बिहार विधानसभा चुनाव में क्या बीजेपी 'डराने-धमकाने' की रणनीति पर उतर आई है? जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने तो मंगलवार को ऐसे ही आरोप लगाते हुए बड़ा बम फोड़ा है! उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर उनके उम्मीदवारों को नामांकन वापस लेने के लिए धमकाने का सीधा आरोप लगाया है। पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने न केवल तीन उम्मीदवारों के नामांकन वापसी के पीछे भाजपा का हाथ बताया, बल्कि चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए।  

'गृहमंत्री के साथ थे उम्मीदवार'

प्रशांत किशोर के आरोपों का आधार तीन प्रमुख घटनाएं हैं, जो बिहार के विभिन्न जिलों से जुड़ी हैं। दानापुर में जन सुराज के उम्मीदवार अखिलेश कुमार उर्फ मूतूर शाह का नामांकन दाखिल न होना सबसे विवादास्पद है। किशोर के मुताबिक़, बीजेपी नेताओं ने मूतूर शाह को पूरे दिन अमित शाह और बिहार चुनाव प्रभारी जैसे बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के साथ रखा गया। किशोर ने एक फोटो दिखाते हुए कहा, 'लोगों को बताया गया कि आरजेडी के गुंडों ने उन्हें बंधक बना लिया है, लेकिन असल में वह भारत के गृह मंत्री के साथ बैठे थे। चुनाव आयोग को इस पर ध्यान देना चाहिए। एक गृह मंत्री किसी उम्मीदवार को नामांकन दाखिल करने से रोकने के लिए उसे अपने पास कैसे रख सकता है?'

नाम वापस लेने का दबाव?

इसी तरह ब्रह्मपुर से डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी ने तीन दिनों तक प्रचार करने के बाद नामांकन वापस ले लिया। प्रशांत किशोर ने एक फोटो जारी की, जिसमें तिवारी धर्मेंद्र प्रधान के साथ उनके घर पर दिख रहे हैं। उन्होंने कहा, 'यह दबाव का साफ़ प्रमाण है। एक केंद्रीय मंत्री का चुनाव घोषणा के बाद विपक्षी उम्मीदवार से मिलना अभूतपूर्व है।' गोपालगंज में डॉ. शशि शेखर सिन्हा ने भी अंतिम समय में नामांकन वापस ले लिया। किशोर का दावा है कि सिन्हा ने उन्हें फोन पर दबाव डाले जाने की शिकायत की थी, लेकिन दो घंटे बाद ही फोन बंद हो गया। उन्होंने दावा किया कि स्थानीय भाजपा नेताओं ने उन्हें घेर लिया था।

किशोर ने कुम्हरार से प्रो. के.सी. सिन्हा और वाल्मीकिनगर से डॉ. नारायण प्रसाद पर भी दबाव का ज़िक्र किया। प्रो. सिन्हा को बार-बार धमकी दी गई, लेकिन वे अडिग हैं। वहीं, दो साल पहले स्कूल टीचर की नौकरी छोड़कर पार्टी में शामिल हुए डॉ. प्रसाद को स्थानीय अधिकारी बता रहे हैं कि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ, इसलिए वे अयोग्य हैं।
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14 उम्मीदवारों पर दबाव

किशोर ने कहा कि पूरे बिहार में जन सुराज के 14 उम्मीदवारों पर धमकी और दबाव का सामना करना पड़ा, लेकिन 243 में से 240 अन्य मजबूती से मैदान में हैं। उन्होंने कहा कि 'बीजेपी महागठबंधन के उम्मीदवारों से नहीं, बल्कि जन सुराज के सभ्य, डॉक्टर, व्यवसायी उम्मीदवारों से डर रही है। वे गुंडों से नहीं, अच्छे लोगों से डरते हैं। यह जन सुराज का डर है।'

उम्मीदवार चयन पर सवालों का जवाब देते हुए किशोर ने बताया कि जन सुराज ने अत्यंत पिछड़े समुदायों को 54 टिकट दिए और मुस्लिम समुदाय को 34। उन्होंने कहा, 'जो लोग मुसलमानों को टोकनिज्म का आरोप लगाते हैं, हमारा रिकॉर्ड कुछ और कहता है। जहां संभव था, वहां प्रतिनिधित्व दिया, सिवाय उन क्षेत्रों के जहां पहले से मुस्लिम विधायक हैं।'
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'उम्मीदवारों की सुरक्षा न हो तो वोटरों की क्या?'

किशोर ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा, 'यदि आप उम्मीदवारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो वोटरों की कैसे करेंगे? यदि उम्मीदवारों को धमकाकर नाम वापस करवा सकते हैं, तो वोटिंग के दिन पार्टियां वोटरों को क्यों नहीं डराएंगी?' उन्होंने आयोग से तुरंत जांच और कार्रवाई की मांग की, साथ ही कहा कि वे औपचारिक शिकायत दर्ज कराएंगे। 

ये घटनाएं संयोग नहीं लगतीं। सवाल यह है कि क्या ये व्यक्तिगत 'विद्रोह' हैं या संगठित साजिश? हालिया खबरों से पता चलता है कि राज्य प्रवक्ता अमित कुमार पासवान और पूर्व जिला परिषद सदस्य अनीता कुमारी जैसे जन सुराज से कई नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 

यह 'हाईजैकिंग' ट्रेंड को दिखाता है। ऐसा ही गुजरात में सूरत लोकसभा सीट पर भी हुआ था। सूरत सीट पर सभी विरोधी उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिए थे और इस वजह से बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल चुनाव होने से पहले ही निर्विरोध जीत गए थे।

जन सुराज की रणनीति क्या?

बिहार की राजनीति लंबे समय से महागठबंधन और एनडीए के बीच मुक़ाबले पर टिकी रही है। किशोर का कहना है कि जन सुराज ने इस समीकरण को तोड़ दिया है और विधानसभा में जन सुराज के 243 सीटों पर अकेले उतरने से एनडीए की नींद हराम हो गई है। किशोर ने कहा, 'भाजपा महागठबंधन के उम्मीदवारों से नहीं, बल्कि जन सुराज के पेशेवरों- डॉक्टरों, व्यापारियों- से डरती है। वे बाहुबली से नहीं, सभ्य लोगों से घबराते हैं।' 
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वैसे, विपक्षी इंडिया गठबंधन प्रशांत किशोर पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगाता रहा है। आरजेडी जैसे दलों का आरोप है कि प्रशांत किशोर इंडिया गठबंधन का वोट काटकर बीजेपी को फायदा पहुँचाना चाहते हैं और यही कारण है कि वह बीजेपी पर हमला बोल रहे हैं। कई विपक्षी नेता सवाल उठाते हैं कि प्रशांत किशोर द्वारा चुनाव में इतना पैसा ख़र्च किए जाने के बावजूद केंद्रीय एजेंसियाँ उनके ख़िलाफ़ जाँच पड़ताल नहीं कर रही हैं, जबकि विपक्षी दलों के नेताओं को हर तरह से परेशान किया जा रहा है। 

बहरहाल, प्रशांत किशोर के ये आरोप बिहार चुनावों को और ध्रुवीकरण की ओर ले जा सकते हैं। यदि चुनाव आयोग जांच करता है, तो यह एनडीए सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है। विपक्षी दल इस मुद्दे को उठा सकते हैं, जबकि एनडीए इसे खारिज करने की कोशिश करेगा। बिहार की 243 सीटों पर दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को मतदान होगा, और नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। यह विवाद चुनावी नैरेटिव को बदल भी सकता है।