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बिहार में शनिवार को जाति जनगणना करते अधिकारी।

बिहार में जाति जनगणना शुरू, लेकिन यह कितना जरूरी?

बिहार में आज 7 जनवरी शनिवार से जाति आधारित जनगणना का पहला चरण शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ किया है कि इस जनगणना में सिर्फ जातियां दर्ज होंगी, उप जातियों को दर्ज नहीं किया जाएगा। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि गणना की कवायद बिहार सरकार को गरीबों के लाभ के लिए राज्य में वैज्ञानिक रूप से विकास कार्य करने में सक्षम बनाएगी।

पीटीआई के मुताबिक तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर उसकी "गरीब विरोधी" नीतियों के लिए निशाना साधा और कहा कि बीजेपी नहीं चाहती कि जाति सर्वेक्षण कराया जाए। बता दें कि जब बिहार में जेडीयू और बीजेपी मिलकर सरकार चला रहे थे तो बीजेपी ने जाति जनगणना का विरोध किया था। इसके बाद नीतिश ने बीजेपी से गणबंधन तोड़ा और आरजेडी से गठबंधन किया। नए गठबंधन के बाद नीतिश ने जाति जनगणना की घोषणा की तो बीजेपी ने बहुत सतर्कता से इसका समर्थन किया लेकिन वो कुल मिलाकर जाति जनगणना के खिलाफ रही है। 

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यादव ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण आज से शुरू हो गया है। यह हमें वैज्ञानिक आंकड़े देगा, ताकि उसके अनुसार बजट और समाज कल्याण की योजनाएं बनाई जा सकें। बीजेपी गरीब विरोधी है। वे ऐसा नहीं होने देना चाहते।

जाति सर्वे का दूसरा चरण 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक होने की संभावना है। उस समय सभी उप जातियों, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों आदि के लोगों से संबंधित आंकड़े जमा किए जाएंगे।   
केंद्र सरकार जाति जनगणना से मना कर चुकी है। बिहार में शनिवार से जाति आधारित जनगणना का पहला चरण शुरू होने के साथ ही उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि गणना की कवायद सरकार को गरीबों के लाभ के लिए राज्य में वैज्ञानिक रूप से विकास कार्य करने में सक्षम बनाएगी।

सर्वेक्षण का दूसरा चरण जो 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक होने की संभावना है, सभी जातियों, उप-जातियों, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों आदि के लोगों से संबंधित तारीख एकत्र करेगा। तमाम राज्यों में लोगों की आर्थिक स्थिति को लेकर पहले कई सर्वे हुए हैं और सरकार उनके आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनाने की बात कहती है लेकिन नतीजे सामने नहीं आते। अब देखना है कि बिहार में जाति जनगणना के बाद राज्य सरकार किस तरह की नीतियां बनाती है।
केंद्र द्वारा जनगणना से इनकार के महीनों बाद बिहार कैबिनेट ने पिछले साल 2 जून को जाति जनगणना का निर्णय लिया था। सर्वे में प्रदेश के 38 जिलों में अनुमानित 2.58 करोड़ घरों में 12.70 करोड़ की अनुमानित आबादी शामिल होगी, जिसमें 534 ब्लॉक और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं। सर्वे 31 मई, 2023 तक पूरा किया जाएगा।
इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सरकार ने राज्य में उप-जातियों और नागरिकों की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए जाति आधारित जनगणना करने के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षित किया है।

उन्होंने यह भी कहा कि जनगणना राज्य और देश के विकास के लिए फायदेमंद होगी। नीतीश ने शिवहर जिले में अपनी 'समाधान यात्रा' के दौरान एएनआई को बताया- हमने अपने अधिकारियों को एक विस्तृत जातिगत जनगणना करने के लिए तैयार किया है। इससे राज्य और देश के विकास को लाभ होगा।

इस सर्वे में 38 जिलों में अनुमानित 2.58 करोड़ घरों में 12.70 करोड़ की अनुमानित आबादी शामिल होगी, जिसमें 534 ब्लॉक और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं। सर्वेक्षण 31 मई, 2023 तक पूरा किया जाएगा।

बिहार में जाति जनगणना क्यों

मंडल कमीशन की रिपोर्ट में जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश की गई थी, 1931 की जनगणना के मुताबिक़ उनकी संख्या 52 प्रतिशत थी। 

आयोग ने ये आँकड़े सटीक नहीं माने थे और जाति जनगणना कराकर सही आँकड़े हासिल करने की सिफ़ारिश की थी।
मंडल आयोग ने अनुमान लगाया था कि 1931 से लेकर आयोग के गठन यानी 1978 तक सभी जातियों में बच्चे पैदा करने की दर एक समान रही हो तो जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश की जा रही है, उनकी संख्या 52 प्रतिशत होगी।

यूडीआईएसई प्लस के आँकड़ों के मुताबिक़, प्रमुख राज्यों के आँकड़े देखें तो प्राइमरी स्कूलों में ओबीसी की संख्या बिहार में 61 प्रतिशत है। इसके अलावा उनकी मौजूदगी तमिलनाडु में 71 प्रतिशत, केरल में 69 प्रतिशत, कर्नाटक में 62 प्रतिशत है। 

इनकी तादाद उत्तर प्रदेश में 54 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 52 प्रतिशत, तेलंगाना में 48 प्रतिशत, राजस्थान में 48 प्रतिशत, गुजरात में 47 प्रतिशत, झारखंड में 46 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 45 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 43 प्रतिशत, ओडिशा में 36 प्रतिशत है।

बिहार में कितने प्रतिशत ओबीसी हैं?

बिहार में यूनाइटेड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई प्लस) की रिपोर्ट चर्चा में है। 2019 के आँकड़ों के मुताबिक़, प्राथमिक स्कूलों में पंजीकरण के आधार पर देश में 25 प्रतिशत सामान्य, 45 प्रतिशत ओबीसी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोग हैं।
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कितना आरक्षण?

सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को केंद्र के स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। वहीं अलग-अलग राज्यों में ओबीसी के आरक्षण का प्रतिशत अलग- अलग है और कुछ राज्य ओबीसी आरक्षण नहीं देते हैं।अनुसूचित जाति को 17 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण उनकी जातियों की संख्या के आधार पर मिला हुआ है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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