मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि बिहार की मतदाता सूची अब 'शुद्ध' यानी पूरी तरह सही हो गई है, तो क्या सच में ऐसा हो गया? द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने तो पड़ताल में चौंकाने वाला दावा किया है। इसकी पड़ताल में पता चला है कि 14.35 लाख संदिग्ध डुप्लिकेट मतदाता हैं और 1.32 करोड़ मतदाताओं के नाम फर्जी या संदिग्ध पतों पर हैं। इसके अलावा एक-एक मतदाता के कई EPIC होने के दावे भी किए गए हैं। तो सवाल है कि मुख्य चुनाव आयुक्त का यह दावा कितना सही है कि सूची पूरी तरह शुद्ध है?

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों की अंतिम मतदाता सूची का विश्लेषण किया है। इसमें 14.35 लाख संदिग्ध डुप्लिकेट मतदाताओं का पता चला। ये वे मतदाता हैं जिनके पास दो अलग-अलग वोटर आईडी हैं, लेकिन उनका नाम, रिश्तेदार का नाम समान है और उम्र में 0-5 साल का अंतर है। इनमें से 3.42 लाख मामले सबसे ज़्यादा चिंताजनक हैं, जहां दोनों वोटर आईडी पर उम्र पूरी तरह से मेल खाती है। इसके अलावा, हजारों ऐसे मामले सामने आए जहाँ एक ही व्यक्ति के पास तीन या अधिक इलेक्ट्रॉनिक पहचान पत्र यानी EPIC हैं।
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1.32 करोड़ फर्जी पते 

रिपोर्ट के अनुसार विश्लेषण में यह भी पाया गया कि 1.32 करोड़ मतदाताओं को 243 विधानसभा क्षेत्रों की अंतिम सूची में संदिग्ध और गैर-मौजूद पतों पर दर्ज किया गया है। ये वे पते नहीं हैं जो निर्वाचन आयोग बेघर या बिना पंजीकृत पते वाले परिवारों को देता है। इन मामलों में अलग-अलग परिवारों, जातियों और समुदायों के मतदाताओं को गलत तरीके से काल्पनिक पतों के तहत एक साथ जोड़ा गया है।

पिपरा विधानसभा क्षेत्र में एक चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया है, जहाँ 505 अलग-अलग परिवारों, जातियों और समुदायों के लोगों को एक फर्जी पते पर पंजीकृत किया गया है। यह स्थिति तब सामने आई जब द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने डेटा विश्लेषकों के साथ मिलकर सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों की अंतिम मतदाता सूची का विश्लेषण किया।

ECI का दावा और हकीकत 

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 5 अक्टूबर को अंतिम मतदाता सूची जारी करते हुए दावा किया था, 'एसआईआर के सफल समापन के साथ बिहार की मतदाता सूची शुद्ध हो गई है। 22 साल बाद ऐसी सफाई हुई है। अब यह अभ्यास पूरे देश में किया जाएगा।' हालांकि, द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच ने उनके इस दावे को खारिज कर दिया।

रिपोर्ट की पड़ताल में पाया गया कि ड्राफ्ट मतदाता सूची में पाई गई डुप्लिकेट मतदाता और फर्जी पते जैसी गड़बड़ियाँ अंतिम सूची में भी जस की तस बनी हुई हैं। यह सूची अब नवंबर में बिहार विधानसभा चुनावों के लिए उपयोग की जाएगी।

निर्वाचन आयोग ने सोमवार को घोषणा की कि बिहार विधानसभा चुनाव 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होंगे, जिसमें 7.43 करोड़ लोग मतदाता के रूप में सूचीबद्ध हैं।

विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर की प्रक्रिया 24 जून को निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की घोषणा की। 25 जून से 25 जुलाई तक पहले चरण में सभी मतदाताओं को नए सिरे से पंजीकरण करने के लिए कहा गया। इस दौरान बूथ-स्तरीय अधिकारी यानी बीएलओ पूरे राज्य में फैलकर मतदाताओं से गणना फॉर्म वितरित और इकट्ठा करने में जुटे हैं। शुरू में सख्त दस्तावेजीकरण की मांग की गई, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद नियमों में ढील दी गई और मतदाताओं को बिना दस्तावेज के फॉर्म जमा करने की अनुमति दी गई।
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1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित हुई, जिसके बाद द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने अपनी जाँच शुरू की। जाँच में कई खामियां सामने आईं। पहले, वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र में 5000 संदिग्ध मतदाता पाए गए, जो उत्तर प्रदेश के पड़ोसी विधानसभा क्षेत्रों में भी पंजीकृत थे। इसके बाद पिपरा, बगहा और मोतिहारी में 80 हज़ार मतदाताओं के फर्जी या संदिग्ध पतों का पता चला। तीसरी जाँच में 142 विधानसभा क्षेत्रों में 5.56 लाख संदिग्ध डुप्लिकेट मामले सामने आए, जिनमें 1.29 लाख मामलों में उम्र जैसे सभी विवरण पूरी तरह से मेल खाते थे।

निर्वाचन आयोग का जवाब

बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इनका जवाब देते हुए एक्स पर कहा, 'ड्राफ्ट सूची अंतिम नहीं है। यह जनता की जाँच के लिए प्रकाशित की गई है, ताकि दावे और आपत्तियाँ दर्ज की जा सकें।' उन्होंने दावा किया कि दूसरा चरण पूरा होने पर सभी त्रुटियाँ ठीक हो जाएंगी।
दूसरे चरण में दो महीने तक स्थानीय निर्वाचन अधिकारियों और बूथ-स्तरीय अधिकारियों को मतदाताओं द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों की जाँच करनी थी। राजनीतिक दलों या अन्य मतदाताओं को सूची में हटाने या जोड़ने के लिए दावे दाखिल करने को कहा गया। हालाँकि, रिपोर्ट की पड़ताल में कहा गया है कि इस दौरान कोई ठोस सत्यापन नहीं हुआ।
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पिपरा में स्थिति जस की तस!

रिपोर्ट के अनुसार पिपरा के गलिमपुर गाँव में पहले की जाँच में 509 मतदाताओं को एक फर्जी पते पर पंजीकृत पाया गया था। अंतिम सूची में भी 505 मतदाता उसी फर्जी पते पर दर्ज हैं। रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय मतदाता शिवनाथ दास ने बताया, 'दूसरे चरण में कोई बीएलओ हमारी जांच के लिए नहीं आया। हमने खुद सहयोग की पेशकश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ।' उनके पड़ोसी दशरथ दास ने इसे चुनाव आयोग की लापरवाही करार दिया। मुजफ्फरपुर शहर के वार्ड पार्षद शनट कुमार ने अपने मृत माता-पिता उमा देवी और चंद्रमणि शाही के नाम मतदाता सूची से हटाने की बार-बार कोशिश की, लेकिन वे अंतिम सूची में भी बने रहे। उन्होंने कहा, 'मैंने कई बार अनुरोध किया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। यह जल्दबाजी में किया गया काम है।'

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की यह जांच बिहार की मतदाता सूची में गंभीर खामियों को उजागर करती है। निर्वाचन आयोग के 'शुद्ध' सूची के दावे के बावजूद डुप्लिकेट मतदाता और फर्जी पते जैसी त्रुटियां बनी हुई हैं।