सीट शेयरिंग फार्मूला पर शुरुआती घात-प्रतिघात के बाद जब ऐसा लग रहा था कि एनडीए में कम से कम इस मामले पर सब कुछ तय हो चुका है तो इसके दो प्रमुख घटक दलों भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड में घमासान मचा हुआ है। 

यह हालत भारतीय जनता पार्टी में तब है जबकि बताया जा रहा है कि वरिष्ठ नेता और घाघ रणनीतिकार माने जाने अमित शाह ने डैमेज कंट्रोल के लिए पटना में रखकर खुद कमान संभाल ली थी और बागियों को मनाने की कोशिश की थी। अमित शाह के अलावा केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, नित्यानंद राय और विनोद तावड़े भी इस काम में लगाए गए थे हालांकि रहस्यमय ढंग से भारत की जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा को इन मामलों से दूर देखा जा रहा है। ऐसे में यह सवाल भी गहराया है कि क्या जेपी नड्डा को जानबूझकर या किसी अंदरूनी विवाद की वजह से इन प्रक्रियाओं से दूर रखा जा रहा है। हालांकि भाजपा के प्रवक्ता का कहना है कि इसमें कोई खास बात नहीं और वह छठ के बाद बिहार आएंगे। 

सब कुछ ठीक होने का दावा करने वाले एनडीए में सबसे दिलचस्प कहानी जदयू से आई है जहां पूर्णिया जिले की एक ही सीट- अमौर से पार्टी ने दो उम्मीदवारों के नाम पर तीसरी बार फैसला किया है। यह शिकायत तो कई मामलों में आई थी कि किसी एक उम्मीदवार को पार्टी का सिंबल देकर उसे वापस ले लिया गया लेकिन अमौर में हुआ यह कि पहले 16 अक्टूबर को सबा जफर के नाम की घोषणा की गई। फिर 18 अक्टूबर को बताया गया कि लोजपा और जेडीयू से राज्यसभा सदस्य रहे साबिर अली वहां से जदयू के उम्मीदवार होंगे। अभी इस पर बहस जारी ही थी कि सबा जफर का नाम काटकर साबिर अली को क्यों दिया गया कि अगले ही दिन 19 अक्टूबर को जदयू ने अपना स्टैंड फिर बदला और साबिर अली से सिंबल वापस लेकर सबा जफर को देने का ऐलान किया। इसके लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस का सहारा लिया गया जबकि इससे पहले पार्टी के आधार कार्य लेटर पैड पर खबर दी गई थी।

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याद रखने की बात यह है कि अमौर वह सीट है जहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान विधायक हैं और इस बार भी वह वहां पार्टी के उम्मीदवार हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि जेडीयू ने अख्तरुल ईमान के लिए राह आसान बना दी है।

अब जेडीयू नेताओं का कहना है कि ऐसा किसी गलतफहमी की वजह से हुआ लेकिन इससे यह तो उजागर हुआ कि नीतीश कुमार की पार्टी में भी इस तरह की अफरा तफरी है। जनता दल यूनाइटेड का मामला इसलिए भी अलग माना जा रहा है क्योंकि नीतीश कुमार इस मामले में सामने नजर नहीं आ रहे और जिस तरह की कोशिश भारतीय जनता पार्टी में है वैसी कोशिश यहां नहीं दिखती। यहां कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है और कहा जा रहा है कि अभी और लोग पार्टी से बगावत करेंगे। 

जदयू के पूर्व विधायक शर्फुद्दीन ने बसपा का दामन थाम लिया है और वह उसी की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह से एक और प्रमुख जदयू नेता राणा रणधीर सिंह चौहान बीएसपी से चुनाव लड़ेंगे। औरंगाबाद जिला अध्यक्ष अशोक सिंह ने पार्टी छोड़कर विद्रोह कर दिया है। अपने अजीबोगरीब बयान के लिए चर्चित रहने वाले विधायक गोपाल मंडल ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है। सीट शेयरिंग फार्मूला की बातचीत जब चल ही रही थी तो जेडीयू के सांसद अजय मंडल ने भी इस्तीफे की पेशकश की थी। 

जदयू के मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी ने बगावत को दबाने में कुछ हद तक कामयाबी हासिल की है लेकिन यहां से भी ऐसी खबरें आ रही हैं। मुजफ्फरपुर जिले को एनडीए और भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन यहां से दूसरे पार्टी नेताओं के अलावा एक प्रमुख विधायक ने भी विद्रोह कर दिया है। वर्ष 2005 से 2020 तक यहां की पारू सीट से चार बार भाजपा के टिकट से विधायक रहे अशोक सिंह भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे। 

इसका पता नहीं चल पाया कि अमित शाह ने उन्हें मनाने की कोशिश की या नहीं और अगर कोशिश की तो वह क्यों नहीं माने लेकिन अशोक सिंह ने यह जरूर कहा कि भाजपा अब अटल-आडवाणी वाली भाजपा नहीं रही। अशोक सिंह इस बार भी पारू सीट से भाजपा के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे लेकिन एनडीए गठबंधन में सीट कटने और उपेंद्र कुशवाहा वाले राष्ट्रीय लोक मोर्चा के खाते में जाने के कारण वह बागी बन गए हैं।  

पारू के अलावा भागलपुर की कहलगांव सीट से भी भारतीय जनता पार्टी को बगावत का सामना है और यहां पवन यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात कही है। कटिहार से भारतीय जनता पार्टी के विधान पार्षद अशोक अग्रवाल के बेटे मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी में चले गए हैं। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि दानापुर की विधायक आशा देवी और पूर्व मंत्री रामसूरत राय को भाजपा ने मना लिया है।

इन परिस्थितियों के बावजूद यह देखा जा रहा है कि महागठबंधन की तुलना में एनडीए के अंदर जो सिर फुटव्वल है उसकी चर्चा कहां हो रही है।