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी। उसमें भीड़ बहुत दिखाई दी लेकिन वो वोटों में नहीं बदल पाई। यही हाल तेजस्वी का भी रहा। तेजस्वी की रैली में भीड़ खूब जुटती थी लेकिन वो भी वोटों में बदल नहीं पाए। महागठबंधन ने मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम के रूप में पेश किया था। उन पर महादलित वोटरों को लाने की जिम्मेदारी थी। लेकिन पार्टी शुरुआत में तो आगे रही, लेकिन उसके बाद उसकी कोई खबर किसी एक भी सीट से नहीं आई। उसने 15 सीटें ली थीं। लेकिन एक भी सीट पर उसकी बढ़त नहीं दिखाई दे रही है।

बीजेपी की बढ़त का श्रेय निश्चित रूप से उसके बिहार के नेताओं की बजाय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ही दिया जाएगा। अमित शाह पूरे चुनाव के दौरान और खासतौर से पिछले 15 दिनों से वे बराबर बिहार में रहे। हालांकि पीएम मोदी की कई रैलियां हुईं और उन्होंने भीड़ भी जुटाई। लेकिन श्रेय अमित शाह को मिलेगा।

दोपहर 3.51 बजे चुनाव आयोग की वेबसाइट ने सभी 243 सीटों का रुझान दे दिया है। 

  • भाजपा 95 
  • जेडीयू 85 
  • आरजेडी 24 
  • लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 19 
  • सीपीआई (एमएल) (लिबरेशन) 2 
  • कांग्रेस 1 
  • हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) 6 
  • एआईएमआईएम 6 
  • राष्ट्रीय लोक मोर्चा 4 
  • सीपीआई (एम) 1 
  • बीएसपी 1

एनडीए की प्रचंड जीत या बढ़त को फिलहाल महागठबंधन स्वीकार करने को तैयार नहीं है। अखिलेश यादव, संजय राउत, अशोक गहलोत ने चुनाव आयोग, एसआईआर को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। जबकि कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कांग्रेस पार्टी को आत्ममंथन को सलाह दी है। लेकिन महागठबंधन की किसी भी पार्टी ने अभी तक अपनी गलतियों, कमियों और कमजोरियों को स्वीकार नहीं किया है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पांचवीं बार सत्ता में लौटने को तैयार हैं, जबकि महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) को मात्र 46-51 सीटों पर ही बढ़त मिल रही है। दो चरणों में हुआ मतदान कुल 67.13% रहा था, जो 1951 के बाद सबसे अधिक था। लेकिन महिलाओं का मतदान 71.78% (पुरुषों के 62.98% के मुकाबले) रहा, जो एनडीए के पक्ष में निर्णायक साबित हुआ।

रुझानों में एनडीए का वोट शेयर अभी तक 46% है जो 2024 के लोकसभा चुनाव (48.2%) के बराबर रहा। एक अनुमान के मुताबिक महागठबंधन का वोट शेयर 3% तक गिरा। एआईएमआईएम ने सीमांचल में अभी तक रुझानों में 2.08 % वोट शेयर लेकर महागठबंधन को करारी चोट पहुंचाई है। जबकि इस बार मुस्लिम वोट महागठबंधन को मिलने की बात कही जा रही थी। जन सुराज जैसे नए खिलाड़ी भी वोट विभाजन में सफल रहे, जिसका एनडीए को फायदा मिला।

एनडीए की बढ़त के प्रमुख कारण

एनडीए की बढ़त बहुआयामी है। जिसमें सामाजिक समीकरण, विकास का एजेंडा और कल्याणकारी योजनाएं शामिल हैं। मुख्य वजहें इस तरह हैं:
सामाजिक इंजीनियरिंग और जातिगत समीकरण: एनडीए ने अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी), महादलित, गैर-यादव ओबीसी और ऊपरी जातियों का व्यापक गठजोड़ बनाया। जिसमें महिलाओं के वोट शेयर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भाजपा ने ऊपरी जातियों (20-25% वोट) को मजबूत किया, जबकि जेडीयू ने महिलाओं, ईबीसी (18%) और दलितों (16%) पर काम किया। महागठबंधन सिर्फ मुस्लिम-यादव (MY, 30%) पर निर्भर रहा, उसे महादलितों का वोट नहीं मिला। महागठबंधन के पिछड़ने की यह खास वजह मानी जा रही है। बीएसपी ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीएसपी को 1.5% फीसदी वोट दोपहर तक आए रुझान में मिले थे। ये वोट अगर महागठबंधन को मिलते तो उसकी हार

नीतीश कुमार फैक्टर 

इस चुनाव में तमाम हमलों के बावजूद नीतीश कुमार की छवि 'सुशासन बाबू' के रूप में बनी रही। विपक्ष के 'पलटू राम' हमलों का असर हवा में उड़ गया। लगभग सभी राजनीतिक विश्लेषक महिलाओं के वोट को इस मामले में निर्णायक मान रहे हैं। ग्राउंड से जो रिपोर्ट आ रही थी, उसमें बार-बार इशारा किया जा रहा था कि महिलाओं ने नीतीश के शासन को पसंद किया। 

महिलाओं का 71.78% मतदान (पुरुषों से 8.8% अधिक) एनडीए के पक्ष में रहा। यह नीतीश की महिलाओं-केंद्रित नीतियों (पंचायत में 50% आरक्षण, शिक्षा-रोजगार) का परिणाम है।

भारी तादाद में शराबी पतियों के कारण महिलाएं इस बात को नहीं भूलीं कि नीतीश ने ही शराबबंदी की थी। जबकि जनसुराज पार्टी प्रमुख प्रशांत किशोर ने कहा कि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वो शराबबंदी खत्म कर देंगे।

अन्य फैक्टर 

एनडीए ने 9 लाख करोड़ के निवेश, 7 एक्सप्रेसवे, 10 औद्योगिक पार्क और 1 करोड़ नौकरियों का वादा किया है। उसने बिहार को 'विकसित भारत' का सपना दिखाया। लोकसभा चुनाव 2024 में ही ये संकेत मिल गए थे कि एनडीए को बिहार में लोग पसंद कर रहे हैं। पीएम मोदी और बीजेपी के अन्य नेताओं ने बार-बार पूर्व सीएम लालू यादव के समय का जंगलराज की याद दिलाई।

महिला फैक्टर की कितनी बड़ी भूमिका 

महिलाओं को लेकर शुरू से ही यह कहा जा रहा था कि वे जेडीयू की परंपरागत वोटर बन चुकी है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (महिला रोजगार योजना) के तहत चुनाव से ठीक पहले 1.5 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये (पहली किस्त) ट्रांसफर किया गया, कुल 7,500 करोड़ खर्च किए गए। पीएम मोदी ने इसे वर्चुअली लॉन्च किया, इसे 'महिला सशक्तिकरण' बताया। योजना स्वरोजगार के लिए थी, जिसमें 2 लाख तक अतिरिक्त सहायता का वादा था।

महिलाओं का उच्च मतदान एनडीए के पक्ष में रहा। एग्जिट पोल्स और ट्रेंड्स में महिलाओं ने नीतीश को 'महिला हितैषी' माना। 1.51 करोड़ लाभार्थी महिलाओं (कुल 3.5 करोड़ महिला वोटरों का 43%) ने 'लाभार्थी वोट' बनाया। ग्रामीण महिलाओं (40+ आयु वर्ग) ने इसे सराहा, जो गाय-बकरी खरीदने या छोटे व्यवसाय के लिए बेहतर बताया।

इससे पहले इसी तरह की योजनाओं (महाराष्ट्र की लाडकी बहिन, प. बंगाल की लक्ष्मी भंडार) ने सत्ता बचाई हैं। बिहार में 125 यूनिट मुफ्त बिजली और पेंशन वृद्धि ने इसे और मजबूत किया। एनडीए नेताओं राम मांझी, अमित शाह ने इसे 'महिला सशक्तिकरण का ब्रह्मास्त्र' कहा, और 70% महिला समर्थन का दावा किया।

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बहरहाल, महिलाओं को 10,000 रुपये देना कुछ बड़ी वजहों में से एक है। खासकर ग्रामीण और गरीब महिलाओं के बीच यह इस पैसे ने खास भूमिका निभाई है। 71% महिला मतदान ने महागठबंधन के मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण को तोड़ा। हालांकि, यह अकेली वजह नहीं है। कुल मिलाकर, यह 'एम फैक्टर' (महिला) ने एनडीए को बंपर वोट शेयर दिलाया।