बिहार चुनाव में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए भारी बहुमत हासिल किया, जबकि तेजस्वी यादव के महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा।
नीतीश कुमार
बिहार विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए ने 202 सीटें जीत ली हैं। विपक्षी महागठबंधन महज 35 सीटों के लिए जूझता दिखा। यह जीत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की व्यक्तिगत लोकप्रियता और गठबंधन की जातीय गणित पर आधारित है, जिसने विपक्ष को पूरी तरह से हिला कर रख दिया है।
एनडीए के दो प्रमुख दल बीजेपी और और जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा। 2020 में जेडीयू को मात्र 43 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार पार्टी ने इसमें शानदार सुधार किया है और क़रीब दोगुनी सीटें जीती हैं। फिर भी बीजेपी गठबंधन में अपनी प्रमुख भूमिका बरकरार रखते हुए जेडीयू से आगे है। 2020 में बीजेपी ने पहली बार जेडीयू से अधिक सीटें जीतकर गठबंधन में वर्चस्व स्थापित किया था और यह ट्रेंड जारी है।
विपक्षी महागठबंधन की हालत बेहद खराब है। यह कुल 35 सीटों पर जीता। आरजेडी 25 और कांग्रेस छह सीटों पर सिमट गई। लेफ्ट पार्टियाँ भी कमाल नहीं कर पाईं।
2020 में आरजेडी ने 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी का तमगा हासिल किया था और बहुमत से मात्र 12 सीटें पीछे रहकर विपक्ष को मजबूती दी थी। उस जीत ने इस बार सत्ता हथियाने की उम्मीदें जगाई थीं, लेकिन अब महागठबंधन की सीटें इतनी कम हैं कि विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद भी ख़तरे में पड़ सकता है।
महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने अपनी पारिवारिक सीट राघोपुर से जीत तो हासिल की, लेकिन यह जीत आसान नहीं थी। 2015 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे तेजस्वी को पूरे दिन काँटे की टक्कर का सामना करना पड़ा।
चुनावों में 'एक्स फैक्टर' माने जा रहे पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पूरी तरह धराशायी हो गई। बिहार चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान प्रशांत किशोर ने खुद कहा था कि जन सुराज या तो अर्श पर होगी या फर्श पर। जन सुराज पार्टी फर्श पर धड़ाम गिरी, लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए अर्श पर पहुँच गया।
प्रशांत किशोर की जेएसपी लोगों के मुद्दों पर केंद्रित अपनी मज़बूत नैरेटिव के बावजूद कोई खास असर नहीं दिखा पाई। माइग्रेशन, बेरोज़गारी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उद्योगों की कमी जैसे मुद्दों पर आधारित अपनी राजनीतिक चुनौती के ज़रिए बिहार की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती देने की जेएसपी की कोशिश नाकाम रही। एक साल पहले चार सीटों पर हुए उपचुनावों में जेएसपी को नाममात्र का वोट शेयर मिला था और अब विधानसभा चुनावों में भी सोशल मीडिया पर मजबूत मौजूदगी और भारी प्रचार के बावजूद प्रशांत किशोर की उपस्थिति दर्ज कराने की उम्मीदें धाराशायी हो गईं।
विपक्ष के लिए एकमात्र आश्चर्यजनक मोड़ असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम का उभरना रहा। सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम वोटों के दम पर पार्टी ने 5 सीटें जीती हैं। यह 'डार्क हॉर्स' साबित हुई है।
एनडीए की इस शानदार जीत को महिलाओं की भारी भागीदारी और गठबंधन की 'इंद्रधनुषी जातीय गणित' का नतीजा माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीत पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'कुछ पार्टियों ने 'एमवाई' (मुस्लिम-यादव) का तुष्टिकरण फॉर्मूला बनाया, लेकिन इस जीत ने नया 'एमवाई' - महिला और युवा - का संयोजन मजबूत किया है।'
पीएम मोदी ने बिहार की जीत को बंगाल के लिए रास्ता बताते हुए कहा, 'गंगा बिहार से बंगाल की ओर बहती है... बिहार ने बंगाल में बीजेपी की जीत का मार्ग प्रशस्त किया है। बंगाल से जंगलराज को खत्म करेंगे।' यह बयान बंगाल में आगामी चुनावों के लिए बीजेपी की रणनीति का संकेत देता है।
बिहार में एनडीए की यह जीत नीतीश कुमार की स्थिरता और मोदी की लोकप्रियता का प्रमाण है। विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव का आरजेडी, अब आत्ममंथन के दौर में है। चुनावी नतीजे बिहार की राजनीति को नई दिशा देंगे, जबकि पीएम मोदी का बंगाल फोकस राष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा रहा है। अंतिम नतीजे आने पर तस्वीर और साफ़ होगी।