बिहार चुनाव और मतदाता सूची को लेकर विपक्षी दलों ने बुधवार को भारत के चुनाव आयोग के सामने कई कड़े सवाल किए। 11 राजनीतिक दलों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात की और इसने पूछा कि आख़िर 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' का फ़ैसला अचानक क्यों लिया गया? इसने यह भी पूछा है कि चुनाव आयोग ने यह निर्णय कब और कैसे लिया? इसके साथ ही उन्होंने कई और सवाल किए।

दरअसल, प्रतिनिधिमंडल ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 और मतदाता सूची में संशोधन को लेकर बुधवार को चुनाव आयोग के साथ गहन चर्चा की। इस डेलीगेशन में क़रीब 20 नेता शामिल थे और बैठक लगभग 3 घंटे तक चली। इस मुलाक़ात के दौरान विपक्षी नेताओं ने मतदाता सूची में संशोधन और निर्वाचन आयोग के नियमों पर कई सवाल उठाए, जिससे बिहार में आगामी चुनावों को लेकर सियासी माहौल और गर्म हो गया है।

लोगों के मताधिकार से वंचित होने का संदेह

यह मुलाकात बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच हुई, जो इस साल के अंत में होने की संभावना है। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने इस बैठक में मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा पर अपनी चिंताएँ जाहिर कीं। डेलीगेशन में शामिल नेताओं ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, और इससे बिहार में लगभग 20% मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित किया जा सकता है।

इस डेलीगेशन में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी, और अन्य विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। इस दौरान कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस वार्ता में कहा, 'हमारे 11 दलों के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से 3 घंटे तक मुलाकात की। पहली बार हमें अंदर जाने के लिए कुछ नियम बताए गए, जिसमें कहा गया कि प्रत्येक पार्टी से केवल दो प्रतिनिधि ही बैठक में शामिल हो सकते हैं। इस नियम के कारण कई नेता बैठक में हिस्सा नहीं ले पाए।' 

विपक्ष के पाँच बड़े सवाल

अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग से पूछा कि 2003 से आज तक करीब 22 साल में बिहार में कम से कम 5 चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सारे चुनाव ग़लत थे?

सिंघवी ने चुनाव आयोग से कहा, 'अगर आपको 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' यानी एसआईआर करना था तो इसकी घोषणा जून के अंत में क्यों की गई, इसका निर्णय कैसे और क्यों लिया गया? अगर मान भी लिया जाए कि एसआईआर की ज़रूरत है तो इसे बिहार चुनाव के बाद इत्मीनान से किया जा सकता था।'

सिंघवी ने कहा कि जब 2003 में रिवीजन की यह प्रक्रिया अपनाई गई थी, तो उसके एक साल बाद राष्ट्रीय चुनाव था और दो साल बाद असेंबली का चुनाव था, इस बार केवल एक महीने का ही समय है।

आधार कार्ड को लेकर सवाल

सिंघवी ने कहा कि पिछले एक दशक से हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जाता रहा है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि आपको वोटर नहीं माना जाएगा- अगर आपके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा।

उन्होंने कहा, 'एक कैटेगरी में उन लोगों के माता-पिता के जन्म का भी दस्तावेज होना चाहिए, जिनका जन्म समय 1987-2012 के बीच हुआ होगा। ऐसे में प्रदेश में लाखों-करोड़ गरीब लोग होंगे, जिन्हें इन कागजात को जुटाने के लिए महीनों की भागदौड़ करनी होगी। ऐसे में कई लोगों का नाम ही लिस्ट में शामिल नहीं होगा, जो कि साफ़ तौर पर लेवल प्लेइंग फील्ड का हनन है। लेवल प्लेइंग फील्ड चुनाव का आधार है और चुनाव, गणतंत्र का आधार है।'

जनवरी में SIR की घोषणा क्यों नहीं?

कांग्रेस नेता ने कहा कि चुनाव आयोग ने ये निर्णय कब और कैसे लिया, क्योंकि जनवरी तक ऐसा कोई नियम नहीं था। उन्होंने कहा, 'आपने इसकी घोषणा नहीं की, बल्कि एक SSR प्रकाशित किया। आपने जनवरी 2025 में SIR की कोई घोषणा नहीं की, SIR का कहीं नाम तक नहीं लिया। ऐसे में अचानक जून के अंत में ये निर्णय कैसे लिया गया?'

सिंघवी ने यह भी कहा, 'हमने इस विषय में सुप्रीम कोर्ट के कई सारे फैसलों का उदाहरण दिया और अपनी बात रखी। हमने उन्हें बताया कि अदालत का मानना है कि इलेक्टोरल रोल से किसी को वंचित रखना गंभीर प्रताड़ना है।'
इस मुलाकात के बाद बिहार में सियासी सरगर्मी और तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ दल बीजेपी और जेडीयू ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष बेवजह विवाद खड़ा कर रहा है।

चुनाव आयोग ने इस मामले पर अभी कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, आयोग जल्द ही एक विस्तृत जवाब दे सकता है। लेकिन सवाल वही है कि इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे भी या नहीं?