Bihar Elections Modi Speech: पीएम मोदी बिहार की जनसभाओं में कट्टे और गोली की बातें कर रहे हैं। शनिवार 8 नवंबर को सीतामढ़ी में उन्होंने फिर से जिक्र किया। लेकिन घटनाएं नीतीश राज में भी हो रही हैं। क्या मोदी नीतीश को भी लपेट रहे हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक चुनावी सभा के बारे में एक अखबार की सुर्खी है: बिहार की जनता नहीं चाहती कि यहां कट्टे की सरकार बने।
प्रधानमंत्री को तुकबंदी बहुत पसंद है और हर बात में उनकी टीम इसकी कोशिश करती है। इसी कोशिश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल बिहार की चुनावी सभाओं में कट्टा, क्रूरता, कटुता और कु:संस्कार जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। और जब पांचवां शब्द हिंदी का नहीं मिला तो इसमें उन्होंने अंग्रेजी का करप्शन भी जोड़ लिया। इसके अलावा उन्होंने ‘क’ से ही बने शब्द कुशासन का भी जिक्र किया।
शुक्रवार को औरंगाबाद में अपने चुनावी भाषण में नरेंद्र मोदी जब यह बात कह रहे थे तो लगभग उसी समय राजधानी पटना में एक फाइनेंस कंपनी के अधिकारी को कट्टे से गोली मार घायल किया गया और दस लाख रुपए लूट लिए गए। सवाल केवल रकम का नहीं बल्कि उन दो अपराधियों का है जो बाइक पर सवार होकर कट्टा लेकर एक बैंक के पास इस घटना को अंजाम दे रहे थे।
कट्टे से बिहार में केवल लूट की घटनाएं नहीं बल्कि मर्डर भी किए जा रहे हैं। केवल 4 महीने पहले की बात है जब पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे पटना की प्रमुख सड़क बेली रोड पर स्थित एक बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में कट्टा लिए कुछ अपराधी घुसे और उन्होंने वहां मर्डर किया और इत्मीनान से बाहर निकल गए।
इस घटना से कुछ ही दिन पहले पटना में ही एक बड़े उद्योगपति गोपाल खेमका की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी हालांकि पुलिस ने यह नहीं बताया कि इसमें कट्टे का इस्तेमाल हुआ था या कोई और फायर आर्म था। भाजपा से जुड़े रहे गोपाल खेमका के परिवार का दुर्भाग्य यह रहा कि उनके बेटे की भी 4 साल पहले हत्या की गई थी।
अभी कुछ ही हफ्ते पहले की बात है कि गयाजी में एक भाजपा नेता के पुत्र की चार कट्टाधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी जिसका लाइव फुटेज सीसीटीवी पर देखा जा रहा था। इत्तेफाक की बात है कि औरंगाबाद और गयाजी दोनों एक ही कमिश्नरी के शहर हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद मोकामा में जदयू के उम्मीदवार अनंत सिंह के काफिले से टक्कर के बाद जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार के समर्थक दुलारचंद यादव को मारी गई गोली के लिए इस्तेमाल हुए कट्टे का भी ध्यान रहा होगा।
यह तो कुछ बानगी भर हैं, वरना ऐसी घटनाएं पूरे बिहार में हर दिन होती रहती हैं। इसलिए जब प्रधानमंत्री ने ‘कट्टे की सरकार’ जैसी शब्दावली का इस्तेमाल किया तो नीतीश कुमार के शासनकाल के दौरान और खासकर पिछले दो-तीन वर्षों के शासनकाल में कट्टों के कई दृश्य सामने घूम गए।
भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी कट्टे का जिक्र इसलिए भी कर रहे हैं ताकि जंगल राज का जो नैरेटिव वह बनाते हैं उसे मजबूत कर सकें। लेकिन घटनाओं के लिहाज से देखा जाए तो बिहार में डबल इंजन की सरकार जंगल राज जैसी घटनाओं को रोकने में नाकाम रही है।
एक तरफ नीतीश कुमार का यह दावा है कि उन्होंने बिहार से अपराध खत्म कर दिए हैं, तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भी कट्टा, दुनाली, फिरौती और रंगदारी जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। राजनीतिक संदेश देने के लिए श्री मोदी आरोप लगा रहे कि राजद ने कांग्रेस की कनपटी पर कट्टा सटाकर मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी भी ले ली।
ऐसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि जिस मुख्यमंत्री को मोदी ने लाडला मुख्यमंत्री बनाया था उनकी उम्मीदवारी पर किसका कट्टा कहां पर सटा हुआ है। भाजपा के एक और वरिष्ठ नेता अमित शाह ने शुरू में यह तो कहा कि चुनाव में एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार होंगे लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, इसका फैसला विधायक दल करेगा। जब इस पर नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड की नाराजगी बढ़ी तो उन्होंने अपने सुर तो बदले हैं लेकिन अब भी यह साफ नहीं है कि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद पर रखा गया कट्टा हटा है या नहीं।
बहरहाल, मोदी ने कट्टा शब्द का इस्तेमाल वैसे तो कांग्रेस पर हमला करने के लिए किया है लेकिन उनकी इस बात से लोगों का ध्यान इस तरफ भी जाता है कि कैसे बिहार में कट्टा संस्कृति अब भी फल फूल रही है। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि कट्टे का जिक्र कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वास्तव में नीतीश कुमार के शासनकाल को कटघरे में खड़े कर रहे हैं।
हाल के दिनों में राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से यह बताया गया है कि 2015 से 2024 के बीच बिहार में अपराधों की संख्या में 80% तक की वृद्धि दर्ज की गई है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कई बार यह बात कह चुके हैं कि बिहार में पिछले 20 सालों में लगभग 70000 लोगों की हत्या की गई है।
बहुत से लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह सिख समुदाय के ककार वाले शब्दों की तरह बिहार के लिए पांच ककार शब्दों को जमा किया है, वह सिख धर्म के प्रति असंवेदनशीलता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनाव के दौरान अपनी भाषा के लिए पहले भी आलोचना होती रही है। इसी तरह उन्होंने छह गोली और सिक्सर वाला गाना दोहराया है, उसे भी बेहद फूहड़ माना गया।