पूर्णिया में मंच पर पप्पू यादव, नरेंद्र मोदी और अन्य।
इस समय पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव वैसे तो खुद को समाजवादी और आनंद मार्गी बताते हैं और कांग्रेस का बड़ा समर्थक होने का भी दावा करते हैं लेकिन सोमवार को पूर्णिया में आयोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में जिस तरह उन्हें उनसे झुककर बातचीत करते देखा गया और जिस तरह उन्होंने मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ की, उससे बहुत से लोगों के दिल में यह सवाल पैदा हुआ कि क्या वह पलटी मारेंगे?
इस सभा के बाद भी पप्पू यादव ने मिलता जुलता बयान दिया। उनका कहना था, "मेरा हवाई अड्डा और रेलवे को जोड़ने का संकल्प था, मैंने उन वादों को पूरा किया। अब मैंने एक हाईटेक अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का आग्रह किया है, हाई कोर्ट बेंच और पूर्णिया को उप राजधानी बनाने की भी मांग की है। मखाना और तिलकुट से GST खत्म करने का आग्रह किया है। एम्स और एक बांध बनाने का भी आग्रह किया है।”
पप्पू यादव की सफ़ाई
उन्होंने पूर्णिया एयरपोर्ट के उद्घाटन और नई ट्रेनें शुरू होने को अपनी और सीमांचल की जनता की कामयाबी करार दिया। उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि विकास के मुद्दे पर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हैं लेकिन उन्होंने यह भी साफ किया कि राजनीति के मामले में वह उनसे अलग हैं। इसे एनडीए ने इस तरह पेश किया कि पप्पू यादव को महागठबंधन में तो स्टेज पर बैठने की जगह नहीं दी गई लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में उन्हें सम्मान दिया गया। हालाँकि, सब लोग यह जानते हैं कि स्थानीय सांसद के नाते प्रोटोकॉल के तहत उन्हें जगह दी गई थी।
1967 में पैदा हुए पप्पू यादव की एक बाहुबली छवि है और उनका राजनीतिक सफर 1990 में शुरू हुआ जो बाद के दिनों में पलटी मारने के इतिहास से भरा हुआ है। सबसे हाल में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट पाने की कोशिश में नाकाम होने के बाद पप्पू यादव निर्दलीय लड़े और जीत गए। इसके बावजूद वह लगातार खुद को कांग्रेस के नजदीक दिखाने की कोशिश करते रहे, लेकिन हाल के दिनों में कुछ घटनाएँ ऐसी हुईं जिससे बहुत से लोगों को लगता है कि पप्पू यादव खुश नहीं हैं। मगर क्या वह इतने नाखुश हैं कि एनडीए के खेमे में चले जाएंगे? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका एक सीमा तक महत्वपूर्ण हो सकती है।
एक जमाने में लालू प्रसाद के करीब जाने की कोशिश करने वाले पप्पू यादव आजकल सबसे ज्यादा उनकी ही आँखों में खटकते बताए जाते हैं। पप्पू यादव की एक समय में बहुत ज्यादा चर्चा सीपीएम के लीडर अजीत सरकार की हत्या में अभियुक्त बनाए जाने और जेल जाने को लेकर भी हुई थी।
हालांकि उन्हें बाद में इससे बरी कर दिया गया। पप्पू यादव वैसे तो मीडिया में हर जगह कवरेज पाते हैं लेकिन उनका प्रभाव मूल तौर पर सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और पूर्णिया में माना जाता है।
राहुल के कार्यक्रम में पप्पू यादव
पिछले दिनों मीडिया में पप्पू यादव के बारे में यह ख़बर ख़ूब चली कि वोटर अधिकार यात्रा के समापन समारोह में और उससे पहले भी राहुल गांधी के कार्यक्रम में उन्हें स्टेज नहीं दिया गया। एक तस्वीर में राहुल गांधी के कार्यक्रम के दौरान उन्हें अकेले नीचे एक कुर्सी पर बैठे देखा गया था। इसकी वजह यह बताई गई कि राजद नेता तेजस्वी यादव नहीं चाहते कि पप्पू यादव को महागठबंधन में बहुत ज्यादा तवज्जो दी जाए। पूर्णिया लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव के बारे में बताया गया था कि उन्होंने पहले तो पप्पू यादव को कांग्रेस का टिकट नहीं लेने दिया और बाद में वहां से अपने उम्मीदवार को जीत दिलाने से ज्यादा पप्पू यादव को हराने की कोशिश की।
इसलिए सोमवार को जब पप्पू यादव प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल हुए, उनकी तारीफ की और बाद में भी विकास के कामों में साथ देने की बात की तो महागठबंधन में तवज्जो न मिलने की बात को इससे जोड़ते हुए यह पूछा जाने लगा कि क्या पप्पू यादव अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शरण में चले जाएंगे।
राजनीतिक समीकरण
राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि पप्पू यादव के बारे में यह नहीं माना जा सकता कि वह किसी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता से किसी एक गठबंधन में बने रहेंगे। लेकिन इस समय जो राजनीतिक समीकरण उनके साथ है उसमें उनके लिए भारतीय जनता पार्टी के साथ जाना भी समझदारी की बात नहीं मानी जा रही है। यह ज़रूर कहा जा रहा है कि अगर भारतीय जनता पार्टी में उनके लिए मंत्री पद देने जैसी बात हो जाए तब पप्पू यादव का मन डोल सकता है लेकिन शायद इसका भारतीय जनता पार्टी में ही विरोध हो।
दूसरी तरफ़ यह भी कहा जा रहा है कि दरअसल पप्पू यादव यह जताना चाहते हैं कि आगामी विधानसभा में अगर उन्हें महागठबंधन में तवज्जो नहीं दी गई तो उनके पास एक विकल्प खुला है। यह स्थिति भारतीय जनता पार्टी के लिए भी लाभदायक है ताकि पप्पू यादव के बारे में वह यह संदेश दे सके कि दरअसल दोनों दूसरे के साथ हैं।
पप्पू यादव ने 1990 में अपनी राजनीति समाजवादी पार्टी से शुरू की, लेकिन बाद में वह लालू प्रसाद के राजद में शामिल होने से पहले निर्दलीय भी चुनाव लड़े। 1991 में पूर्णिया लोकसभा सीट का चुनाव रद्द कर दिया गया था लेकिन बाद में हुए उपचुनाव में पप्पू यादव ने निर्दलीय के तौर पर जीत हासिल की थी।
1996 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर इस सीट से जीते थे। 1999 में पप्पू यादव ने एक बार फिर निर्दलीय के तौर पर इस सीट से जीत हासिल की। 2024 में निर्दलीय के तौर पर उन्होंने तीसरी बार पूर्णिया लोकसभा सीट में जीत हासिल की।
पप्पू यादव 2004 में मधेपुरा के उपचुनाव में राजद के टिकट पर लोकसभा सांसद बने। 2009 में वह चुनाव हार गए लेकिन 2014 में फिर मधेपुरा से राजद के टिकट पर लोकसभा सांसद बने। राजनीतिक प्रेक्षक बताते हैं कि इसके बाद पप्पू यादव की महत्वाकांक्षाएं बढ़ने लगीं और उन्होंने कुछ ऐसी बातें कीं जिससे उन्हें आरजेडी से 2015 में निकाल दिया गया।
पप्पू की पार्टी का कांग्रेस में विलय
पप्पू यादव ने 2015 में अपनी जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक की स्थापना की। इस दौरान उन्हें एनडीए के क़रीब माना गया हालांकि वह पूरी तरह उसमें शामिल नहीं हुए। पप्पू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर किस्मत आजमाने की कोशिश की, लेकिन वह जीत नहीं सके। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से सामाजिक कार्यों के जरिए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने की कोशिश की और 2020 के चुनाव में अपनी पार्टी के साथ मैदान में उतरे लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली।
2024 का लोकसभा चुनाव आने से पहले उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि उन्हें कांग्रेस से टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन राजद के विरोध के कारण उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने पूर्णिया सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जबकि आरजेडी ने भी अपना उम्मीदवार वहां से खड़ा कर दिया। इस चुनाव में पप्पू यादव ने कामयाबी हासिल की और एक बार फिर लोकसभा पहुंच गए। इस बीच यह खबर भी आई कि पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीत रंजन, जो कांग्रेस की राज्यसभा सांसद थीं, अलग-अलग रह रहे हैं। इसकी वजह से पप्पू यादव की राजनीति भी प्रभावित हुई है।