प्रशांत किशोर यानी पीके ने बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी जन सुराज के प्रदर्शन पर पहली बार खुलकर बयान दिया है। इन्होंने साफ़-साफ़ कहा कि सिस्टम बदलने आए थे और सरकार भी नहीं बदल पाए। जन सुराज पार्टी ने 238 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 236 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई। एक भी सीट नहीं जीत सकी। तो क्या प्रशांत किशोर अब राजनीति छोड़ देंगे? बिहार चुनाव में जन सुराज को लेकर उठ रहे ऐसे ही सवालों पर प्रशांत किशोर ने जवाब दिया है।

अपनी पार्टी जन सुराज के शून्य सीट और महज 3.5 प्रतिशत वोट हासिल करने के बाद पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने मंगलवार को पहली बार चुनाव बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रशांत किशोर ने कहा, 'तीन साल पहले हम बिहार आए थे सिस्टम बदलने। हमने ईमानदार कोशिश की, लेकिन हम सफल नहीं हो पाए। हम सरकार तक नहीं बदल पाए, लेकिन कुछ हद तक राजनीति ज़रूर बदल दी है।'
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मीडिया कवरेज पर खुश पीके?

प्रशांत किशोर ने परिणामों के बावजूद सकारात्मक नजरिया अपनाते हुए कहा, 'जिस पार्टी को सिर्फ 3.5 प्रतिशत वोट मिले हों और फिर भी इतना मीडिया अटेंशन मिल रहा हो, इसका मतलब है कि हमने कुछ अर्थपूर्ण काम किया है। कमी जरूर रही होगी कि लोगों ने हम पर भरोसा नहीं किया। उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी है। मैं सारी जिम्मेदारी लेता हूँ। हम सबने मिलकर हारा है।'

प्रशांत किशोर ने दावा किया कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जेडीयू को केवल 25 सीटें ही मिलतीं, यदि उनकी सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में 60 हज़ार लाभार्थियों को 10 हज़ार रुपये नहीं दिए होते और स्वरोजगार पहल के तहत राज्य भर में 1.5 करोड़ महिलाओं को 2 लाख रुपये देने का वादा नहीं किया होता।

प्रशांत किशोर ने वोट खरीदने के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह झूठ है कि बिहार के लोगों ने 10 हजार रुपये लेकर अपना और अपने बच्चों का भविष्य बेच दिया।

'लोगों ने वोट नहीं बेचा'

प्रशांत किशोर ने कहा, 'स्वतंत्र भारत में पहली बार, खासकर बिहार में, एक सरकार ने लोगों पर 40 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया। इसी वजह से एनडीए को इतना बड़ा बहुमत मिला। लोग कह रहे हैं कि 10 हजार रुपये में वोट बिक गए – यह सच नहीं है। बिहार का व्यक्ति अपना और अपने बच्चों का भविष्य नहीं बेचता।'
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उन्होंने आगे कहा, 'हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 60-62 हजार लोगों को 10 हजार रुपये दिए गए और 2 लाख रुपये का लोन देने का वादा किया गया। सरकारी अधिकारी ड्यूटी पर लगाए गए थे, जीविका दीदियाँ लगाई गई थीं कि लोगों को भरोसा दिलाएँ कि एनडीए की सरकार आएगी तो लोन मिलेगा।'

'हमने नफरत का जहर नहीं घोला'

प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी का बचाव करते हुए कहा कि जन सुराज ने लोगों का भरोसा नहीं जीत पाई, लेकिन कोई अपराध नहीं किया। उन्होंने कहा, 'मैं बिहार के लोगों को यह समझाने में असफल रहा कि उन्हें किस आधार पर वोट देना चाहिए और नया सिस्टम क्यों बनाना चाहिए। हमसे गलतियाँ हुई होंगी, लेकिन हमने कोई अपराध नहीं किया। हमने समाज में जाति का जहर नहीं घोला। हमने बिहार में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति नहीं की। हमने धर्म के नाम पर लोगों को बाँटने का अपराध नहीं किया। हमने बिहार के गरीब, मासूम लोगों को पैसे देकर उनका वोट खरीदने का अपराध नहीं किया।'
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तो मौन उपवास क्यों?

हार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रशांत किशोर ने ऐलान किया कि वह लोगों का विश्वास न जीत पाने का प्रायश्चित करने के रूप में 20 नवंबर को गांधी भिटिहरवा आश्रम में दिनभर का मौन उपवास रखेंगे।

उन्होंने कहा, 'मुझे पिछले तीन साल में जितनी मेहनत करता हुआ आपने देखा है, उससे दोगुनी मेहनत करूँगा। सारी ऊर्जा लगा दूँगा। पीछे हटने का कोई सवाल नहीं है। बिहार को बेहतर बनाने का मेरा संकल्प पूरा होने तक पीछे नहीं हटूँगा।'

प्रशांत किशोर की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस बिहार की राजनीति में एक नई पार्टी के रूप में आए जन सुराज के पहले बड़े चुनावी परीक्षा के बाद आई है। हालांकि परिणाम निराशाजनक रहे, लेकिन प्रशांत किशोर ने साफ कर दिया है कि वे राजनीति छोड़ने वाले नहीं हैं और बिहार में वैकल्पिक राजनीति की उनकी लड़ाई जारी रहेगी।