चुनाव आयोग के दावों की बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम ने रविवार को धज्जियां उड़ा दीं। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने रविवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार के लोगों के वोटर के रूप में दर्ज होने की खबरों को खारिज कर दिया। उन्होंने इन खबरों के लिए इस्तेमाल किए गए "सूत्रों" को "मूत्र" (यानी बेकार) करार देते हुए पत्रकारों पर तंज कसा और चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल उठाए।
पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए तेजस्वी ने कहा, "हम उस सूत्र को मूत्र समझते हैं... इसका कोई आधार नहीं है।" उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग स्वयं सामने आने की बजाय सूत्रों के हवाले से खबरें प्लांट करवा रहा है ताकि इसके आड़ में "खेला" कर सके। तेजस्वी ने दावा किया कि ये वही सूत्र हैं, जो "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान इस्लामाबाद, लाहौर और कराची पर कब्जा करने की बात कर रहे थे।

गोदी आयोग 7.9 लाख वोटरों को हटाने की तैयारी मेंः तेजस्वी

तेजस्वी ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए इसे "गोदी आयोग" करार दिया और कहा कि यह सत्ताधारी एनडीए गठबंधन के इशारे पर काम कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि अगर सत्यापन प्रक्रिया में केवल एक प्रतिशत मतदाताओं को भी बाहर किया गया, तो पूरे बिहार में लगभग 7.9 लाख मतदाता वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। इसका मतलब है कि प्रत्येक विधानसभा सीट पर औसतन 3,251 मतदाताओं को हटाया जा सकता है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है।
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उन्होंने यह भी बताया कि 2020 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन (इंडिया गठबंधन का हिस्सा) के कई उम्मीदवार 3,000 या उससे कम वोटों के अंतर से हारे थे। तेजस्वी ने सवाल उठाया कि क्या यह प्रक्रिया बिहार के गरीब और प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूची से हटाने की साजिश नहीं है। उन्होंने कुछ वीडियो क्लिप भी दिखाए, जिसमें सड़कों पर बिखरे हुए एसआईआर फॉर्म दिख रहे थे, जिससे SIR प्रक्रिया में अनियमितताएं साफ दिख रही हैं।

आधार, वोटर कांड, राशन कार्ड पर चुप्पी क्योंः तेजस्वी

तेजस्वी ने संवाददाता सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर चुनाव आयोग की "चुप्पी" पर भी कड़ी आपत्ति जताई। जिसमें अदालत ने आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करने का सुझाव दिया था। जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे। आखिरी बार एसआईआर 2003 में आयोजित किया गया था।
यादव ने आरोप लगाया, "चुनाव आयोग कभी भी कोई उचित बयान या प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह नहीं बताता कि इस हफ़्ते की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बारे में वह क्या करने का इरादा रखता है, जिसमें उसे आधार कार्ड और राशन कार्ड को शामिल करने पर विचार करने के लिए कहा गया था।"
तेजस्वी ने कहा कि "25 जुलाई की समय सीमा को पूरा करने की जल्दबाजी में, चुनाव आयोग ने एक विज्ञापन जारी किया जिसमें कहा गया था कि जो लोग अपने दस्तावेज़ जमा नहीं कर पा रहे हैं, वे बस अपने फ़ॉर्म जमा कर सकते हैं। लेकिन इस बारे में कोई आधिकारिक अधिसूचना नहीं दी गई और बीएलओ असमंजस में हैं।"
इस मुद्दे ने बिहार में सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। तेजस्वी और इंडिया गठबंधन के अन्य नेताओं, जिसमें कांग्रेस के राहुल गांधी शामिल हैं, ने 9 जुलाई को पटना में "बिहार बंद" का आयोजन किया था। राहुल गांधी और तेजस्वी ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनावी हेरफेर की तरह ही बिहार में भी ऐसा करने की कोशिश हो रही है।
इस बीच, चुनाव आयोग ने तेजस्वी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ये निराधार हैं। आयोग ने दावा किया कि अब तक लगभग चार करोड़ सत्यापन फॉर्म प्राप्त हो चुके हैं और प्रक्रिया 25 जुलाई की समय सीमा से पहले पूरी हो जाएगी। हालांकि, यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जहां RJD सांसद मनोज झा, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, एडीआर और अन्य याचिकाकर्ताओं ने SIR प्रक्रिया को चुनौती दी है।
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यह विवाद बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल को और गर्म कर रहा है, जहां RJD और इंडिया ब्लॉक सत्ताधारी NDA के खिलाफ मजबूत चुनौती पेश करने की तैयारी में हैं। तेजस्वी बिहार के मतदाताओं के बीच यह संदेश पहुंचाने में कामयाब होते दिख रहे हैं कि 2003 में यूपीए सरकार के तहत पूरे देश में SIR हुआ था, लेकिन अब केवल बिहार में ही यह प्रक्रिया क्यों चल रही है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और बिहार के गरीबों और प्रवासियों को निशाना बनाया जा रहा है।