ECI All India SIR: विपक्ष ने चुनाव आयोग द्वारा देश भर में मतदाता सूची में संशोधन करने के कदम पर चिंता जताई है। उसने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के दौरान इस जल्दबाजी पर सवाल उठाया है।
विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग (ईसी) के पूरे देश में मतदाता सूची को संशोधित करने के फैसले पर सवाल उठाए हैं। विपक्ष का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई चल रही है, तो ऐसी जल्दबाजी क्यों की जा रही है।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, विपक्षी नेताओं ने आयोग के इस कदम को संदिग्ध बताया है और मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार किया जाए। उनका तर्क है कि मतदाता सूची में बदलाव से पहले पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना जरूरी है।
विपक्ष ने आयोग से पूछा है कि क्या इस कदम के पीछे कोई विशेष मंशा है और इसे अभी क्यों लागू किया जा रहा है। नेताओं ने यह भी कहा कि मतदाता सूची में किसी भी बदलाव से पहले सभी स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) से चर्चा होनी चाहिए।
निर्वाचन आयोग ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जल्द होने की उम्मीद है, जिसके बाद स्थिति और स्पष्ट हो सकती है।
विपक्ष के तर्क
विपक्ष ने ईसीआई के पूरे देश में मतदाता सूची संशोधन के फैसले पर कई तर्कों के आधार पर सवाल उठाए हैं।
जल्दबाजी का सवाल: विपक्ष का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट में मतदाता सूची से संबंधित मामला विचाराधीन है, तो आयोग का इस समय संशोधन शुरू करना संदिग्ध है। उनका तर्क है कि कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार करना उचित होगा ताकि कोई भी बदलाव कानूनी और निष्पक्ष ढांचे के तहत हो।
पारदर्शिता की मांग: विपक्षी दलों ने जोर दिया है कि मतदाता सूची में किसी भी संशोधन से पहले पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए। उनका कहना है कि बिना स्पष्ट जानकारी और उचित प्रक्रिया के ऐसे बदलाव से मतदाताओं का विश्वास कम हो सकता है।
हितधारकों से चर्चा की कमी: विपक्ष ने आरोप लगाया है कि आयोग ने इस बड़े कदम से पहले राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों के साथ पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं किया। उनका मानना है कि मतदाता सूची में बदलाव जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सभी पक्षों की राय लेना जरूरी है।
संभावित मंशा पर संदेह: कुछ विपक्षी नेताओं ने सुझाव दिया है कि इस कदम के पीछे कोई राजनीतिक मंशा हो सकती है। उन्होंने आयोग से स्पष्ट करने की मांग की है कि इस संशोधन की आवश्यकता और समय क्यों चुना गया।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर प्रभाव: विपक्ष का कहना है कि मतदाता सूची में व्यापक बदलाव से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है। उनका तर्क है कि अगर मतदाताओं के नाम गलती से हटाए गए या नए नाम जोड़े गए, तो यह चुनावी निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
विपक्ष ने मांग की है कि आयोग इस प्रक्रिया को तब तक स्थगित करे जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता और सभी पक्षों के साथ व्यापक चर्चा नहीं हो जाती। उनका कहना है कि यह कदम न केवल लोकतंत्र के हित में है, बल्कि मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए भी जरूरी है।
बिहार सर पर तेजस्वी यादव ने क्या कहा
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 80.11% मतदाताओं ने गणना प्रपत्र भर दिए हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि इनमें से कितने प्रपत्र सत्यापित, स्वेच्छिक और वैध तरीके से भरे गए हैं। फील्ड से लगातार यह सूचना मिल रही है कि बिना मतदाता की जानकारी/सहमति के BLO द्वारा फर्जी अंगूठा या हस्ताक्षर लगाकर प्रपत्र अपलोड किए जा रहे हैं। आंकड़े मात्र अपलोडिंग को दर्शाते हैं, जबकि आयोग ने प्रमाणिकता, सहमति और वैधता की कोई गारंटी नहीं दी। आयोग का 80.11% मतदाताओं द्वारा गणना प्रपत्र भरने का दावा जमीनी हकीकत के पूर्णत विपरीत है।
तेजस्वी के मुताबिक चुनाव आयोग की प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि दस्तावेज़ बाद में भी दिए जा सकते हैं, लेकिन इस बारे में कोई स्पष्ट आदेश या SOP अब तक जारी नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दस्तावेज़ों में लचीलापन लाने की सलाह के बावजूद, निर्वाचन आयोग ने कोई औपचारिक संशोधित अधिसूचना जारी नहीं की है, जिससे फील्ड में BLO और मतदाता दोनों भ्रमित हैं।
तेजस्वी यादव बिहार सर से जुड़ा दस्तावेज दिखाते हुए।
उन्होंने कहा- चुनाव आयोग ने यह नहीं बताया कि कितने गणना प्रपत्र बिना दस्तावेज़ या बिना मतदाता की प्रत्यक्ष भागीदारी के अपलोड हुए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि इन 4.66 करोड़ डिजिटाइज्ड फॉर्म में से कितनों की आधार/EPIC से वेरिफिकेशन हुआ है। यानि चुनाव आयोग फर्जी अपलोडिंग की संभावनाओं पर चुप्पी साधे हुए है। आज एक अखबार की खबर में देवघर, झारखंड में जलेबी बेचने वाले के पास हज़ारों फॉर्म मिले है। अनेक वीडियो वायरल हुए है जिसमें हज़ारों-लाखों फॉर्म सड़कों पर पड़े है।
तेजस्वी ने सवाल किया है कि चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों की भागीदारी का उल्लेख तो किया गया है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि उनके BLA को क्या वास्तविक निरीक्षण की भूमिका दी गई या सिर्फ उपस्थिति की सूचना दर्ज की जा रही है। कई जिलों में विपक्षी दलों के BLA को सूचित नहीं किया गया है और प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी से रोका गया है। इस पर कोई संज्ञान नहीं है।
बीएलओ पर दबाव क्यों
तेजस्वी ने पूछा है कि Target Driven Uploading से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता खत्म हो रही है। BLO और ERO पर 50%+ अपलोडिंग का अनौपचारिक लक्ष्य थोपे जाने की कई रिपोर्ट आ चुकी हैं। आयोग ने इस पर कोई स्पष्टीकरण, खंडन या नियंत्रण का उपाय नहीं बताया, जिससे पूरा अभियान गैर-पारदर्शी बन गया है। ECINet की सफलता के दावे किए गए हैं लेकिन फील्ड में सर्वर डाउन, OTP समस्या, Login Error, दस्तावेज़ अपलोड में नाकामी, गलत मैपिंग जैसी गंभीर तकनीकी समस्याएँ लगातार सामने आई हैं। तकनीकी शिकायतों की लगातार अनदेखी की जा रही है। इन शिकायतों के लिए BLO या मतदाता को कोई सपोर्ट सिस्टम, टिकटिंग पोर्टल या हेल्पलाइन उपलब्ध नहीं कराई गई है।
अधिकांश लोगों को एक फॉर्म क्यों
पूर्व डिप्टी सीएम ने कहा आयोग का दावा है कि हर मतदाता को दो प्रतियाँ दी जाती हैं — एक भर कर वापस ली जाती है और दूसरी पावती के रूप में मतदाता के पास रहती है। जमीनी सच्चाई यह है कि अधिकांश मतदाताओं को मात्र एक ही गणना प्रपत्र (EF) दिया गया है। किसी को पावती या रसीद (Acknowledgement slip) नहीं दी जा रही है, जिससे मतदाता यह प्रमाणित भी नहीं कर पा रहा कि उसका फॉर्म स्वीकार हुआ है या नहीं। न ही कोई ऐसा सिस्टम (SMS, पोर्टल, हेल्पलाइन) है जिससे मतदाता यह जान सके कि: उसका फॉर्म स्वीकार हुआ या नहीं, उसमें कोई गलती तो नहीं है, दस्तावेज पूर्ण हैं या नहीं! पावती या फॉर्म स्टेटस की कोई ट्रैकिंग नहीं है। पावती नहीं देने, फॉर्म के बिना दस्तावेज अपलोडिंग, और एकतरफा अपलोडिंग की यह पूरी प्रक्रिया “मतदाता के सूचित सहमति (Informed Consent) के अधिकार का उल्लंघन है” जो भविष्य में नाम कटने, आपत्ति खारिज होने, या पक्षपातपूर्ण व्यवहार की आशंका को बढ़ाता है।
आरजेडी नेता ने कहा- ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग की यह SIR प्रक्रिया एक Eye Wash है। चुनाव आयोग ने बीजेपी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर बूथ के आंकड़ों के हिसाब से पहले ही जोड़-तोड़ कर रखा है। लेकिन हम भी कम नहीं है, एक एक वोटर पर हमारी नजर है सबका आंकड़ा पास में है। केस सुप्रीम कोर्ट में है। अबकी बार बिहार से आर-पार होगा। सत्ताधारी बिहार को गुजरात समझने की गलती ना करें। यह लोकतंत्र की जननी है। सबक़ सिखा देंगे। यहाँ 90 फ़ीसदी मतदाता वंचित उपेक्षित वर्ग से है। उनकी रोटी छीन सकते हो, लेकिन वोट का अधिकार नहीं।