बिहार के 'गया' का नाम बदलकर 'गयाजी' किए जाने की घोषणा के पीछे क्या धार्मिक प्रतीकवाद है या यह सियासी रणनीति? नीतीश कुमार की इस पहल से कौन खुश होगा और किसे असहमति है? जानिए नामकरण की राजनीति का विश्लेषण।
एक तरफ़ बोधगया के महाबोधि मंदिर को लेकर बौद्धों का आंदोलन चल रहा है तो दूसरी तरफ़ शुक्रवार को यह ख़बर आई कि नीतीश कुमार सरकार ने दशकों से गया नाम से मशहूर शहर का नाम बदलकर अब गया जी रखने का फैसला किया है। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार गया जिले की स्थापना 1865 में हुई थी।
बिहार सरकार की ओर से दी गयी जानकारी में बताया गया है कि राज्य सरकार ने गया नाम बदलकर गयाजी कर दिया है। कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी दी गई है। इस जानकारी में कहा गया है कि गयाजी के पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
गया को यहां होने वाले पिंडदान के लिए दुनिया भर में जाना जाता है और कुछ लोग पहले भी इसे गया जी कहते थे लेकिन नाम बदलने की चर्चा शायद ही पहले कभी हुई हो। नीतीश कुमार व्यक्तिगत रूप से नाम बदलने के खिलाफ रहे हैं और एक बार उनसे जब बख्तियारपुर का नाम बदलने के लिए कहा गया तो उन्होंने इसे हँस कर टाल लिया था। लेकिन कई लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार को अब अपनी सेक्यूलर छवि की उतनी चिंता नहीं है और वह खुलकर सॉफ्ट हिंदुत्व पर चल रहे हैं। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार दरअसल ऐसे लोगों से घिर गए हैं जो भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे के करीब हैं और उनके सामने नीतीश कुमार खुद को बेबस महसूस कर रहे हैं।
गया का नाम बदल कर गया जी करने के पीछे नीतीश कुमार की व्यक्तिगत सहमति कितनी है, इसका पता तो नहीं चल पाया लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि दरअसल नीतीश कुमार पर भारतीय जनता पार्टी ने जितना शिकंजा कस रखा है यह उसी का नतीजा हो सकता है। गया का नाम बदलने से जहां कुछ पंडों को स्वाभाविक खुशी मिली है वहीं बहुत से लोग यह सवाल भी कर रहे हैं कि क्या यह चुनाव के वक्त हिंदुत्ववादी वोटों को अपनी ओर करने की एक चाल है। यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि गया का नाम बदलकर गया जी करने की कोई जोरदार मांग उन पंडों ने भी नहीं की जो श्रद्धा से इसे गया जी कहते हैं।
गया टाउन विधानसभा क्षेत्र में पिछले सात बार से भारतीय जनता पार्टी के प्रेम कुमार जीत रहे हैं और वह कई बार मंत्री भी रह चुके हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि प्रेम कुमार ने बतौर विधायक कई सरकारी परियोजनाओं के लिए शिलापट्ट पर नाम गया की जगह पहले से ही गया जी लिखवा रखा है।
गया से पहली बार सांसद चुने जाने के बाद मंत्री बनने वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी ने भी गया का नाम बदलकर गया जी करने का स्वागत किया है। जीतन राम मांझी के परिवार के लोग गया जिले से ही चुनाव लड़ते हैं और यह समझा जाता है कि दरअसल उन्होंने भी चुनावी रणनीति के तहत ही इस फैसले का समर्थन किया है।
नीतीश कुमार ने पिंडदान की वजह से मशहूर गया को कई परियोजनाएं भी दीं जिनमें एक 324 करोड़ रुपए का रबर डैम भी है। इस डैम से उम्मीद थी कि पिंडदानियों को गर्मी में भी फल्गु नदी में तर्पण के लिए पानी मिलेगा लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यह डैम अब किसी काम का नहीं रहा बल्कि इसका बचा खुचा पानी सड़ांध मार रहा है।
एनडीए सरकार में इस समय नीतीश कुमार की स्थिति सबसे कमजोर और भारतीय जनता पार्टी की स्थिति सबसे मजबूत मानी जा रही है, इसलिए इस सरकार के बारे में कहा जा रहा है कि वह दरअसल भाजपा के एजेंडे पर चल रही है। उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सम्राट चौधरी इससे पहले सुल्तानगंज स्टेशन का नाम भी बदलने की मांग कर चुके हैं। बहुत से लोगों को लगता है कि नाम बदलने का यह सिलसिला सिर्फ गया पर नहीं रुकेगा और इसकी चपेट में बख्तियारपुर जैसे कई शहर आ सकते हैं।
ध्यान रहे कि नीतीश कुमार सरकार ने हाल के दिनों में कई ऐसे फैसले लिए हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि दरअसल वह सॉफ्ट हिंदुत्व पर चल रहे हैं। इसी तरह का एक काम सीतामढ़ी के पुनौरा में चल रहा है। इसे हाल के दिनों में पुनौराधाम कहा जाने लगा है और बिहार के लोग इसे सीता का जन्मस्थल मानते हैं हालांकि नेपाल के लोगों का मानना है कि उनका जन्म स्थल जनकपुर में है। पुनौरा धाम मंदिर के विकास के लिए बिहार सरकार ने 72 करोड़ रुपए दिए थे और अब सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए 120 करोड़ रुपए दे रही है। इसके अलावा पुनौरा धाम से लेकर अयोध्या तक के लिए फोरलेन सड़क बनाने की योजना भी पास हो चुकी है।